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बांग्लादेश हिंसा में फंसे यूपी के लोग, मैसेज कर कहा- भइया.. हमने चार दिन से ढाका की धूप नहीं देखी

बांग्लादेश हिंसा के बीच यूपी के लोग फंस गए हैं। उन्होंने अपने परिवार को फोन पर मैसेज कर अपनी हालत बयान की है। कानपुर के एक शख्स ने मैसेज पर कहा कि भइया, हम एक फैक्ट्री में कैद हैं और हमने चार दिन से ढाका की धूप नहीं देखी है।

विजय कुमार कानपुरWed, 7 Aug 2024 08:06 AM
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‘भइया.. हम बुरी तरह फंस गए हैं। दिनभर फैक्ट्री के अंधेरे बंद कमरे में घुटते हैं। रात-रातभर नींद नहीं आती। जरा भी झपकी लगे तो कहीं गोलियों की तड़तड़ाहट से टूट जाती है तो कभी शोर-शराबे और नारों से। लगता है बस अब जिंदगी खत्म..। गनीमत है कि अभी पेट भरने को कुछ न कुछ मिल रहा रहा है। हमने दस दिन से ढाका की सुबह नहीं देखी।’ फतेहपुर में बिंदकी के गांव उमरगहना में उदास बैठे नीरज के मोबाइल पर ऐसे ही मैसेज आ रहे हैं। ढाका की एक फैक्ट्री में छिपा भाई राजेन्द्र उन्हें मौका मिलते ही अपनी खैर-खबर दे रहा है। ऐसे ही मैसेज सिलवासा में रह रही राजेन्द्र की पत्नी कोमल के फोन स्क्रीन पर रह-रह कर नुमायां होते हैं। बच्चों को थपकी देकर सुलाती कोमल की आंखों में लगातार मानसून उमड़ रहा है।

बांग्लादेश में उपद्रव और तख्तापलट के बीच राजेंद्र, उनके दो भारतीय साथी एक ही कमरे में बंद हैं। राजेंद्र 27 जून 2023 को ढाका के गाजीपुर स्थित नाइस सिंथेटिक्स यार्न मिल में काम करने गए थे। इससे पहले वह गुजरात के सिलवासा में काम करते थे। एक एजेंट के माध्यम से ढाका में काम का अच्छा पैसा मिला, तो वहां चले गए। उनके साथ पश्चिम बंगाल के मधुसूदन कुमार और बनारस निवासी दिलीप कुमार शर्मा भी हैं। मधुसूदन प्लांट हेड हैं।

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राजेन्द्र ने ‘हिन्दुस्तान’ को बताया कि तख्तापलट से पहले जैसे ही ढाका में हिंसा बढ़ी, फैक्ट्री मालिक ने फैक्ट्री के अंदर ही रोक दिया। फिर मंदिरों और हिंदुओं पर हमले होने लगे। गांव से भइया-भाभी और सिलवासा से पत्नी कामेल के फोन आने लगे। अचानक छह सात दिन पहले इंटरनेट बंद हो गया। संपर्क टूट गया। परिवार के लोग डर गए। शेख हसीना के इस्तीफे के बाद इंटरनेट चालू हुआ है। अब बांग्लादेश में तीन दिन का अवकाश घोषित कर दिया गया है। प्लांट पहले से बंद है। स्थानीय लोग घर चले गए, लेकिन हम तीनों भारतीय प्लांट में ही कैद हैं।

नूरुल ने बचा रखी है जिंदगी
राजेन्द्र ने बताया कि फैक्ट्री मालिक मो. नूरुल इस्लाम ने हमारी जिंदगी बचा रखी है। उन्होंने बिल्डिंग में सबसे अंदर की तरफ एक कमरा दिया है। वहीं फैक्ट्री मेस के रसोइये से भोजन का इंतजाम करा रहे हैं। वह बाजार से लौट कर रोज बताता है कि बाहर भीषण अराजकता है। हम ढाका से निकलना चाहते हैं, लेकिन अभी हालात खराब हैं। मालिक ने हिंसा थमने तक फैक्ट्री के अंदर ही रहने की हिदायत दी है। अभी हम भारतीय दूतावास से संपर्क करने की स्थिति मेंभीनहींहैं।

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