भूकंप से होने वाले नुकसान को यह काम कर हो सकता है बचाव, IIT रुड़की के शोध में खुलासा
आईआईटी (IIT) रुड़की के शोध छात्र और दो प्रोफेसरों का लेख अमेरिका के जर्नल जियोटेक्सटाइल एंड जियोमेम्ब्रेन में प्रकाशित हुआ। दावा है कि पुरानी प्लास्टिक बोतलों से भूकंप के नुकसान को कम किया जा सकता है।
आईआईटी (IIT) रुड़की के शोध छात्र और दो प्रोफेसरों का लेख अमेरिका के जर्नल जियोटेक्सटाइल एंड जियोमेम्ब्रेन में प्रकाशित हुआ है। इसमें दावा किया गया है कि पुरानी प्लास्टिक बोतलों से भूकंप के समय होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। आईआईटी के शोध छात्र अर्पित जैन, प्रोफेसर सत्येंद्र मित्तल, आस्ट्रेलिया के एडिथ कोवन विवि के प्रोफेसर संजय शुक्ला के तीन साल के शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला है।
प्रो. मित्तल ने बताया कि भूकंप के दौरान ऐसे स्थानों पर जहां रेतीली जमीन के साथ भूगर्भ जल जमीनी सतह के पास हो, वहां भूकंप के दौरान जमीन एक तरल पदार्थ की तरह बर्ताव करने लगता है। ऐसी जमीन पर बनी इमारतें या तो पूरी तरह जमींदोज हो जाती हैं या तिरछी हो जाती हैं।
ऐसी घटना को भूमि का लिक्वफेक्शन कहा जाता है। गुजरात के भुज, जापान के निगाटा और कोबे शहरों में ऐसी घटनाएं हो चुकी है। दुर्घटना का अन्य कारण भूकंप की अधिक तीव्रता होना और जमीन का अपेक्षित घनत्व कम होना भी होता है। पूर्व में प्रो. मित्तल के शोध से पता चला था कि भूमि क्षेत्र का अपेक्षित घनत्व साठ फीसदी से अधिक हो तो लिक्वफेक्शन से होने वाला नुकसान या तो नहीं होता है या बेहद कम होता है।
इसी आधार पर शोध छात्र अर्पित जैन ने अपने शोध में साबित किया कि जहां भूमि क्षेत्र कमजोर हो और वो क्षेत्र भूकंप जोन में स्थित है तो उस क्षेत्र को मजबूत बना देने से लिक्वफेक्शन आधारित नुकसान को पूरी तरह रोका जा सकता है। भूमि क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए पुरानी प्लास्टिक बोतलों को छोटे-छोटे चिप्स के आकार में काटकर उसको मिट्टी में मिलाकर कमजोर भूमि की मिट्टी हटाकर वहां प्लास्टिक चिप्स व मिट्टी का मिश्रण डालकर उसको कांपेक्ट कर देने से नुकसान को खत्म किया जा सकता है।
ऐसे किया शोध
शोध छात्र अर्पित ने आईआईटी रुड़की की प्रयोगशाला में मौजूद साइकिलिक ट्राइएकिसएल टेस्ट उपकरण की मदद से शोध किया। भूकंप की तीव्रता को उपकरण में उत्पन्न कराकर प्लास्टिक की बोतल की अलग-अलग मात्रा को मिट्टी में मिलाकर सैंकड़ों बार प्रयोग किया। इसमें पाया कि मिट्टी में उपयुक्त मात्रा में प्लास्टिक के चिप्स मिलाकर कमजोर मिटटी में अपेक्षित घनत्व पाया जा सकता है। प्रो. मित्तल ने बताया कि इसका पेटेंट कराया जा रहा है।
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