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सूर्य ग्रहण अवधि खत्म होने के बाद गंगा में लगी आस्था की डुबकी, 27 साल बाद दिखा ऐसा अद्भुत संयोग

साल का दूसरा सूर्य ग्रहण खत्म हो गया है। 27 साल के बाद दिवाली के ठीक दूसरे दिन सूर्य ग्रहण लगा था। सूर्य ग्रहण की अवधि खत्म होने के बाद भारी संख्या में लोगों ने गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाई। 

Himanshu Kumar Lall देहरादून। हिन्दुस्तान टीम, Tue, 25 Oct 2022 08:34 PM
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साल का दूसरा सूर्य ग्रहण खत्म हो गया है। 27 साल के बाद दिवाली के ठीक दूसरे दिन सूर्य ग्रहण लगा था। सूर्य ग्रहण की अवधि खत्म होने के बाद लोगों ने गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाई। मंगलवार शाम सदी के आखिरी सूर्य ग्रहण का सूतक खत्म होते ही श्रद्धालुओं ने पतित पावनी गंगा में डुबकी लगायी।

घाट परिसर में मौजूद भिक्षुओं को दान देकर पुण्य कमाया। वहीं तड़के सुतक काल के चलते बंद हुए मंदिरों के कपाट भी खोल दिए गए। दीवाली के अगले दिन मंगलवार को कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या का ग्रहण सूतक लगने के बाद तीर्थनगरी में मुखर्जी मार्ग में गोपाल मंदिर, अद्वैतानंद मार्ग, त्रिवेणीघाट आदि मार्गों में सोमेश्वर, बनखंडी, वीरभद्र महादेव आदि मंदिरों के कपाट तड़के से ही बंद रहे।

दोपहर तक श्रद्धालु त्रिवेणीघाट परिसर और घरों में कीर्तन भजन करते रहे। कई घरों में सुबह नियमित पूजा पाठ भी नहीं किया गया। सूर्यग्रहण के असर को कम करने के लिए दूध और खाने के बर्तन में तुलसी के पत्ते डाले गए। शाम करीब 5.36 बजे ग्रहण का मध्यकाल शुरू हुआ और श्रद्धालुओं ने त्रिवेणीघाट का रुख किया। ग्रहण

का मोक्षकाल शाम 6.30 बजे रहा। त्रिवेणीघाट में श्रद्धालुओं ने पतित पावनी गंगा में डुबकी लगायी। विधिविधान से पूजा-अर्चना और अन्न, वस्त्र आदि का दान देकर पुण्य अर्जित किया। पंडित कमल डिमरी ने बताया कि सूर्य ग्रहण खत्म होने के बाद गंगा में स्नान की मान्यता है। यही वजह है कि ऋषिकेश में गंगा स्नान के लिए घाटों में श्रद्धालु पहुंचे।

काली पूजा धूमधाम से संपन्न
अधिष्ठात्री देवी महाकाली की पूजा दीपावली अमावस्या को गौरीशंकर महादेव त्रिवेणी घाट ऋषिकेश में आस्था और उल्लास के साथ संपन्न हुई। कार्यक्रम का शुभारंभ अथर्ववेदाचार्य महंत गोपाल गिरी की अध्यक्षता में हुआ। कोलकाता से पंडित बी चटर्जी, सुबेंद्र गोस्वामी ने काली‌ का पुराण मतानुसार अनुष्ठान आदि संपन्न करवाया। पूजा के साथ चंडी पाठ हवन हुआ।

माता को नैवेद्य, खीर, खिचड़ी, सब्जी का भोग लगाकर प्रसाद बांटा गया। मंगलवार को सूर्यग्रहण के सूतक के कारण 2.45 बजे मंदिर बंद कर दिया गया, जो बुधवार को गोवर्धन पूजा के बाद खोले जाएंगे। फोटो कैप्शन 26 आरएसके 01 ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट स्थित दुर्गा मंदिर मंगलवार सुबह सूर्य ग्रहण के सूतक के चलते बंद रहा।

सूर्य ग्रहण : मंदिर रहे बंद, सुबह की गंगा आरती नहीं हुई
सूर्य ग्रहण के सूतक के कारण मंगलवार सुबह की गंगा आरती नहीं हुई। सुबह 4 बजे के बाद ही मंदिरों को बंद कर दिया गया था। ग्रहण समाप्त होने के बाद शाम को गंगा आरती हुई। आरती से पहले स्थानीय लोगों ने हरकी पैड़ी पर गंगा स्नान किया। दीपावली के एक दिन बाद सूर्य ग्रहण शाम चार बजकर 29 मिनट पर शुरू होकर शाम 6 बजकर 9 मिनट पर खत्म हुआ।

ग्रहण काल से करीब 12 घंटे पहले सूतक काल सुबह चार बजे शुरू हो गया था। जिसके चलते हरकी पैड़ी समेत अन्य मंदिरों में सुबह की आरती नहीं हुई और सूतक काल में मंदिर भी बंद रहे। पंडितों का कहना है कि ग्रहण काल में किया गया जप, तप और दान अश्वमेघ यज्ञ के बराबर होता है।

दीपावली के अगले ही दिन सूर्य ग्रहण होने के कारण मंगलवार को सुबह से मठ मंदिरों में ताला लगा रहा। हरकी पैड़ी गंगा घाट पर गंगा मंदिर समेत सभी मंदिर सूतक के चलते बंद रहे। सूतक के कारण हरकी पैड़ी पर होने वाली सुबह की गंगा आरती भी नहीं की गयी। सूर्य ग्रहण काल के दौरान गंगा घाट के आसपास श्रद्धालु जप करते दिखे।

ग्रहण काल खत्म होने के बाद गंगा घाट पर काफी संख्या में श्रद्धालु गंगा घाट पर स्नाान करने पहुंचे। तीर्थ पुरोहित पंडित उज्ज्वल पंडित ने बताया कि ग्रहण काल के दौरान जप और तप करना तो लाभकारी होता ही है। वहीं ग्रहण काल खत्म होने के बाद पवित्र गंगा में स्नान कर दान पुण्य करना भी हितकर होता है।

27 साल बाद फिर हुआ
करीब 27 साल बाद ऐसा हुआ है कि दिवाली के दूसरे दिन सूर्य ग्रहण लगा है। इससे पहले यह खगोलीय घटना 24 अक्तूबर 1995 को दिवाली के दूसरे दिन हुई थी।

लोगों ने किया गंगा स्नान
शाम को ग्रहण समाप्त होने के बाद यात्रियों के अलावा स्थानीय लोगों ने भी गंगा स्नान किया। ग्रहण समाप्त होने के बाद शहर के कई हिस्सों में लोगों ने आतिशबाजी भी की।

सूर्य ग्रहण का सूतक लगते ही बंद हुए मंदिरों के कपाट
रुड़की।
सूर्य ग्रहण के चलते मंदिरों के कपाट बंद रहे। इस दौरान लोगों ने जप आदि किया। ग्रहण खत्म होने के बाद स्नान किया गया। मंदिरों को विधि-विधान से खोला गया। ग्रहण यूं तो वैज्ञानिक घटना है। लेकिन धार्मिक तौर पर भी ग्रहण से कई बातें जुड़ी हुई मानी जाती है। इस बाद दिवाली के अगले दिन सूर्य ग्रहण पड़ा।

आईआईटी परिसर के सरस्वती मंदिर के पुजारी आचार्य राकेश शुक्ल ने बताया कि ग्रहण स्वाति नक्षत्र और तुला राशि में घटित हुआ। इस ग्रहण का विश्व पर प्रभाव रहेगा। 12 राशियों पर ग्रहण का प्रभाव अलग-अलग रहा। बताया सूर्य ग्रहण काल का सूतक रात ढाई बजे से शुरू हो गया, जो ग्रहण की समाप्ति तक रहा। रात को ग्रहण लगते ही मंदिरों के कपाट बंद कर दिए गए।

शहर के सभी मंदिरों के कपाट श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिए गए। ग्रहण के दौरान मूर्तियों को नहीं छुआ जाता। इसलिए घरों में बने मंदिरों में भी इस दौरान लोगों ने पूजा-पाठ नहीं किया। इस दौरान लोगों ने जप किए। मान्यता है कि सूतक काल के दौरान और ग्रहण काल के दौरान भोजन करना, तेल लगाना, सोना निषेध माना गया है।

इस दौरान स्नान, दान, श्राद्ध, तर्पण आदि करने से हजार गुना अधिक फल प्राप्त होता है। आचार्य शुक्ल ने बताया कि ऐसा कहा गया है की ग्रहण स्पर्श के समय स्नान और जब मध्य में होम तथा देवताओं का पूजन और समाप्ति के समय दान और स्नान का विशेष महत्व होता है। ग्रहण शाम 6:30 बजे समाप्त हुआ।

इसके बाद लोगों ने स्नान आदि कर घरों में सफाई की। ग्रहण खत्म होने के बाद मंदिरों के कपाट को भी विधि-विधान के साथ खोल दिया गया। कई लोग गंगा स्नान के लिए हरिद्वार गए। इसके बाद अब अगले महीने चंद्रग्रहण है। यह इस साल का आखिरी सूर्य ग्रहण था।

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