उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अलग-अलग धर्म वाले प्रेमी जोड़े को सुरक्षा देने के लिए रखी यह शर्त
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पुलिस सुरक्षा मांगने वाले एक अंतर धार्मिक कपल को समान नागरिक संहिता के तहत रजिस्ट्रेशन कराने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि इसके बाद 6 हफ्ते तक पुलिस उन्हें सुरक्षा देगी।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पुलिस को अनोखा आदेश देते हुए कहा है कि वह लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे अंतरधार्मिक (अलग-अलग धर्म) कपल को सुरक्षा प्रदान करे। शर्त यह है कि कपल को 48 घंटे के अंदर समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के तहत खुद को पंजीकृत कराना होगा। यह आदेश इसलिए भी हैरान करने वाला है क्योंकि यूसीसी को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित और राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किए जाने के बावजूद पहाड़ी राज्य में अभी तक लागू नहीं किया गया है।
लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल के पंजीकरण को लेकर अभी तक कोई दिशा-निर्देश नहीं बनाए गए हैं। सरकारी वकील अमित भट्ट ने आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'मामले का प्रतिनिधित्व करने वाले जूनियर सरकारी वकील को पता नहीं था कि यूसीसी को अभी लागू किया जाना है। यह एक गलतफहमी थी, और यूसीसी से संबंधित हिस्से को संशोधित आदेश जारी करने के लिए आदेश से हटा दिया जाएगा।' उन्होंने कहा कि शनिवार को एक रिकॉल आवेदन दायर किया जाएगा।
क्या है मामला
कोर्ट यह आदेश लिव-इन में रह रही 26 साल की हिंदू महिला और 21 साल के मुस्लिम युवक द्वारा दाखिल याचिका को लेकर दिया था, जो कुछ समय से साथ रह रहे थे। कपल ने अदालत को बताया कि वे दोनों वयस्क हैं, अलग-अलग धर्मों के हैं और लिव-इन रिलेशनशिप में साथ रह रहे हैं, जिसके कारण याचिकाकर्ताओं में से एक के माता-पिता और भाई ने उन्हें धमकियां देना शुरू कर दिया था।
डिप्टी सरकारी वकील जे.एस. विर्क ने मामले पर बहस करते हुए उत्तराखंड यूसीसी अधिनियम की धारा 378 (1) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि 'राज्य के अंदर लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों के लिए, उत्तराखंड में उनकी रेजीडेंसी स्टेटस के बावजूद, धारा 381 की उप-धारा (1) के तहत लिव-इन रिलेशनशिप की डिटेल रजिस्ट्रार को देनी जरूरी होगी जिसके अधिकार क्षेत्र में वे रह रहे हैं।'
जस्टिस मनोज तिवारी और जस्टिस पंकज पुरोहित की पीठ ने गुरुवार को कहा, 'हम इस रिट याचिका का निपटारा इस शर्त के साथ करते हैं कि अगर याचिकाकर्ता 48 घंटे के अंदर उक्त अधिनियम के तहत पंजीकरण के लिए आवेदन करते हैं, तो एसएचओ याचिकाकर्ताओं को छह हफ्ते तक पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करेगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निजी प्रतिवादियों या उनकी ओर से काम करने वाले किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उन्हें किसी तरह का नुकसान न पहुंचाया जाए। छह हफ्ते की अवधि खत्म होने पर, संबंधित एसएचओ याचिकाकर्ताओं को खतरे का आकलन करेगा और उसपर आवश्यकतानुसार कदम उठाएगा।'
कपल के वकील मोहम्मद मतलूब ने टीओआई को बताया कि जब कपल अदालत के आदेश का पालन करने के लिए यूसीसी के तहत पंजीकरण कराने के लिए सब-रजिस्ट्रार कार्यालय पहुंचे, तो अधिकारी ने कहा कि उनके पास ऐसा कोई सिस्टम नहीं है, क्योंकि राज्य सरकार द्वारा यूसीसी कार्यान्वयन के लिए दिशानिर्देश जारी नहीं किए गए हैं।
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