Maa Skandamata Aarti : मां स्कंदमाता की आरती, जय तेरी हो स्कंद माता…
- Maa Skandamata Aarti : 7, अक्टूबर 2024 के दिन शारदीय नवरात्रि का पांचवां दिन है। इस दिन माता स्कंदमाता जी की पूजा होती है। भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां को स्कंदमाता नाम से जाना जाता है। कल जरूर पढें मां स्कंदमाता की आरती…
Maa Skandamata Aarti : कल, सोमवार के दिन शारदीय नवरात्रि का पांचवां दिन रहेगा। इस दिन मां दुर्गा देवी के स्कंदमाता रूप की पूजा-अर्चना की जाएगी। इस दिन शुभ मुहूर्त में दुर्गा पूजन करना भक्तों के लिए बेहद लाभकारी रहेगा। शारदीय नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की कृपा बनाए रखने के लिए मां स्कंदमाता की आरती जरूर करनी चाहिए। आगे पढ़ें मां दुर्गा के स्वरूप मां स्कंदमाता जी की आरती-
स्कंद माता जी की आरती
स्कंदमाता की आरती
जय तेरी हो स्कंद माता,
पांचवा नाम तुम्हारा आता।
सब के मन की जानन हारी,
जग जननी सब की महतारी।
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं,
हर दम तुम्हे ध्याता रहूं मैं।
कई नामो से तुझे पुकारा,
मुझे एक है तेरा सहारा।
कहीं पहाड़ों पर है डेरा,
कई शहरों में तेरा बसेरा।
हर मंदिर में तेरे नजारे गुण गाये,
तेरे भगत प्यारे भगति।
अपनी मुझे दिला दो शक्ति,
मेरी बिगड़ी बना दो।
इन्दर आदी देवता मिल सारे,
करे पुकार तुम्हारे द्वारे।
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आये,
तुम ही खंडा हाथ उठाये।
दासो को सदा बचाने आई,
चमन की आस पुजाने आई।।
स्तुति: या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ध्यान
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्विनीम्॥
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पञ्चम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् पीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥
स्तोत्र
नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागरम् पारपारगहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रदीप्ति भास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चितां सनत्कुमार संस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलाद्भुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तितां विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालङ्कार भूषिताम् मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेदमार भूषणाम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्र वैरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनीं सुवर्णकल्पशाखिनीम्
तमोऽन्धकारयामिनीं शिवस्वभावकामिनीम्।
सहस्रसूर्यराजिकां धनज्जयोग्रकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभृडवृन्दमज्जुलाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरम् सतीम्॥
स्वकर्मकारणे गतिं हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनः पुनर्जगद्धितां नमाम्यहम् सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवी पाहिमाम्॥
कवच
ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मधरापरा।
हृदयम् पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥
श्री ह्रीं हुं ऐं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वाङ्ग में सदा पातु स्कन्दमाता पुत्रप्रदा॥
वाणवाणामृते हुं फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्या तथाग्ने च वारुणे नैॠतेअवतु॥
इन्द्राणी भैरवी चैवासिताङ्गी च संहारिणी।
सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य है और सटीक है। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
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