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कोरोना इफेक्ट: इंजीनियरिंग और एमएससी वाले मनरेगा में तलाश रहे मजदूरी

कोरोना के कारण रोजगार छिनने के बाद चम्पावत लौटे प्रवासियों की आर्थिक स्थिति दिन पर दिन खस्ता होती जा रही है। हालात ये हैं कि एमएससी, एमसीए, बीटेक, एमटेक, सिविल इंजीनियरिंग, मैकेनिकल इंजीनियरिंग,...

Himanshu Kumar Lall हिन्दुस्तान टीम, चम्पावत | नवीन भट्ट, Wed, 12 Aug 2020 11:57 AM
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कोरोना के कारण रोजगार छिनने के बाद चम्पावत लौटे प्रवासियों की आर्थिक स्थिति दिन पर दिन खस्ता होती जा रही है। हालात ये हैं कि एमएससी, एमसीए, बीटेक, एमटेक, सिविल इंजीनियरिंग, मैकेनिकल इंजीनियरिंग, पॉलीटेक्निक, होटल मैनेजमेंट जैसे महत्वपूर्ण डिप्लोमा के साथ महानगरों में नौकरी करने वाले तमाम लोग गांव पहुंचकर चार-पांच माह से बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। 

ये डिप्लोमाधारी लोग गांव में रहकर मनरेगा में दिहाड़ी मजदूरी तक को भी तैयार हैं। इसके बावजूद काम नहीं मिल रहा है। इससे पढ़े-लिखे बेरोजगारों के सामने आर्थिक संकट गहराता जा रहा है। परिवार का भरण पोषण मुश्किल पड़ने लगा है। रोजगार को तरस रहे ये लोग कोरोना खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं ताकि वह दोबारा महानगरों को लौट सकें। 


मैंने मुरादाबाद से मैकेनिकल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा लिया है। पहले रुद्रपुर सिडकुल में नौकरी की बाद में हरियाणा चला गया। लॉकडाउन के कारण तीन-चार माह से गांव में बेरोजगार बैठा हूं। मनरेगा में काम करने की दिलचस्पी दिखाई थी, लेकिन गांव में काम नहीं मिल पाया है।
मुकेश सिंह ग्राम लड्डी, न्याय पंचायत चौड़ाकोट पाटी


मैंने सिविल से पॉलीटेक्निक किया है। लॉकडाउन से पूर्व मैं हल्द्वानी था। लॉकडाउन के बाद से गांव पहुंचा हूं। तीन माह-चार माह से मनरेगा की मजदूरी भी नसीब नहीं हो पा रही है। कोरोना खत्म होने के बाद बाहर जॉब की तलाश करुंगा। फिलहाल गांव में ही काम मिल जाता तो दिनचर्या चल जाती। 
नीरज कुमार निवासी फरतोला बाराकोट

 

मैंने आईटीआई बरेली से की है। लॉकडाउन के दौरान शाहजहापुर में फंस गया था। यहां पहुंचने पर क्वारंटाइन कर दिया गया था। घर चलाने का जिम्मा हम दो भाइयों पर है। तीन-चार माह से काम तलाश रहा हूं, पर काम नहीं मिल रहा। मैंने मनरेगा में काम में दिलचस्पी दिखाई थी। अब तक जॉब कार्ड नहीं बन पाया है।
शाहरुख खान निवासी बैलबंदगोठ बनबसा

 

मैं सिविल इंजीनियरिंग का डिप्लोमाधारी हूं। डिप्लोमा के बाद में दिल्ली में मेडिकल लाइन में काम कर रहा था। कोरोना महामारी के चलते लागू लॉकडाउन के कारण गांव लौटना पड़ा था।  बीडीसी सदस्य से जॉब कार्ड बनवाने का आग्रह किया था। मगर अब तक जॉबकार्ड भी नहीं बन पाया है। 
कुंदन सिंह निवासी सुंगराखाल बाराकोट

 


अब तक कई प्रवासियों को रोजगार से जोड़ चुके हैं। अन्य को भी रोजगार से जोड़ने की कोशिश है। पीएमईजीपी, एमएसएमई, सीएम स्वरोजगार आदि योजनाओं को स्वीकृति मिल चुकी है। इसे लेकर 14 अगस्त को बैंकर्स के साथ बैठक है। जिसे भी जॉबकार्ड बनाने में दिक्कत हो रही है, वह मुझसे या संबंधित बीडीओ को तत्काल इसकी जानकारी दें।
राजेंद्र सिंह रावत, सीडीओ, चम्पावत 


 

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