बंगाल के मंदिर में दी जाती है 10,000 पशुओं की बलि, रोक की मांग; HC ने काली पूजा में बलि पर भी उठाए सवाल
- याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि दक्षिण दिनाजपुर के बोला काली मंदिर में हर नवंबर में 10,000 से अधिक जानवरों की बलि दी जाती है।
कोलकाता हाईकोर्ट में शाकाहार (वेजिटेरियन) और मांसाहार (नॉन-वेजिटेरियन) को लेकर तीखी बहस देखने को मिली। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सोमवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह "असल में विवादास्पद" है कि क्या पौराणिक पात्र वास्तव में शाकाहारी थे या मांसाहारी। इस जनहित याचिका में दक्षिण दिनाजपुर के एक मंदिर में सामूहिक पशु बलि पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। यहां हर साल नवंबर में 10,000 जानवरों की बलि दी जाती है। फिलहाल इस मुद्दे को हाईकोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश टी. एस. शिवज्ञानम की खंडपीठ के पास भेज दिया, जो इसी तरह की समान याचिकाओं की सुनवाई कर रही है।
इससे पहले न्यायमूर्ति बिस्वजीत बसु (जिन्होंने यह टिप्पणी की) और न्यायमूर्ति अजय कुमार की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। जनहित याचिका अखिल भारत कृषि गो सेवा संघ द्वारा दायर की गई थी, जिसमें पश्चिम बंगाल के विभिन्न मंदिरों में "क्रूरतापूर्ण और बर्बर तरीके से" हो रही पशु बलि को रोकने के लिए पशु कल्याण बोर्ड से तत्काल निर्देश की मांग की गई थी। जब उनके वकील से पूछा गया कि क्या वे सभी मंदिरों में प्रतिबंध चाहते हैं, तो उन्होंने कहा कि फिलहाल दक्षिण दिनाजपुर के एक विशेष मंदिर पर प्रतिबंध की मांग की जा रही है।
टाइम्स ऑऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायमूर्ति बसु ने टिप्पणी करते हुए कहा कि "आपको प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स एक्ट, 1960" की धारा 28 की वैधता को चुनौती देने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि बलि की प्रथा काली पूजा या किसी अन्य पूजा की अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है। भारत के पूर्वी भाग के नागरिक इसका पालन जरूर करते हैं, लेकिन ये अनिवार्य नहीं है। खान-पान की आदतें अलग-अलग होती हैं।"
धारा 28 में कहा गया है कि "इस अधिनियम में ऐसा कुछ भी नहीं होगा जिससे किसी समुदाय के धर्म द्वारा मांगी गई रीति से किसी पशु की हत्या अपराध माना जाए।" यानी पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 28 धार्मिक उद्देश्यों के लिए किसी भी तरह से किसी भी पशु को मारने की अनुमति देती है। खंडपीठ ने किसी भी अंतरिम राहत देने से इनकार करते हुए मामले को मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ के पास भेज दिया।
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि दक्षिण दिनाजपुर के बोला काली मंदिर में हर नवंबर में 10,000 से अधिक जानवरों की बलि दी जाती है। यह प्रथा ब्रिटिश शासन के समय से शुरू हुई, जब एक जमींदार को ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने काली माँ से प्रार्थना की, और एक शुक्रवार को उन्हें रिहा कर दिया गया। तब से यह प्रथा आरंभ हुई।
राज्य के वकील, अधिवक्ता जनरल किशोर दत्ता ने इस बात पर सवाल उठाया कि क्या किसी विशेष मंदिर में पशु बलि पर रोक लगाने के लिए दायर आवेदन को जनहित याचिका माना जा सकता है, क्योंकि इसमें "जनहित" शामिल नहीं था। दत्ता ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले मामलों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि यदि पशु बलि पर रोक लगानी हो, तो इसके लिए कानून बनाना होगा। मामला अंततः नियमित खंडपीठ के पास भेज दिया गया, जहां एक अन्य याचिका भी समान मुद्दों पर विचार के लिए लंबित है।
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