लखनऊ में आबादी के बीच घूम रहा बाघ, बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं घरों में कैद
- लखनऊ के आबादी के बीच बाघ के घूमने से एक दर्जन गांवों में दहशत है। बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं घरों में कैद हैं। दिन ढलते ही सड़को पर सन्नाटा पसर जाता है। बाघ की दहशत की वजह से लोगों की दिनचर्या बदल गई है।
लखनऊ में रहमान खेड़ा के जंगल और आसपास के करीब 15 किमी. के दायरे में बाघ की हलचल एक दर्जन गांवों के लोग दहशत में हैं। बाघ के खौफ ग्रामीणों के व्यापार, किसानी और बच्चों की पढ़ाई पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। दिन ढलते ही सड़को पर सन्नाटा पसर जाता है। गांव की गलियां सूनी पड़ जाती है और बच्चे घरों में दुबक जाते हैं। हालात ऐसे हैं कि किसान खेतों में उगाई गयी सब्जियों को बेचने मंडी नहीं जा पा रहे है। रखवाली के अभाव में फसलें खराब हो रही है या आवारा जानवर फसल चर जा रहे है। स्कूलों में बच्चो की संख्या लगातार कम हो रही है। किसान, छात्र और बुजुर्गों की दिनचर्या बदल गई है।
बाघ की दहशत से सबसे ज्यादा प्रभावित मीठे नगर और बुधड़िया गांव हैं। इन गांवों में बाघ ने जानवरों का शिकार किया है। दोबारा भी शिकार की तलाश में आने के प्रमाण मिले हैं। यहां सबसे ज्यादा किसान प्रभावित है, जिसकी वजह से फसलों की देख रेख में परेशानी हो रही है।
खेतों में मटर, गोभी जैसी सब्जियां खराब हो रही
मीठे नगर निवासी किसान अयोध्या प्रसाद ने बताया कि खेतों में मचान बनाकर फसल की रखवाली करते थे लेकिन बाघ की आहट के बाद से मचाने खाली हैं। खेतों में मटर,गोभी आदि सब्जियां उगी है, जिनको तोड़कर सुबह दुबग्गा मंडी बेचने जाते थे। लेकिन अब नही जा रहे है, जिससे सब्जियां खेतों में ही खराब हो जा रही है।
बच्चों के सुरक्षित स्कूल पहुंचने की चुनौती
बाघ के दहशत से माध्यमिक स्कूलों में कक्षा आठ से 12 तक पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं का स्कूल तक सुरक्षित पहुंचना चुनौती बन गई है। काकोरी स्थित बाबू त्रिलोकी सिंह इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल राजकुमार सिंह ने बताया कि बुधड़िया, उलरापुर, सहिलामऊ, मीठे नगर और प्रभावित क्षेत्र से आने वाले छात्रों को समूह में स्कूल आने की सलाह दी गई है।
मवेशियों के लिए जंगल से घास लाने की हिम्मत नहीं
कौशल्या देवी ने बताया कि घर में पले मवेशियों के लिए चारे की दिक्कत होनी शुरू हो गई है। जंगल से घास काटकर लाते थे लेकिन अब जंगल मे जाने की हिम्मत नही है। मवेशी भूखे रह रहे है। जाड़े के लिए लकड़ियां भी लेने जंगल नही जा रहे है। उलरापुर निवासी संतोष कुमार का कहना है कि बच्चों को पढ़ने जाने के लिए जंगल के रास्ते से होकर जाना पड़ता है। छोटे बच्चों का स्कूल जाना बंद हो गया है जबकि बड़े बच्चे समूह में साइकिल से स्कूल जा रहे है।