RTI का हनन करने वाले अफसरों पर क्यों न करें कार्रवाई, HC ने अपर सचिव बेसिक शिक्षा से मांगा एफिडेविट
- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपर सचिव बेसिक शिक्षा को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर यह बताने का निर्देश दिया है कि बच्चों की शिक्षा के मूल अधिकारों का हनन करने वाले राज्य सरकार के अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई क्यों न की जाए।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपर सचिव बेसिक शिक्षा को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर यह बताने का निर्देश दिया है कि बच्चों की शिक्षा के मूल अधिकारों का हनन करने वाले राज्य सरकार के अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई क्यों न की जाए। कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 ए के तहत प्राथमिक शिक्षा बच्चों का मूल अधिकार है और सरकार का दायित्व है कि वह छह से 14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य रूप से शिक्षा प्रदान करे। यह तभी संभव है जब स्कूलों में अध्यापकों की नियुक्ति हो लेकिन प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में बड़ी संख्या में अध्यापकों के पद रिक्त हैं, जो अनुच्छेद 21ए का उल्लघंन है। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने कृषि औद्योगिक विद्यालय की प्रबंध समिति की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।
कमेटी का कहना है कि एक समय था जब स्वीकृत पद के अनुसार एक प्रधानाध्यापक व चार सहायक अध्यापक कार्यरत थे। बाद में पद रिक्त होते गए। वर्तमान में न तो प्रधानाध्यापक हैं और न ही एक भी सहायक अध्यापक। 15 नवंबर 2022 को भर्ती परिणाम घोषित किया गया था। हाईकोर्ट से परिणाम पर रोक थी लेकिन वह याचिका भी 15 फरवरी 2024 को खारिज हो गई है। एक वर्ष बीतने के बाद भी रिक्त पदों पर नियुक्ति नहीं की जा सकी है। विद्यालय मान्यता प्राप्त व राज्य वित्त पोषित है लेकिन वहां कोई सरकारी अध्यापक नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि संविधान ने बेसिक शिक्षा को अनिवार्य मूल अधिकार घोषित किया है और राज्य पर अनुच्छेद 21ए के अनुपालन की जवाबदेही सौंपी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई निर्णयों में सरकार को उसका वैधानिक दायित्व पूरा करने का निर्देश दिया है। अध्यापक के बिना बच्चों की शिक्षा के अधिकार की पूर्ति नहीं की जा सकती।
कोर्ट ने महानिदेशक स्कूली शिक्षा से हलफनामा मांगा। अपर निदेशक ने हलफनामा देकर सरकार को लिखे पत्र की जानकारी दी लेकिन यह नहीं बताया कि स्कूल में अध्यापकों की नियुक्ति पर क्या निर्णय लिया गया। बस यह कहा कि भर्ती चल रही है। प्रक्रियात्मक विलंब हो रहा है। कुछ समय लगेगा। इस पर याची के अधिवक्ता ने कहा कि सारी बाधाएं हटने के एक वर्ष बाद भी रिक्त पदों पर नियुक्ति नहीं की जा सकी है। कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया है और अपर सचिव से पूछा है कि लापरवाह अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों न की जाए।