मुस्लिमों को समझा वोट बैंक, ममता राज का सभी OBC सर्टिफिकेट रद्द करते हुए हाई कोर्ट ने क्या-क्या कहा?
OBC Certificate Cancelled: कोर्ट ने ये भी कहा कि राज्य सरकार ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को दरकिनार करते हुए OBC के उप-वर्गीकरण की सिफारिशों कीं, जिनमें आरक्षण के लिए अनुशंसित 42 में 41 मुस्लिम वर्ग थे

कलकत्ता हाई कोर्ट ने बुधवार को पश्चिम बंगाल में 2010 के बाद जारी किए गए सभी ओबीसी (अन्य पिछड़े वर्ग) प्रमाण पत्रों को रद्द कर दिया है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने राज्य में ओबीसी सर्टिफिकेट जारी करने की प्रक्रिया को असंवैधानिक करार दिया है। हाई कोर्ट ने 37 वर्गों को दिए गए ओबीसी आरक्षण को भी रद्द कर दिया है। हालांकि, कोर्ट ने उन लोगों को इस फैसले से राहत दी है, जो इन सर्टिफिकेट के आधार पर आरक्षण का लाभ पाकर नौकरी कर रहे हैं।
जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि मुसलमानों के कुछ वर्गों को "राजनीतिक उद्देश्यों के लिए" ओबीसी आरक्षण दिया गया। यह पूरे समुदाय और लोकतंत्र का अपमान है। पीठ ने यह भी कहा है कि मुस्लिमों के जिन वर्गों को आरक्षण दिया गया था, उन्हें राज्य की सत्तारूढ़ व्यवस्था ने एक वस्तु और "वोट बैंक" के रूप में इस्तेमाल किया।
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि इन समुदायों को गैर वाजिब तरीके से इसलिए आयोग ने जल्दबाजी में आरक्षण दिए क्योंकि तत्कालीन सीएम उम्मीदवार ममता बनर्जी ने अपने चुनावी वादों में उन्हें ये लाभ देने का वादा किया था और जब वो सत्ता में आ गईं तो उसे पूरा करने के लिए आयोग ने असंवैधानिक तरीके से आरक्षण की रेबड़ियां बांटीं।
कोर्ट ने ये भी कहा कि राज्य सरकार ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को दरकिनार करते हुए ओबीसी के उप-वर्गीकरण की सिफारिशों कीं, जिनमें आरक्षण के लिए अनुशंसित 42 वर्गों में से 41 वर्ग मुस्लिम समुदाय के थे। कोर्ट ने कहा कि इससे साफ होता है कि आरक्षण देने की ये कवायद सिर्फ और सिर्फ एक धर्म विशेष के लोगों को लाभान्वित करने के लिए की गई थी।
आरक्षण से जुड़े अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आदेश पारित करते हुए हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जिन वर्गों का ओबीसी दर्जा हटाया गया है, उसके सदस्य यदि पहले से ही सेवा में हैं या आरक्षण का लाभ ले चुके हैं या राज्य की किसी चयन प्रक्रिया में सफल हो चुके हैं, तो उनकी सेवाएं इस फैसले से प्रभावित नहीं होंगी।
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वकील ने कहा कि 2010 के बाद पश्चिम बंगाल में ओबीसी के तहत सूचीबद्ध लोगों की संख्या पांच लाख से ऊपर होने का अनुमान है। अदालत ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा) (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) कानून, 2012 के तहत ओबीसी के तौर पर आरक्षण का लाभ प्राप्त करने वाले कई वर्गों को संबंधित सूची से हटा दिया।
पीठ ने निर्देश दिया कि 5 मार्च, 2010 से 11 मई, 2012 तक 42 वर्गों को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत करने वाले राज्य के कार्यकारी आदेशों को भी रद्द कर दिया गया। खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि 2010 से पहले ओबीसी के 66 वर्गों को वर्गीकृत करने वाले राज्य सरकार के कार्यकारी आदेशों में हस्तक्षेप नहीं किया गया, क्योंकि इन्हें याचिकाओं में चुनौती नहीं दी गई थी।
आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना के जरिए राज्य सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण के लिए विभिन्न वर्गों को शामिल करने की अनुमति देने वाले 2012 अधिनियम के एक खंड को भी रद्द कर गया। पीठ ने कहा कि पिछड़ा वर्ग आयोग की राय और सलाह आमतौर पर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1993 के तहत राज्य विधानमंडल के लिए बाध्यकारी है।
पीठ ने राज्य के पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग को आयोग के परामर्श से ओबीसी की राज्य सूची में नए वर्गों को शामिल करने या शेष वर्गों को बाहर करने की सिफारिशों के साथ एक रिपोर्ट विधायिका के समक्ष रखने का निर्देश दिया। जस्टिस मंथा द्वारा लिखे गए फैसले से सहमति जताते हुए जस्टिस चक्रवर्ती ने कहा, "सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता की अवधारणा किसी व्यक्ति से संबंधित है, चाहे वह व्यक्ति सामान्य वर्ग से हो या पिछड़े वर्ग से।"
उन्होंने कहा, "आरक्षण से संबंधित मानदंडों के उचित पालन में बड़े पैमाने पर समाज की हिस्सेदारी है।" उन्होंने कहा कि कानून के शासन का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए और अधिकारियों के हाथों इसका उल्लंघन नहीं होने दिया जा सकता। पीठ ने आदेश पर रोक लगाने की राज्य के अनुरोध को खारिज कर दिया।
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