दिल्ली समेत यूपी के 17 जिलों में यमुना का डूब क्षेत्र घोषित, सीडब्ल्यूसी ने एनजीटी को सौंपी रिपोर्ट
- केंद्रीय जल आयोग ने दिल्ली समेत उत्तर प्रदेश के 17 जिलों में यमुना नदी का डूब क्षेत्र घोषित कर दिया है। आयोग ने इसकी विस्तृत रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंप दी है। इसकी अधिसूचना भी जारी की गई है। अब डूब क्षेत्र के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के सभी आदेश अत्याधिक प्रभावी हो जाएंगे।
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केंद्रीय जल आयोग ने दिल्ली समेत उत्तर प्रदेश के 17 जिलों में यमुना नदी का डूब क्षेत्र घोषित कर दिया है। आयोग ने इसकी विस्तृत रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंप दी है। इसकी अधिसूचना भी जारी की गई है। अब डूब क्षेत्र के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के सभी आदेश अत्याधिक प्रभावी हो जाएंगे। यमुना का डूब क्षेत्र निर्धारित करने के लिए एनजीटी में लंबे समय से दो याचिकाओं की सुनवाई चल रही थी। वर्ष 2018 में जैकब कोसी बनाम केंद्र और 2022 में डा. शरद गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य की याचिकाओं की सुनवाई के दौरान एनजीटी ने 2018 में केंद्रीय जल आयोग, जलशक्ति मंत्रालय को यमुना के क्रिटीकल रीच 'असगरपुर से इटावा' और 'शाहपुर से प्रयागराज' तक फ्लड जोन के चिन्हांकन के निर्देश दिए गए थे। इसके बाद ओए 316/2022 में पारित आदेश के तहत सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग उत्तर प्रदेश को यमुना में फ्लड जोन के चिन्हांकन की रिपोर्ट 30 नवंबर 2024 तक पेश करने को कहा गया था।
साथ ही 21 दिसंबर 2024 तक इसका गजट नोटीफिकेशन करने के निर्देश भी दिए गए थे। इसके अनुपालन में केंद्रीय जल आयोग ने 30 नवंबर 2024 को दिल्ली समेत प्रदेश के 17 जिलों में फल्ड जोन की अंतिम रिपोर्ट लैटीट्यूड और लोंगीट्यूड के साथ आयोग को उपलब्ध कराई थी। इसके बाद 5 दिसंबर 2024 तक सभी खंडों का भौतिक परीक्षण किया गया। एनजीटी में संबंधित रिपोर्ट पेश करने के बाद केंद्रीय जल आयोग ने 21 दिसंबर 2024 को डूब क्षेत्र की अधिसूचना भी जारी कर दी है। एनजीटी में डा. शरद गुप्ता की ओर से दिल्ली की ला फर्म एएनजी सालिसिटर के अधिवक्ता अंशुल गुप्ता और ऋषभ धारिया ने पैरवी की थी।
हैदराबाद की कंपनी ने बनाई रिपोर्ट
दिल्ली समेत यूपी के 17 जिलों में डूब क्षेत्र निर्धारित करने के लिए जल आयोग ने हैदराबाद की रिमोट सेंसिंग कंपनी से काम लिया है। आयोग और सिंचाई विभाग की 11 सदस्यीय कमेटी भी साथ रही। इसमें डूब क्षेत्र को डिफरेंशियल ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (डीजीपीएस) से चिन्हित किया गया है। यह पूरा दस्तावेज 456 पन्नों का है। आयोग की रिपोर्ट मिलाकर यह 521 पन्ने हो गए हैं।
1020 मुड्डियों से कवर किया क्षेत्र
अंतिम रिपोर्ट में जिलाधिकारी आगरा की ओर से 17 नवंबर 2023 को एनजीटी में पेश रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया है कि जिले में डूब क्षेत्र चिन्हित करके 1020 पिलर (मुड्डियां) गाड़ दी गई हैं। इन्हें नदी के दोनों ओर गाड़ा गया है। यानि इनके अंदर ही डूब क्षेत्र को माना जाएगा। अंतिम रिपोर्ट में लेप्ट बैंक में अधिकतम 2.5 किलोमीटर, राइट बैंक में अधिकतम 5 किलोमीटर चिन्हित किया गया है।
100 साल के रिकार्ड का सहारा
जल आयोग के साथ चिन्हांकन करने वाली निजी एजेंसी ने यमुना नदी वाले सभी शहरों में बीते 100 साल के रिकार्ड का अध्ययन किया। इससे तय किया गया कि विभिन्न जिलों में बाढ़ का न्यूनतम और अधिकतम स्तर कहां तक रहा है। इसी के आधार पर जीपीएस के आधार पर रिपोर्ट तैयार की गई। स्थानीय जिला प्रशासन ने भी इसी दौरान संबंधित जिलों के डूब क्षेत्र में पिलर स्थापित भी किए हैं।
इन जिलों में डूब क्षेत्र तय
दिल्ली के अलावा गौतम बुद्धनगर, अलीगढ़, मथुरा, हाथरस, आगरा, फिरोजाबाद, इटावा, जालौन, औरेया, कानपुर देहात, हमीरपुर, कानपुर, फतेहपुर, बांदा, चित्रकूट, कौशांबी और प्रयागराज।
खनन की शिकायत पर हुआ एक्शन
दरअसल आगरा के पर्यावरण विद डा. शरद गुप्ता ने 2022 में ताजमहल के पीछे अवैध खनन की शिकायत करते हुए एनजीटी में याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने कहा था कि खनन से ताजमहल के आसपास वन क्षेत्र के साथ एकोलाजिकल चेन भी प्रभावित हो रही है। इससे ताज के आसपास का प्राकृतिक और असली लैंडस्केप भी खराब हो रहा है। यह डूब क्षेत्र को भी प्रभावित करेगा। इस पर एनजीटी ने केंद्रीय जल आयोग, जलशक्ति मंत्रालय से यमुना के फ्लड जोन (डूब क्षेत्र) के बारे में पूछा।
विभागों ने बताया कि डूब क्षेत्र चिन्हित ही नहीं किया गया है। आयोग ने इसके चिन्हीकरण के निर्देश दिए। तब जाकर जल आयोग, नहर विभाग और संबंधित अन्य विभागों ने 11 सदस्यों की कमेटी का गठन किया। साथ ही संसाधनों के अभाव का हवाला दिया। इस पर जल आयोग ने हैदराबाद की रिमोट सेंसिंग कंपनी का सहारा लेकर दो जोन में दिल्ली और यूपी के डूब प्रभावित क्षेत्रों का चिन्हीकरण किया। पर्यावरणविद और याचिकाकर्ता डॉ. शरद गुप्ता ने बताया, दो साल की लंबी लड़ाई के बाद सुखद परिणाम आए हैं। अभी तक इन जिलों में डूब क्षेत्र का निर्धारण ही नहीं हुआ था। इस दौरान तमाम जिलों में अवैध निर्माण हो चुके हैं। अब डूब क्षेत्र के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी अधिक प्रभावी हो जाएंगे। फ्लड जोन तय होने के बाद अवैध निर्माण नहीं हो पाएंगे। संबंधित जिला प्रशासन अधिक दमखम से कार्यवाही भी कर पाएगा।