आने वाला है बारिश का मौसम, इस बार दक्षिण एशिया पर मेहरबान होगा मॉनसून; गर्मी देगी टेंशन
रिपोर्ट से स्पष्ट है कि 2025 का मॉनसून सीजन दक्षिण एशिया के बड़े हिस्से में अच्छी बारिश लेकर आ सकता है। हालांकि कुछ क्षेत्रों में सावधानी की आवश्यकता होगी।

दक्षिण-पश्चिम मॉनसून (जून से सितंबर) के दौरान इस साल दक्षिण एशिया के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है। वहीं उत्तर, दक्षिण, पूर्व और उत्तर-पूर्व के कुछ क्षेत्रों में सामान्य से कम या सामान्य वर्षा होने की संभावना जताई गई है। बुधवार को जारी "दक्षिण एशिया ग्रीष्मकालीन मॉनसून मौसम के लिए साझा पूर्वानुमान वक्तव्य" में ये बात कही गई।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के सचिव एम. रविचंद्रन ने एक बयान में कहा कि पूरे मॉनसून मौसम के दौरान दक्षिण एशिया के अधिकांश हिस्सों में न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक रहने की संभावना है, हालांकि दक्षिण-पूर्वी हिस्सों के कुछ क्षेत्रों में सामान्य न्यूनतम तापमान दर्ज होने की उम्मीद है।
अधिकतम तापमान की स्थिति
मॉनसून के दौरान अधिकतम तापमान की बात करें तो यह उत्तर, पूर्व, उत्तर-पूर्व और दक्षिण के कुछ क्षेत्रों में सामान्य से अधिक रहने की संभावना है। हालांकि, क्षेत्र के मध्य हिस्सों और दक्षिण के अधिकांश भागों में अधिकतम तापमान सामान्य से कम या सामान्य रह सकता है। आसान भाषा में कहें तो इस बार की गर्मियों में रातें (न्यूनतम तापमान) ज्यादातर हिस्सों में गर्म रहेंगी, यानी ठंडक कम महसूस होगी। वहीं, दिन के समय उत्तर, पूर्व और उत्तर-पूर्व भारत में ज्यादा गर्मी हो सकती है, जबकि मध्य और दक्षिण भारत को कुछ राहत मिल सकती है।
यह पूर्वानुमान कैसे तैयार हुआ?
यह क्षेत्रीय जलवायु पूर्वानुमान 2025 के मॉनसून सीजन के लिए तैयार किया गया है, जिसे दक्षिण एशिया की नौ राष्ट्रीय मौसम और जल विज्ञान सेवाओं ने मिलकर अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के सहयोग से विकसित किया है। यह प्रयास पुणे में आयोजित दक्षिण एशियाई जलवायु दृष्टिकोण मंच के 31वें सत्र के दौरान हुआ।
पूर्वानुमान तैयार करने में वैश्विक जलवायु स्थितियों, विभिन्न देशों के पूर्वानुमानों और अंतरराष्ट्रीय जलवायु मॉडल्स की मदद ली गई। बयान में कहा गया है कि उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दी और वसंत के दौरान बर्फ की चादर का विस्तार मॉनसून वर्षा से उलटा संबंध रखता है। जनवरी से मार्च 2025 के दौरान बर्फ की चादर का क्षेत्र सामान्य से कम रहा। जनवरी और मार्च में बर्फ की चादर का क्षेत्र पिछले 59 वर्षों में क्रमशः चौथा और छठा सबसे कम दर्ज किया गया।
ENSO और IOD का प्रभाव
पूर्वानुमान में बताया गया है कि मॉनसून पर प्रभाव डालने वाले प्रमुख वैश्विक कारकों में एल नीनो सदर्न ओस्सीलेशन (ENSO), हिंद महासागर डाइपोल (IOD), उष्णकटिबंधीय अटलांटिक सागर की सतह का तापमान, यूरेशिया की धरती की गर्मी आदि शामिल हैं। ENSO का मॉनसून पर मजबूत उलटा प्रभाव होता है। इस समय प्रशांत महासागर के भूमध्यरेखीय क्षेत्र में ENSO की तटस्थ स्थिति बनी हुई है, और यह तटस्थ स्थिति आगामी मॉनसून सीजन में भी जारी रहने की संभावना है।
वहीं, हिंद महासागर डाइपोल की बात करें तो इसकी सकारात्मक स्थिति मजबूत मॉनसून से जुड़ी होती है, जबकि नकारात्मक स्थिति कमजोर मॉनसून से। फिलहाल IOD भी तटस्थ स्थिति में है, और यह भी मॉनसून के दौरान ऐसी ही बनी रह सकती है।
भारत के लिए इसका क्या महत्व है?
खेती पर सीधा असर पड़ेगा
भारत में 60% से ज्यादा खेती मॉनसून की बारिश पर निर्भर करती है। अगर बारिश अच्छी होती है, तो:
- खेतों में पानी भरपूर मिलेगा
- फसलें अच्छी होंगी (जैसे धान, गन्ना, कपास आदि)
- किसानों की आमदनी बढ़ेगी
- अगर कहीं कम बारिश होती है, तो वहां सूखा पड़ सकता है और फसलें खराब हो सकती हैं।
कुल मिलाकर यह पूर्वानुमान भारत के किसानों, आम जनता, सरकार और अर्थव्यवस्था - सबके लिए बहुत जरूरी है। इससे पहले से ही सही योजनाएं बनाई जा सकती हैं ताकि फसल, खाद्य पदार्थ, पानी और बिजली का सही प्रबंधन हो सके।
इस रिपोर्ट से स्पष्ट है कि 2025 का मॉनसून सीजन दक्षिण एशिया के बड़े हिस्से में अच्छी बारिश लेकर आ सकता है। हालांकि कुछ क्षेत्रों में सावधानी की आवश्यकता होगी, जहां सामान्य या कम वर्षा की संभावना है। कृषि, जल प्रबंधन और आपदा प्रबंधन से जुड़ी एजेंसियों के लिए यह पूर्वानुमान बेहद महत्वपूर्ण है।
कैसा रहेगा आपके शहर का मौसम, जानें
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।