मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी पहुंचा हाईकोर्ट, UCC को बताया शरिया कानून के खिलाफ; पहले उठे थे लिव इन पर सवाल
- उत्तराखंड बार काउंसिल की पूर्व अध्यक्ष रजिया बेग और अन्य ने वरिष्ठ अधिवक्ता एमआर शमशाद के माध्यम से शुक्रवार को हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें यूसीसी को शरिया कानून के खिलाफ होने की दलील देते हुए इसे चुनौती दी गई है।
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समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी हाईकोर्ट पहुंच गया है। याचिका उत्तराखंड बार काउंसिल की पूर्व अध्यक्ष रजिया बेग और अन्य की ओर से शुक्रवार को दायर की गई है। वहीं एक मामले में लिव इन रिलेशनशिप के पंजीकरण को लेकर राज्य सरकार ने जवाब पेश करने के लिए हाईकोर्ट से समय मांगा है।
UCC को बताया शरिया कानून के खिलाफ
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ में शुक्रवार को मामले की सुनवाई हुई। अदालत ने यूसीसी की अन्य सभी याचिकाओं के साथ इस याचिका पर भी सुनवाई के लिए एक अप्रैल की तिथि निर्धारित की है। उत्तराखंड बार काउंसिल की पूर्व अध्यक्ष रजिया बेग और अन्य ने वरिष्ठ अधिवक्ता एमआर शमशाद के माध्यम से शुक्रवार को हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें यूसीसी को शरिया कानून के खिलाफ होने की दलील देते हुए इसे चुनौती दी गई है।
कोर्ट ने सरकार से शामिल होने को कहा
कोर्ट ने इस मामले में भी सरकार को नोटिस जारी कर यूसीसी को चुनौती देने वाले अन्य मामलों संग सुनवाई के लिए इसे सम्मिलित किया है। मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शुक्रवार को अपने फेसबुक अकाउंट में इससे संबंधित एक लेटर शेयर कर इसकी जानकारी दी है। बताया है कि रजिया बेग समेत अन्य के माध्यम से यूसीसी को चुनौती दी गई है।
पहले उठे थे लिव इन पर सवाल
राज्य सरकार द्वारा लागू की गई समान नागरिक संहिता में लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता और रजिस्ट्रेशन के फॉर्मेट को असंवैधानिक ठहराए जाने को लेकर लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे एक जोड़े ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। बीती 18 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने केंद्र और राज्य सरकार को दो दिन के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा था। इस क्रम में शुक्रवार को राज्य और केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखा। वे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश हुए।
तुषार मेहता ने इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए हाईकोर्ट से समय मांगा, जिससे कुछ ऐसा सुझाया जा सके जो कोर्ट और याचिकाकर्ता को संतुष्ट कर सके। याचिकाकर्ता जोड़े की तरफ से बहस करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने बताया कि लिव इन रजिस्ट्रेशन के लिए कई पुराने विवरण मांगे जा रहे हैं, जो व्यक्ति की निजता का हनन है। सरकार को किसी व्यक्ति की निजता को जानने का अधिकार नहीं है। रजिस्ट्रेशन में इस तरह के प्रावधान पक्षपातपूर्ण भी हैं। दलील दी कि शादी के रजिस्ट्रेशन में ऐसी सूचनाएं नहीं मांगी जा रही हैं, जैसी कि लिव इन रिलेशन के रजिस्ट्रेशन के लिए मांगी जा रही हैं। याचिकाकर्ता जोड़े में युवक महाराष्ट्र का और युवती रानीखेत की निवासी है।
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