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ग्रहण में गुरुजन: ‘पीड़ा पर कर रहा हूं जिंदगी की दूसरी पीएचडी...

वाराणसी के प्रो. जीसी बड़ाल, जो 2006 में आईआईटी बीएचयू से रिटायर हुए, अब 80 वर्ष की उम्र में जीवन की दूसरी पीएचडी 'पीड़ा' कर रहे हैं। रिटायरमेंट के 18 साल बाद भी उन्हें पेंशन का इंतजार है। उनकी पत्नी,...

Newswrap हिन्दुस्तान, वाराणसीThu, 12 Sep 2024 12:09 PM
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वाराणसी, वरिष्ठ संवाददाता। इनका नाम प्रो. जीसी बड़ाल है। 2006 में आईटी (अब आईआईटी) बीएचयू के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग से प्रोफेसर के पद से रिटायर हुए। आईआईटी कानपुर से 1977 में इसी विषय में पीएचडी पूरी की थी। 80 बरस की अवस्था में यह वरिष्ठ शिक्षक भर्राए गले से कहते हैं कि ‘जिंदगी की दूसरी पीएचडी कर रहा हूं। विषय है पीड़ा...। प्रो. बड़ाल ने 1984 में आईटी बीएचयू में सेवा शुरू की। 32 साल की सेवा में उन्होंने हजारों छात्रों का भविष्य बनाया। सैकड़ों रिसर्च कराए। रिटायरमेंट के 18 साल हो चुके मगर बीएचयू से पेंशन का इंतजार अब भी है। पत्नी बीना बड़ाल की उम्र भी 77 वर्ष हो चुकी है मगर घर की जरूरतें उन्हें बूढ़ा नहीं होने दे रहीं। बीना बड़ाल आज भी एक प्राइवेट स्कूल में महज 12 हजार रुपये प्रति माह की तनख्वाह पर काम कर रही हैं ताकि अपने और पति के लिए दो वक्त की रोटी जुटा सकें। इकलौती बेटी रीना ससुराल में अपनी गृहस्थी संभालते हुए सामर्थ्य भर माता-पिता की सेवा करती हैं।

चिंता और मानसिक तनाव में प्रो. बड़ाल सीओपीडी के मरीज हो चुके हैं। हार्निया सहित कई अन्य समस्याओं के ग्रस्त हैं। बमुश्किल चल पाते हैं। शरीर इस कदर अशक्त हो चला है कि चाय का कप उठाने में भी हाथ कांपते हैं। उन्होंने कहा कि सेवाकाल के दौरान इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि रिटायरमेंट इस तरह गुजरेगा। तमाम शिक्षकों की तरह उन्हें भी सीपीएफ और जीपीएफ का अंतर नहीं पता चल सका और सेवानिवृत्ति के बाद आराम करने की उम्र तनाव और जीविका के लिए छोटे-मोटे काम करते गुजर रही है।

बाबुओं पर आधारित सिस्टम के हुए शिकार

प्रो. जीसी बड़ाल कहते हैं कि बीएचयू की अनदेखी झेल रहे हम 130 रिटायर शिक्षक दरअसल बाबुओं के भरोसे चल रहे सिस्टम के शिकार हुए हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि 30 सितंबर 1987 की समयसीमा के बाद बीएचयू ने अपनी गलती छिपाने के लिए सर्कुलर जारी किया। वह समय ऐसा था कि ज्यादातर लोग सीपीएफ ही चुनते थे। मगर शासनादेश के अनुसार सभी शिक्षक जीपीएफ के अंतर्गत आ चुके थे। उन्होंने कहा कि बीएचयू अब भी अपनी गलती सुधार सकता है ताकि यह शिक्षक अपने जीवन का बचा हुआ समय सम्मानपूर्वक गुजार सकें।

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