-छह महीने में कुमाऊं का 874.03 हेक्टेयर जंगल जलकर राख
कुमाऊं के जंगलों के लगातार धधकने से पहाड़ों की मिट्टी कमजोर पड़ रही है। अभी वन संपदा और वन्यजीवों के लिए मुसीबत बनी वनाग्नि आने वाले मानसून काल में...
-छह महीने में कुमाऊं का 874.03 हेक्टेयर जंगल जलकर राख
-आग से कमजोर पड़ी मिट्टी, तेज और लगातार बारिश में होगा कटान
समीर बिसारिया
हल्द्वानी। कुमाऊं के जंगलों के लगातार धधकने से पहाड़ों की मिट्टी कमजोर पड़ रही है। अभी वन संपदा और वन्यजीवों के लिए मुसीबत बनी वनाग्नि आने वाले मानसून काल में आपदा के खतरों की वजह बन सकती है। भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि जंगलों की आग से मिट्टी ढीली पड़ने और नमी खत्म होने से इस बार की बारिश में भू-कटान और भूस्खलन की घटनाएं बीते सालों के मुकाबले दोगुनी तक हो सकती हैं।
जनवरी से लेकर अब तक कुमाऊं का 874.03 हेक्टेयर जंगल जल चुका है। इसका असर अब जमीन के अंदर की नमी तक पहुंच चुका है। दरअसल, पर्वतीय क्षेत्र के जंगलों में हरे-भरे पेड़ों की जड़ें और जंगल की वनस्पति नमी रखने के साथ पहाड़ की मिट्टी को जकड़े रहकर इसे मजबूती देते हैं। इस बार भीषण वनाग्नि में बड़ी मात्रा में पेड़ और वनस्पति खाक होने से नमी पर असर पड़ा है और मिट्टी भी ढीली पड़ गई है। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार, ऐसे में सबसे ज्यादा खतरा नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर, चम्पावत, पिथौरागढ़ से निकलने वाली नदियों में आने वाले मलबे और बोल्डरों से पैदा हो सकता है।
जमीन में हो रहे बदलाव
- तापमान की अधिकता और आग से जमीन की नमी खत्म और मिट्टी ढीली पड़ रही है।
- मिट्टी के फूलने-सिकुड़ने के साथ, दरारें भी पड़ रही हैं।
- शुरुआती बारिश में मिट्टी की ऊपरी परत बड़ी मात्रा में बह सकती है।
- सूखी जमीन में पानी पहुंचने के बाद अंदरूनी संरचना खिसकने और चटकने की प्रक्रिया हो सकती है।
- मूसलाधार और तेज बारिश मिट्टी का कटान करेगी और मलबे को बहा ले जाएगी।
- मिट्टी ढीली पड़ने की वजह से बहाव में बोल्डरों के आने का भी खतरा बढ़ा है।
- पानी का ब्लॉकेज और तेज बहाव, बड़े इलाके को आपदा की चपेट में ले सकता है।
इन नदियों से बढ़ेगा खतरा
भू वैज्ञानिकों ने पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, बागेश्वर, चम्पावत और नैनीताल में बहने वाली कोसी, सुयाल, सरयू, गोमती, पूर्वी-पश्चिमी रामगंगा, दाबका और गौला नदियों में इस मानसून में भारी मात्रा में मलबा बहने और इनसे बड़े इलाके में भू-कटान का अंदेशा जताया है। इससे निपटने के उपाय जल्द करने की सलाह भी दी है।
ये हैं आपदा प्रबंधन के इंतजाम
- भू-स्खलन क्षेत्र को चिह्नित कर सुरक्षा के इंतजाम शुरू कर दिए गए हैं।
- जेसीबी की संख्या दोगुना तक बढ़ाई, नैनीताल जिले में 30 से बढ़ाकर 60 की।
- खैरना और नैनीताल में एसडीआरएफ और भवाली में एनडीआरएफ की तैनाती।
- कुमाऊं के सभी जिलों के अग्निशमन अधिकारियों को अलर्ट कर दिया गया है।
- नैनीताल जिले में 42 रेस्क्यू सेंटर चिह्नित कर व्यवस्थाओं की पूर्ति कराई जा रही है।
बीते छह माह में इतनी बार धधके जंगल
पिथौरागढ़-115
अल्मोड़ा-78
बागेश्वर-36
चम्पावत-71
नैनीताल-100 (करीब)
कोट....
जमीन के अंदर पानी का रिसाव और ठहराव दिक्कतें पैदा करेगा। आग और तापमान की वजह से जिन स्थानों पर मिट्टी ज्यादा हल्की हुई है वहां भू-स्खलन की घटनाएं ज्यादा होंगी। शुरुआती बारिश में मिट्टी की ऊपरी परत निकल सकती है।
-प्रो. राजीव उपाध्याय. भू-गर्भ वैज्ञानिक, कुमाऊं विवि, नैनीताल
मूसलाधार बारिश वाले क्षेत्र में अधिक भू-कटान और भू-स्खलन हो सकता है। नदियों के किनारे स्थित जंगलों में सबसे ज्यादा भूस्खलन होगा। जंगल की मिट्टी ढीली पड़ चुकी है। यह सबसे बड़ा कारण है। मलबा बड़ी समस्या बनेगा।
-डॉ. बीआर पंत, एचओडी, भूगोल विभाग, एमबीपीजी कॉलेज, हल्द्वानी
आपदा प्रबंधन की पूरी तैयारी है। संसाधन लगातार बढ़ाए जा रहे हैं। मानसून को लेकर मौसम विभाग से लगातार अपडेट लिया जा रहा है। सुरक्षा दलों की तैनाती कर दी गई है। संबंधित विभागों के समन्वय से इंतजाम किए जा रहे हैं।
-शैलेश कुमार, जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी, नैनीताल
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