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बोले काशीः वैद्य कहें, हकीम कहें मगर झोलाछाप का न लगाएं दाग

वाराणसी में आयुर्वेद की मान्यता बढ़ रही है, इसे जीवन का विज्ञान माना जा रहा है। धन्वंतरि की जयंती पर, चिकित्सक स्वास्थ्य सेवाओं में सम्मान की मांग कर रहे हैं। नीमा के डॉक्टरों ने कोरोना काल में अपनी...

Newswrap हिन्दुस्तान, वाराणसीSun, 10 Nov 2024 07:26 PM
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वाराणसी। यह मान्यता विश्व में स्थापित हो चुकी है कि आयुर्वेद सिर्फ भारतीय चिकित्सा पद्धति नहीं, जीवन का विज्ञान है। उसके जनक धन्वंतरि की कार्तिक कृष्ण द्वादशी, मंगलवार को जयंती है। इस बहाने पूरा देश आयुर्वेद की जय-जयकार करेगा। अब तो दुनिया का भी भारत की विशिष्ट बौद्धिक संपदा (इंटेलेक्चुअल प्रापर्टी) आयुर्वेद पर भरोसा बढ़ चला है। वहीं, नेशनल इंटीग्रेटेड मेडिकल एसोसिएशन (नीमा) से जुड़े चिकित्सक भगवान धन्वंतरि से आशीर्वाद मांग रहे हैं कि उनके ऊपर अब ‘झोलाछाप का दाग न लगने दें। सरकार और शासन कुछ ऐसा करने के लिए प्रेरित हो जिससे ये डॉक्टर स्वास्थ्य सेवाओं की मुख्य धारा में शामिल हो सकें। जन सामान्य में उनकी प्रतिष्ठा बढ़े। काशी में आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा पद्धति की मजबूत परंपरा रही है। विख्यात वैद्यों और हकीमों की समृद्ध शृंखला रही है शिवनगरी में। वे नाड़ी देखकर पूरे शरीर की ‘एमआरआई कर देते थे, सांसों की गरमाहट से शरीर के तापमान का सटीक अनुमान कर लेते थे। बायीं और दायीं नाक से चलने वाली सांस के आधार पर डायग्नोस्ट कर लेते थे कि फलां किस गंभीर रोग की चपेट में है या आने वाला है। ऐसी कई सूक्ष्म जानकारियों के बाद भी वे कभी झोलाछाप नहीं कहे गए। मगर आधुनिक चिकित्सा के दौर में आयुर्वेद और यूनानी डॉक्टर अपनी छवि को लेकर सर्वाधिक चिंतित हैं।

शिवपुर स्थित संगठन कार्यालय में नीमा के पदाधिकारियों और सदस्यों ने ‘हिन्दुस्तान के साथ अपनी पीड़ा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हम अपनी काबिलियत कोरोना काल में साबित कर चुके हैं। जब चिकित्सा सेवा अचानक आए दबाव के आगे डगमगाने लगी थी, तब नीमा के ही सदस्यों ने मरीजों की अथक सेवा की, उन्हें पुनर्जीवन की ओर लौटा लाने में सफलता पाई। मगर शासन और प्रशासन ने उनके हालात पर गौर नहीं किया, उनकी प्रैक्टिस से जुड़ी समस्याओं के ठोस समाधान की पहल नहीं हुई। बावजूद इसके कि केंद्र और प्रदेश सरकारों के स्तर पर आयुष मंत्रालय और विभाग स्थापित हो चुके हैं, वे आज भी एलोपैथ डॉक्टरों की तरह सब तरह की सर्जरी करने के अधिकार के लिए जूझ रहे हैं। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा से जुड़े राष्ट्रीय अभियानों, कार्यक्रमों में बराबरी की सक्रिय भागीदारी चाहते हैं।

केन्द्र की तरह मिले सर्जरी का अधिकार

नीमा के जिलाध्यक्ष डॉ. आरके यादव, पूर्व सचिव डॉ. सुनील मिश्रा के मुताबिक केंद्र सरकार ने आयुर्वेद के सर्जन को 58 तरह की सर्जरी करने का अधिकार दिया है लेकिन राज्य सरकार ने केवल क्षारसूत्र की ही अनुमति दी है। एमडी/ एमएस आयुर्वेद सर्जन (शल्यशास्त्री) आईवी (इंट्रा विनस इंजेक्शन) नहीं लगा सकते। उनके पास बीएएमएस (बैचलर ऑफ आयुर्वेद मेडिसिन एंड सर्जरी) और एमडी/एमएस की डिग्री होती है। फिर भी समाज के सामने झोलाछाप का टैग लगा दिया जाता है। सरकार को इन चुनौतियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।

सीएमओ के अफसरों की छापेमारी क्यों

चौकाघाट राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय के पूर्व सर्जन डॉ. आनंद विद्यार्थी ने कहा कि नीमा से जुड़े डॉक्टर सरकार और समाज की उपेक्षा के शिकार हैं। वे क्लीनिक संचालित करने के लिए क्षेत्रीय आयुर्वेद एवं यूनानी अधिकारी कार्यालय से लाइसेंस लेते हैं। लाइसेंस सही डिग्री के आधार पर ही मिलता है लेकिन कई बार सीएमओ कार्यालय के मेडिकल अफसर छापेमारी करते हैं। जबकि क्षेत्रीय आयुर्वेद एवं यूनानी अधिकारी हमारे नोडल होने चाहिए। डॉ. ज्ञानेश्वर अनुपम ने आयुर्वेद क्लीनिक से भी बायो मेडिकल वेस्ट के नाम पर टैक्स लेने पर आपत्ति जताई। बोले, यह टैक्स एलोपैथ अस्पताल के बराबर होता है जबकि आयुर्वेद क्लीनिक से बायो मेडिकल वेस्ट ज्यादा नहीं निकलता है।

भरोसे के बावजूद परेशानी

नीमा चिकित्सकों के अनुसार गर्भवती महिलाओं को भरोसा रहता है कि आयुर्वेद अस्पताल में नॉर्मल प्रसव ज्यादा होता है। महिलाएं इसी उम्मीद से हमारे पास आती हैं। कई बार अचानक प्रसव से कुछ देर पहले तबीयत बिगड़ जाती है। तब जच्चा-बच्चा दोनों की जान को खतरा रहता है। ऐसे में पीजी आयुर्वेद के विशेषज्ञों को सर्जरी का अधिकार रहे तो वे तत्काल सीजेरियन प्रसव करा सकते हैं। लेकिन हमें महिलाओं को रेफर करना पड़ता है।

यूपी में लागू हो केंद्र का राजपत्र

चौकाघाट राजकीय आयुर्वेद कॉलेज के शल्य विभाग से रिटायर एवं नीमा सर्जिकल सोसाइटी (यूपी चैप्टर) के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. आनंद विद्यार्थी ने कहा कि केंद्र सरकार के राजपत्र के अनुसार आयुर्वेदिक सर्जन 58 तरह की सर्जरी कर सकते हैं। इसमें जनरल सर्जरी, आंख, कान, नाक, गला आदि की सर्जरी शामिल हैं। हमारे सर्जन ट्रेंड भी हैं लेकिन उन्हें सर्जरी का अधिकार नहीं है। इसीलिए मरीज आयुर्वेद चिकित्सक के पास जाने से बचते हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को भी केंद्र सरकार का राजपत्र लागू करना चाहिए। इसमें मरीजों का हित है।

इंटीग्रेटेड चिकित्सा पर हो काम

नीमा के पूर्व सचिव डॉ. सुनील मिश्रा ने कहा कि कई पद्धतियों को मिलाकर इंटीग्रेटेड चिकित्सा पद्धति का पूरी दुनिया में चलन बढ़ा है। स्थानीय स्तर पर भी यह संभव है। जरूरत पहल की है। इससे आयुर्वेद के डॉक्टरों में भी विशेषज्ञता बढ़ेगी। मरीजों को लाभ होगा। सबसे बड़ा लाभ यह कि आयुर्वेद के डॉक्टरों को रोजगार मिलेगा। उन्होंने कहा कि जिला स्वास्थ्य समिति से नीमा के सदस्यों को नहीं जोड़ा गया है। जबकि, एलोपैथ की तरह नीमा के डॉक्टर भी स्वास्थ्य सुविधाओं में बराबर का योगदान दे सकते हैं। कोरोना के दौर में हमने साबित किया भी है। दूसरे, नीमा डॉक्टरों की कई तरह की समस्याएं होती हैं लेकिन उन्हें अपनी बात रखने का कोई मंच नहीं मिल पाता। इसलिए जिला स्वास्थ्य समिति में नीमा के सदस्यों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए।

नीमा चिकित्सकों को करें प्रशिक्षित

नीमा के सदस्य एवं यूनानी चिकित्सक डॉ. फैसल रहमान ने कहा कि मानक के अनुसार एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए जबकि भारत में 834 लोगों पर एक चिकित्सक है। यह अंतर देशभर में 5.65 लाख आयुर्वेदिक और यूनानी डॉक्टरों के कारण कम हुआ है। इस विधा के चिकित्सकों को आधुनिक उपचार और जांच पद्धतियों में प्रशिक्षत करने की सरकार की ओर से व्यवस्था होनी चाहिए। इससे मरीज को बेहतर इलाज मिल सकेगा।

तब काढ़ा ही आया काम

चौकाघाट स्थित राजकीय आयुर्वेद कॉलेज के पूर्व प्रवक्ता डॉ. समीर कुमार राठौर ने कहा कि कोरोना काल में जब कोई विकल्प नहीं दिख रहा था, तब आयुर्वेदिक काढ़ा काफी कारगर रहा। इसलिए सभी को मानना पड़ेगा कि आयुर्वेद के बिना चिकित्सा पद्धति अधूरी है।

यूनानी भी कम नहीं

यूनानी डॉक्टर शब्बीर सिकंदर ने कहा कि यूनानी दवाएं पुरानी बीमारियों में काफी कारगर होती हैं। साइटिका, माइग्रेन, कब्ज सहित कई बीमारियों में उनका असर लोगों ने महसूस किया है। इसलिए सरकार को इस पैथी को आगे बढ़ाने की पहल करनी चाहिए। डॉ. खुर्शीद अनवर ने कहा कि बनारस में सिर्फ एक शासकीय यूनानी अस्पताल लोहता में है। यह संख्या बढ़नी चाहिए। जिले के सभी ब्लॉक में शासकीय यूनानी अस्पताल शुरू होना चाहिए।

इनका कहना....

कोरोना काल में दिन रात मरीजों की सेवा के बाद भी हमारे प्रति सम्मानजनक धारणा नहीं बन पाई है।

-डॉ. प्रेमचंद्र गुप्ता

आयुर्वेदिक डॉक्टरों को सरकार मुहल्ला क्लीनिक की तरह पदस्थ करे। इससे मरीजों को भी फायदा होगा।

-डॉ. यश मालवीय

दुनिया में इंटीग्रेटेड इलाज की अवधारणा बढ़ रही है तो भारत में भी इस पर फोकस करना चाहिए।

डॉ. आरके यादव, जिलाध्यक्ष, नीमा

आयुर्वेद डॉक्टरों की क्लीनिक का निरीक्षण सिर्फ क्षेत्रीय आयुर्वेद एवं यूनानी अधिकारी करें।

डॉ. जेपी गुप्ता, उपाध्यक्ष, नीमा

आयुर्वेद में बताए आहार-विहार का अधिकतम प्रचार-प्रसार स्थानीय स्तर पर भी होना चाहिए। इससे धन की बचत भी होगी।

डॉ. अजहर, कोषाध्यक्ष, नीमा

आयुर्वेद के डॉक्टरों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने का सरकारी स्तर पर प्रयास होने चाहिए।

-डॉ. ज्ञानेश्वर अनुपम

शिकायतें

1. बायो मेडिकल वेस्ट के नाम पर नीमा से जुड़े चिकित्सकों के अस्पतालों से एलापैथ के बड़े अस्पतालों के बराबर टैक्स लिया जाता है

2. हर साल अस्पताल एवं क्लीनिक के नवीनीकरण के लिए परेशान होना पड़ता है। इसमें दोयम दर्जे का व्यवहार होता है।

3. केंद्र सरकार के राजपत्र के अनुसार 58 तरह की पीजी सर्जरी का अधिकार है लेकिन राज्य में इस पर रोक है।

4. बनारस में आयुर्वेदिक एवं यूनानी औषधियों की गुणवत्ता जांचने के लिए लैब नहीं है। इससे नकली दवाओं की भी बिक्री हो रही है।

5. झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई न होने से आयुर्वेद के चिकित्सक बदनाम हो रहे हैं।

सुझाव

1. आयुर्वेद एवं यूनानी पद्धति के चिकित्सकों को चिकित्सा-जांच आदि की नवीन विधाओं में ट्रेंड किया जाए। आयुर्वेदिक पद्धति भी अब बहुत आगे बढ़ चुकी है।

2. जिला स्वास्थ्य समिति की बैठक में नीमा को भी प्रतिनिधित्व मिले। इससे जनपद की स्वास्थ्य सेवाओं में गुणात्मक सुधार के लिए यह जरूरी है।

3. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े राष्ट्रीय कार्यक्रमों, अभियानों में आयुर्वेद एवं यूनानी डॉक्टरों को भी शामिल किया जाए।

4. हर पांच साल पर आयुर्वेद के अस्पतालों का हो नवीनीकरण, उनमें जांच की आधुनिक मशीन समेत दूसरी जरूरी सुविधाएं अपग्रेड होती रहें

5. आयुर्वेदिक दवाओं की भी बिक्री के लिए रेगुलेटरी एक्ट बनना चाहिए। इससे डुप्लीकेसी रुकेगी। आयुर्वेदिक दवाओं की प्रामाणिकता बनी रहेगी।

आयुर्वेदिक उपचार के लाभ

साइड इफेक्ट्स से मुक्त : आयुर्वेदिक औषधियां प्राकृतिक तत्वों से बनी होती हैं, इसलिए इनके साइड इफेक्ट्स बहुत कम होते हैं।

शारीरिक और मानसिक संतुलन : यह केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर ही नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी ध्यान केंद्रित करता है।

व्यक्तिगत उपचार : आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यक्ति के शरीर के प्रकार और दोषों के आधार पर की जाती है, जिससे उपचार अधिक प्रभावी होता है।

(जैसा चौकाघाट स्थित आयुर्वेद कॉलेज के चिकित्सक डॉ. अजय गुप्ता ने बताया)

आयुर्वेद के मुख्य सिद्धांत

त्रिदोष सिद्धांत : आयुर्वेद में शरीर के तीन प्रमुख दोषों (वात, पित्त, कफ) के संतुलन को स्वास्थ्य की कुंजी माना जाता है। इन तीनों दोषों का असंतुलन बीमारियों का कारण बनता है।

प्राकृतिक चिकित्सा : आयुर्वेद में जड़ी-बूटियों, प्राकृतिक औषधियों, आहार, और दिनचर्या के माध्यम से उपचार किया जाता है। इसका उद्देश्य शरीर, मन, और आत्मा का संतुलन बनाए रखना है।

रोग की जड़ में जाना : आयुर्वेद का लक्ष्य सिर्फ रोग के लक्षणों का इलाज नहीं है, बल्कि रोग के मूल कारण को दूर करना है। इसमें व्यक्ति की जीवनशैली, आहार और मानसिक स्थिति का भी ध्यान रखा जाता है।

स्वास्थ्य संवर्धन : आयुर्वेद अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने और बीमारियों से बचने के उपाय भी बताता है। यह व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने पर जोर देता है।

(जैसा चौकाघाट स्थित आयुर्वेद कॉलेज में चिकित्सा उपाधीक्षक डॉ. अरविंद सिंह ने बताया)

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