2,448 हेक्टेयर पर एक फॉरेस्ट गार्ड, कैसे बुझेगी उत्तराखंड के जंगलों की आग; एमिकस क्यूरी ने क्या-क्या बताई खामियां
Uttarakhand Forest Fire: ऋषिकेश-देहरादून रोड के किनारे बड़कोट वन क्षेत्र में पत्तियां जलाने को लेकर एमिकस क्यूरी (न्यायालय का मित्र) ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को दे दी है। एमिकस क्यूरी ने कई खामियां गिनाई हैं।
ऋषिकेश-देहरादून रोड के किनारे बड़कोट वन क्षेत्र में पत्तियां जलाने को लेकर एमिकस क्यूरी (न्यायालय का मित्र) ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को दे दी है। एमिकस क्यूरी का कहना है कि जंगल की आग के प्रभावी प्रबंधन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की कमी है। इससे पहले अप्रैल में एनजीटी ने मामले में सहायता के लिए वकील गौरव बंसल को एमिकस क्यूरी (न्यायालय का मित्र) नियुक्त किया था।
14 अक्टूबर की तारीख वाली यह रिपोर्ट पिछले हफ्ते एनजीटी को सौंपी गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में वन अग्नि प्रबंधन में रुकावट डालने वाली अहम कमियों और उल्लंघनों को दूर करना जरूरी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड प्रभावी वन अग्नि प्रबंधन के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे की कमी से जूझ रहा है। इसमें अग्निशमन उपकरणों (जैसे प्रोटेक्टिव चश्मे, प्रोटेक्टिव गियर, हथियार आदि) की कमी, दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए अपर्याप्त पेट्रोलिंग वाहन और आग की आपात स्थिति के दौरान समन्वय और समय पर प्रतिक्रिया के लिए आवश्यक वायरलेस और सैटेलाइट फोन जैसे कम्युनिकेशन उपकरणों की कमी शामिल है।
रिपोर्ट की मानें तो वन विभाग बुनियादी ढांचे की चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसमें बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए नए ढांचे की कमी और कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि और फॉरेस्ट गार्ड या फोरेस्टर चौकियों का दूरदराज के इलाकों में स्थित होना शामिल है, जहां बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, 'प्रभावी अग्नि प्रबंधन के लिए फायर लाइनों का निर्माण और रखरखाव जरूरी है। हालांकि, उत्तराखंड सरकार ने काफी समय से अपनी फायर लाइनों की समीक्षा नहीं की है, जिसका असर राज्य के अग्नि प्रबंधन प्रयासों पर पड़ रहा है।'
रिपोर्ट के अनुसार, प्रत्येक 2,448 हेक्टेयर वन क्षेत्र पर केवल एक फॉरेस्ट गार्ड है, जो अवैध कटाई, खनन, वन्यजीव शिकार और अन्य वन एवं वन्यजीव संबंधी अपराधों को नियंत्रित करने के लिए भी जिम्मेदार है। इसमें कहा गया है, 'सबसे खराब बात यह है कि उत्तराखंड में अवैध कटाई की वजह से राजस्व के नुकसान की भरपाई फॉरेस्ट गार्ड या फॉरेस्टर के वेतन से करने की व्यवस्था है। एकमात्र फॉरेस्ट गार्ड द्वारा जंगल को बचाना असंभव काम है।'
इसमें यह भी कहा गया कि एक और कमी यह है कि वन विभाग के दिहाड़ी कर्मचारियों और अस्थायी कर्मचारियों के पास बीमा कवरेज नहीं है। रिपोर्ट में एनजीटी को यह भी सुझाव दिया गया है कि ड्यूटी के दौरान अपनी जान गंवाने वाले वन कर्मियों को शहीद का दर्जा दिया जाना चाहिए। यह भी सिफारिश की गई है कि जंगलों की आग से निपटने वाले नोडल कार्यालय को राज्य सरकार द्वारा कोई अतिरिक्त प्रभार नहीं दिया जाना चाहिए।
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