पिछली एक सदी से कुम्भ में आ रहे हैं 128 साल के पद्मश्री बाबा, चलते-चलते करतें हैं जप
- स्वामी शिवानंद महाकुंभ मेले में सबसे उम्रदराज संत हैं। 21 मार्च 2022 को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त करने वाले स्वामी शिवानंद की उम्र उस समय 125 साल थी।
महाकुम्भ में एक से बढ़कर एक सिद्ध, तपस्वी, ध्यानी और ज्ञानी संत-महंत अपने आभामंडल से श्रद्धालुओं को कृतार्थ कर रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं स्वामी शिवानंद जो मेले में सबसे उम्रदराज संत हैं। 21 मार्च 2022 को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त करने वाले स्वामी शिवानंद की उम्र उस समय 125 साल थी। संगम लोअर मार्ग पर किन्नर अखाड़ा से आगे बढ़ने पर बाएं हाथ पर स्वामी शिवानंद का शिविर मिल जाएगा जिसके बाहर उन्होंने अपने आधार कार्ड का बैनर भी लगा रखा है।
आठ अगस्त 1896 को जन्मे स्वामी शिवानंद का आश्रम काशी के कबीर नगर में है। उनके अनुयायियों की मानें तो पिछले 100 सालों से वह लगातार प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में लगने वाले कुम्भ व अर्द्धकुम्भ में भाग लेते आ रहे हैं। उनकी दिनचर्या सुबह तीन बजे उठने से शुरू होती है। नित्यक्रिया एवं स्नान के बाद दो से तीन घंटे तक चलते-चलते जप, तप और पाठ करते हैं। उसके बाद घड़ी देखकर एक घंटे तक योग करते हैं। थोड़ा चिवड़ा या लाई वगैरह खाने के बाद लोगों से मिलने का सिलसिला शुरू होता है।
वह बाहर का खाना नहीं खाते और नमक, तेल, चीनी, दूध, फल से भी पूरी तरह से दूरी रखते हैं। उन्हें उबली सब्जी, दाल-चावल, रोटी ही पसंद है और जहां कहीं जाते हैं उनका रसोइयां साथ ही चलता है। चार साल की उम्र में संत ओमकारानंद गोस्वामी का सानिध्य मिला गया। जब वह मात्र छह साल के ही थे तो माता-पिता और बहन का साया उठ गया। उसके बाद से गुरु के सानिध्य में ही पढ़ाई-लिखाई की। उसके बाद मानव सेवा के लिए अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, जर्मन, फ्रांस, जापान आदि 40 से अधिक देशों का भ्रमण किया। उसके बाद अपने गुरु के बुलावे पर वापस भारत आए। उनकी फिटनेस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 128 साल की उम्र में भी वह बगैर छड़ी के ही चलते-फिरते हैं।