200 साल पुराना है यूपी के इस मंदिर का इतिहास, शादी के बाद भी दूल्हा-दुल्हन यहां लेते हैं फेरे
- हापुड़ स्थित सिद्धनाथ मंदिर की प्रसिद्धि हरियाणा और राजस्थान तक है। महाभारत काल में हस्तिनापुर से कुछ किमी दूर इस जंगल में आकर सहदेव ने तपस्या की थी। जिसके चलते इसका नाम सहदेवपुर कर दिया था। यहां दूल्हा-दुल्हन फेरे लेते हैं।
उत्तर प्रदेश के जिला हापुड़ में एक गांव है सैदपुर। जहां सिद्धनाथ मंदिर की प्रसिद्धि जनपद के आसपास गांव में ही नहीं बल्कि हरियाणा और राजस्थान तक है। बताया जाता है कि यहां पहले जंगल हुआ करता था जो आज सैदपुर के नाम से जाना जाता है। जबकि महाभारत काल में हस्तिनापुर से कुछ किमी दूर इस जंगल में आकर सहदेव ने तपस्या की थी। जिसके चलते इस माजरे का नाम सहदेवपुर कर दिया था। इस मंदिर के बारे में यह कहा जाता है कि जो यहां सच्चे मन से कुछ भी मांगता है वह पूरा हो जाता है।
कई राज्यों में है बाबा की मान्यता
जिला हापुड़ की तहसील गढ़ के गांव झड़ीना का माजरा सैदपुर था, जो अब हैदरपुर ग्राम पंचायत में शामिल कर दिया गया है। सैदपुर के जंगल में बाबा सिद्धनाथ का मंदिर है। यहां हरियाणा और राजस्थान से भी श्रद्धालु आते हैं। जबकि झड़ीना समेत आसपास के गांव का प्रत्येक ग्रामीण रविवार को दूधाभिषेक, जलाभिषेक कर प्रसाद चढ़ाने जाते हैं। दूर दराज से हजारों श्रद्धालु रोज बाबा पर आते हैं।
यहां समा गई थी बारात
झड़ीना निवासी भूषण, बबली त्यागी, डॉ. जयनंद त्यागी, बिनेश त्यागी, कोमल बताते हैं कि कई पीढ़ी पहली बात हैं, जब मेरठ के एक गांव से एक बेटे की बारात झड़ीना के लिए आ रही थी। करीब 200 साल पहले यह गांव भी मेरठ जिले में ही आता था। उस समय बारात गांव में सीधे नहीं आती थी। कई दिनों तक बारात रुका करती थी। उसी क्रम में बारात झड़ीना के माजरे के जंगल में मंदिर पर रुक गई थी। परंतु रात को न जाने क्या ऐसा हुआ कि पूरी बारात धरती में समां गई थी।
दोनों गांवों के बीच नहीं होते रिश्ते
आज भी झड़ीना और उस गांव के बीच कोई रिश्ता नहीं होता। दोनों गांवों में तब से आज तक कोई शादी नहीं की गई है। न ही झड़ीना की लड़की की शादी उस गांव की जाती और न ही उस गांव की लड़की की शादी झड़ीना में की जाती है।
कंगने से पहले दुल्हा-दुल्हन लेते हैं मंदिर पर फेरे
बाबा सिद्धनाथ के मंदिर के बिना आसपास के गांवों में कोई भी दुल्हन बिना बाबा मंदिर पर आए कंगना तक नहीं खुलवा सकती। कंगना की रस्म भी तब होती पहले बाबा के मंदिर पर जाकर पूरा परिवार गीत गाता हैं और दुल्हा-दुल्हन के फेरे होते हैं।