महाकुंभ : शाही स्नान से पहले नागा साधु क्यों लगाते हैं भस्म? जानें इसके पीछे की वजह
- इस समय प्रयागराज में महाकुंभ चल रहा है। महाकुंभ का मुख्य आकर्षण अखाड़ों के नागा संन्यासी होते हैं। स्नान के लिए निकले नागाओं का अंदाज निराला होता है।
इस समय प्रयागराज में महाकुंभ चल रहा है। महाकुंभ का मुख्य आकर्षण अखाड़ों के नागा संन्यासी होते हैं। स्नान के लिए निकले नागाओं का अंदाज निराला होता है। 12 वर्ष के इंतजार के बाद लगने वाले महाकुंभ के अमृत स्नान में पतित पावनी मां गंगा से मिलने (स्नान करने) की खुशी में ये पूरे शरीर पर भस्म लगाकर चलते हैं। स्नान के लिए निकलने से पहले नागा संन्यासी अपने पूरे शरीर पर भभूत मलते हैं। अमृत स्नान के लिए गंगा तट पर पहुंचने के बाद इनका उत्साह दोगुना हो जाता है और नागा उन्मुक्त भाव से उसी तरह उछलते हैं, जैसे कोई बच्चा अपनी मां को देखकर उछलता है। नागा साधु मां गंगा में विशेष आस्था रखते हैं।
माता-पिता और खुद का पिंड दान कर संन्यासी बने नागा मां गंगा के प्रति अथाह श्रद्धा रखते हैं। तन की मैल से मां गंगा का आंचल मैला न हो, इसका ध्यान रखते हुए नागा संन्यासी अमृत स्नान से पहले अपनी छावनी में स्नान करके खुद को शुद्ध करते हैं। नागा साधु यह नहीं चाहते कि जब अमृत स्नान पर पुण्य की डुबकी लगाएं तो गंगा की गोद में कोई गंदगी जाए। जूना, आहवान, निरंजनी, आनंद, महानिर्वाणी, अटल अखाड़े के नागा संन्यासी स्नान के लिए निकलने से पहले स्नान करते हैं और फिर अखाड़े में फहराई गई धर्म ध्वजा के नीचे बैठकर शरीर पर भस्म मलते हैं, जिसे इनका भस्मी स्नान भी कहा जाता है।
भस्मी स्नान के पीछे वैज्ञानिक कारण
स्नान से पूर्व भस्मी स्नान (शरीर पर भभूत पोतने) की पीछे का इनका मकसद भी मां गंगा को स्वच्छ रखना ही होता है। इसका वैज्ञानिक कारण भी है। नागा जो भस्म शरीर पर लगाते हैं, उसमें तमाम ऐसे केमिकल होते हैं जो खराब वैक्टीरिया और जीवाणु को खत्म कर देते हैं। संतों का दावा है कि अमृत स्नान के बीओडी भी 10 फीसदी तक बढ़ जाता है।
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