शोध से दावा- मेंटल हेल्थ के लिए सिर्फ गोली मत खाइए, श्रीमद भगवत गीता भी पढ़िए
एक शोध में कहा गया है कि मेंटल हेल्थ के लिए सिर्फ गोली मत खाइए, श्रीमद भगवत गीता भी पढ़िए। परिवहन निगम में सहायक यातायात निरीक्षक अभिनव शर्मा ने भगवद गीता पर शोध किया है। मूल्यों, सांवेगिक अनुक्रियाओं तथा तनाव प्रबंधन में श्रीमद्भगवद्गीता के महत्व की मीमांसा की।
नए दौर की भागती-दौड़ती जिंदगी में शायद ही कोई ऐसा हो किसी न किसी रूप में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं न झेल रहा हो। कई प्रोफेशनल मेंटल हेल्थ के लिए काउंसलर्स के चक्कर लगा रहा है तो कई खुद को कूल और कॉम रखने के लिए गोलियों तक का सहारा लेने को मजबूर है। लेकिन एक शोध ने साबित किया है कि अगर आप नियमित रूप से श्रीमद भगवत गीता पढ़ें तो कई मानसिक समस्याओं का हल मिल सकता है।
परिवहन निगम में सहायक यातायात निरीक्षक अभिनव शर्मा ने महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय से शिक्षाशास्त्र में अपना शोध ‘मूल्यों, सांवेगिक अनुक्रियाओं तथा तनाव प्रबंधन के संदर्भ में श्रीमद्भगवद्गीता की आधुनिक शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता’ पर ही किया है। उन्होंने यह शोध दयानंद आर्य कन्या डिग्री कॉलेज की प्राचार्य प्रो. सीमा रानी के निर्देशन में किया।
अभिनव ने बताया कि नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में भारतीय ज्ञान परंपरा पर जोर दिया गया है, इस दृष्टि से उनका यह शोध महत्वपूर्ण है। विद्यार्थियों में परीक्षा के साथ ही कॅरियर का तनाव देखने को मिलता है। उनका तनाव कई बार इतना अधिक होता है कि न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य पर भी असर डालता है। उन्होंने दावा कि श्रीमद भगवत गीता के कई श्लोकों से आंतरिक ऊर्जा मिलती है। ध्यान योग, कर्म और ज्ञान योग इसके लिए सटीक हैं। गीता की इसी शक्ति को समझते हुए गुजरात में इसे कक्षा छह से 12 तक के स्कूलों के पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है।
गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। युद्ध में एक समय ऐसा भी था जब अर्जुन युद्ध करने से मना कर देते हैं। निराशा इतनी हावी थी तक शस्त्र तक रख दिया था। उस समय भगवान कृष्ण उन्हें उपदेश देते हैं और कर्म व धर्म के ज्ञान से अवगत कराते हैं। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करना ही है। कर्मों के फल पर तुम्हारा अधिकार नहीं है। अतः तुम निरंतर कर्म के फल पर मनन मत करो और अकर्मण्य भी मत बनो।
‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥”
कृष्ण ने यह भी कहा था कि, जब मनुष्य वस्तुओं का ध्यान करता है तो उनमें वस्तुओं के प्रति आसक्ति उत्पन्न हो जाती है। मोह से वासना उत्पन्न होती है और वासना से क्रोध। क्रोध से भ्रम होता है और भ्रम से स्मृतिभ्रम होता है। स्मृति हानि से बुद्धि की हानि होती है।
‘ध्यायतो विषयान पुंसः संगस तेशुपजायते
संगात् संजायते कामः कामात् क्रोधोऽभिजायते
क्रोधाद् भवति सम्मोहः सम्मोहात् स्मृति-विभ्रमः
भ्रमाद् बुद्धि-नाशो बुद्धि-नाशात् प्रणश्यति।’
अभिनव ने बताया कि कर्मबंधनों से मुक्त होना या सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाना, ज्ञान योग है। अत: ज्ञानयोग का स्वरूप भी अत्यंत व्यापक माना जा सकता है। भगवदगीता के अध्ययन से अपने तनाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है। बच्चों को शुरू से ही श्रीमद भगवद गीता पढ़ाया जाए तो उनकी समस्या काफी हद तक खत्म होगी। उन्होंने बताया कि मरीजों और बीमार लोगों में भगवद्गीता का काफी असर दिखता है। उस्मानिया अस्पताल हैदराबाद के डॉक्टरों ने भगवदगीता के श्लोकों को थेरेपी के रूप में डायबिटीज के मरीजों पर इस्तेमाल किया था। ऐसे मरीजों पर इस थेरेपी का सकारात्मक परिणाम दिखा।