देवी शताक्षी ही आदिशक्ति मां शाकम्भरी हैं
- Maa shakumbhari devi: भागवत पुराण के अनुसार एक बार पृथ्वी पर अनेक वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। भयानक सूखे से त्रस्त लोगों के कष्टों को देखकर सभी ऋषि-मुनियों ने देवी की आराधना की।
Maa shakumbhari devi katha: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आदिशक्ति ने ही अयोनिजा रूप में ‘शताक्षी’ अवतार ग्रहण किया था। शताक्षी यानी सौ नेत्रों वाली देवी ही शाकम्भरी हैं। यह दुर्गा का सौम्य अवतार हैं। देवी ‘शाकम्भरी’ को आदिशक्ति जगदंबा का ही एक रूप माना जाता है। कहीं इन्हें चार भुजाधारी तो कहीं अष्टभुजाओं वाली देवी के रूप में दिखाया जाता है। पौष मास की पूर्णिमा तिथि को ‘शाकम्भरी’ जयंती मनाए जाने के कारण इसे ‘शाकम्भरी’ पूर्णिमा भी कहा जाता है। महाभारत के ‘वनपर्व’ में वर्णन है कि शाकम्भरी देवी ने शिवालिक पहाड़ियों में सौ वर्ष तक तपस्या की थी। तप के दौरान वे महीने में एक बार ही शाकाहारी आहार लिया करती थीं। उनकी कीर्ति सुनकर एक बार कुछ ऋषि उनके दर्शन के लिए गए। उन्होंने ऋषियों के स्वागत में भोजन के रूप में शाक ही परोसा। तभी से वे शाकम्भरी के नाम से जानी जाने लगीं।
भागवत पुराण के अनुसार एक बार पृथ्वी पर अनेक वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। भयानक सूखे से त्रस्त लोगों के कष्टों को देखकर सभी ऋषि-मुनियों ने देवी की आराधना की। तब आदिशक्ति जगदंबा ने शाकम्भरी रूप में अपने शरीर से उत्पन्न शाक से ही संसार का भरण-पोषण किया। इस प्रकार उन्होंने संसार को नष्ट होने से बचाया।
एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार पार्वती ने शिव को पाने के लिए कठोर तप किया। तप के दौरान वे एक समय भोजन के रूप में शाक-सब्जियां ही खाती थीं, इसलिए उनका एक नाम शाकम्भरी हो गया।
अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार दुर्गम दैत्य के पिता ‘रुरु’ के मन में विचार आया कि देवताओं की सारी शक्ति वेदों में है। यदि उनसे वेद छीन लिए जाएं तो वे निर्बल हो जाएंगे। यह विचार उसने अपने पुत्र के सामने रखा। दुर्गम ने अपने पिता की बात से सहमत होते हुए वेदों को पाने के लिए ब्रह्मा की आराधना शुरू कर दी। उसके कठोर तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने असुर दुर्गम को चारों वेद देने के साथ-साथ देवताओं को परास्त करने का वरदान भी दे दिया। वेदों के असुर के पास जाते ही देवताओं का बल क्षीण हो गया। वेदों का ज्ञान विस्मृत हो जाने के कारण ऋषि-मुनि यज्ञादि करना भूल गए। उनकी शक्ति क्षीण होता देख दुर्गम के अत्याचार और भी बढ़ने लगे।
दुर्गम के अत्याचारों से पीड़ित सभी देवता और ऋषि-मुनि देवी जगदंबा की शरण में गए। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी के शरीर से एक स्त्री रूपी तेज निकला, जिसके सौ नेत्र थे। देवताओं की व्यथा सुनकर उनके सौ नेत्रों से आंसू निकलने लगे, जो वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिरने लगे और पृथ्वी पर पहले की तरह हरियाली छा गई। अपने सौ नेत्रों के कारण ये देवी ‘शताक्षी’ कहलाईं। और सृष्टि का भरण-पोषण करने के कारण ‘शाकम्भरी’ कहलाईं। इसके पश्चात देवी ‘शाकम्भरी’ ने दैत्य दुर्गम से युद्ध कर उसका वध किया और वेदों को उसके चंगुल से मुक्त कराकर ब्रह्मा को सौंपा।
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