राख का विज्ञान आया सामने, छह घंटे में बैक्टीरिया खत्म, सीसीएसयू में रिसर्च, पटेंट भी
नागा साधुओं को राख लपेटे भीषण ठंड में भी रहते तो सभी ने देखा है। इस राख के पीछे के विज्ञान की हमेशा चर्चा भी होती है। अब रिसर्च में भी राख की ताकत का पता चल गया है।
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दशकों पहले घर-घर राख से बर्तन साफ करने और बच्चे के दूध पीते ही राख चटाने की परंपरा के पीछे छुपा हुआ विज्ञान था। राख को अशुद्ध बता कंपनियों द्वारा डिटर्जेंट की ब्रांडिंग के बीच चौ.चरण सिंह विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान विभाग ने चुटकीभर राख की ताकत सिद्ध कर दी है। मात्र छह घंटे में राख ने ई-कोलाई और एस.ऑरस बैक्टीरिया को पूरी तरह से खत्म कर दिया। प्रो.संजीव कुमार शर्मा के निर्देशन में अभिषेक शर्मा द्वारा विज्ञान की कसौटी पर कसी राख की ताकत को साउथ कोरियन इंटरनेशनल जर्नल ’एडवांसेज इन नैनो साइंस’ और ’नैनो मैटेरियल’ जर्नल ने प्रकाशित किया है। राख पर शोधार्थियों को 2023 में कोरियन एवं 2024 में भारतीय पेटेंट भी मिल गया है। राख ने हानिकारक इन दोनों ही बैक्टिरिया को सामान्य तापमान 37 डिग्री सेल्सियस पर खत्म किया।
प्रो.शर्मा के अनुसार लैब में गन्ने की खोई, चीड़ की लकड़ी और अखरोट के छिलके से तैयार राख को लेकर प्रयोग किए गए। उक्त बैक्टीरिया के लिए गन्ने की खोई से प्राप्त राख प्रयुक्त हुई। खोई जलाकर मिली राख को कपड़े में छानकर इन्क्यूबेटर में बैक्टीरिया पर प्रयोग किया। राख में मुख्य रूप से पोटेशियम, सिलिकेट, कॉर्बन एवं मैग्नीशियम होता है। उक्त प्रक्रिया में पोटेशियम सिलिकेट की मौजूदगी में बैक्टीरिया वृद्धि नहीं कर सके और छह घंटे में नष्ट हो गए। प्रो.शर्मा के अनुसार सिलिकेट क्षारीय होता है और क्षारीय प्रकृति में कोई वायरस या बैक्टीरिया पनप नहीं सकता।
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चुटकीभर राख ने दिए सदियों पुराने जवाब
प्रो.संजीव शर्मा के अनुसार राख हमारी संस्कृति, आस्था और व्यवहार का हिस्सा रही है। हमारे पूर्वजों की पीढ़ी इसके पीछे के विज्ञान को नहीं समझते थे, ऐसे में उन्होंने इसे परंपरा में शामिल कर लिया। प्रो.शर्मा के अनुसार दूध पीने के बाद आधा घंटे में मुंह में बहुत से बैक्टीरिया पनपते हैं। ऐसे में राख चटाने से मुंह की प्रकृति क्षारीय हो जाती है और बैक्टीरिया नहीं पनप पाते थे। दांत साफ करने, बर्तन साफ करने के पीछे भी यही कारण था। एक तो राख में कोई केमिकल नहीं होता। यह पूरी तरह प्राकृ़तिक है और बैक्टीरिया को प्राकृतिक रूप से खत्म कर देती है। पेड़-पौधों पर भी राख का छिड़काव बैक्टीरिया से बचने को होता था।
साधुओं के भस्म लगाने के पीछे कारण
प्रो.शर्मा के अनुसार साधुओं के भस्म लगाने के पीछे भी विज्ञान है। सिलिका में कोई करंट नहीं गुजरता। यह प्रतिरोधक की तरह से काम करती है। ऐसे में साधु, नागा संन्यासी अपने शरीर पर भस्म लगाकर रखते हैं। इससे बाहर से सर्दी या गर्मी शरीर में प्रवेश नहीं करती और शरीर से ऊर्जा बाहर नहीं जा पाती। इस स्थिति में भस्म एक प्रतिरोधी परत की तरह काम करती है जिसमें सर्द या गर्म तापमान का कोई असर शरीर तक नहीं पहुंचता।
ऑनलाइन बिक रही दो सौ रुपये किलो
राख की ताकत समझने में भले ही समय लगा हो, लेकिन बाजार में राख की कीमत आसमान पर है। विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर राख की कीमत दो सौ से चार सौ रुपये किलो तक है। आठ किलो का पैकेट 1630 रुपये में मिल रहा है।