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प्रबंधन से नियुक्त अध्यापक को सरकार से वेतन का हक नहीं, हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि तदर्थवाद को समाप्त करने के लिए 25 जनवरी 1999 के बाद अध्यापकों की नियुक्ति का अधिकार माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड को दे दिया गया।

Dinesh Rathour हिन्दुस्तान, प्रयागराज, विधि संवाददाताSun, 27 April 2025 10:29 PM
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प्रबंधन से नियुक्त अध्यापक को सरकार से वेतन का हक नहीं, हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि तदर्थवाद को समाप्त करने के लिए 25 जनवरी 1999 के बाद अध्यापकों की नियुक्ति का अधिकार माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड को दे दिया गया और प्रबंध समिति का अल्पकालिक रिक्त पद पर नियुक्ति का अधिकार समाप्त कर दिया गया है। साथ ही तदर्थ नियुक्ति के नियमितीकरण का कोई प्रावधान नहीं किया गया है इसलिए प्रबंध समिति द्वारा नियुक्त अध्यापक को वेतन भुगतान करने का राज्य सरकार को निर्देश नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि इंटरमीडिएट शिक्षा कानून की धारा 16(2) के अनुसार अधिनियम के प्रावधानों के उल्लघंन कर की गई कोई भी नियुक्ति शून्य होगी।

यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र एवं न्यायमूर्ति पीके गिरि की खंडपीठ ने राज्य सरकार की विशेष अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। इसी के साथ कोर्ट ने राज कुमारी को नियमित कर वेतन भुगतान करने के एकल पीठ के आदेश को विधि विरुद्ध करार देते हुए रद्द कर दिया है। हालांकि यह भी कहा कि याची अध्यापिका चाहे तो प्रबंध समिति से वेतन की मांग कर सकती है लेकिन राज्य सरकार उसके वेतन का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।

मामले के तथ्यों के अनुसार बिशारा इंटर कॉलेज अलीगढ़ में पद रिक्त होने पर बोर्ड से चयनित अध्यापक नहीं आया तो प्रबंध समिति ने नौ मई 2005 को रिक्त सहायक अध्यापक के पद पर याची की नियुक्ति कर ली। उसकी सेवा नियमित करने की मांग पांच फरवरी 2024 को अस्वीकार कर दी गई तो उसने हाईकोर्ट में याचिका की। एकल पीठ ने सुनवाई के बाद याची को नियमित कर वेतन भुगतान का आदेश दिया। अपील में इस आदेश को चुनौती दी गई थी।

राज्य सरकार का कहना था कि रिक्त पद पर प्रबंध समिति को याची की नियुक्ति का कानूनी अधिकार नहीं था। रिक्तियां केवल बोर्ड से की जानी थी। सरकार ने तदर्थवाद को खत्म करने के लिए कानूनी प्रावधानों के विपरीत नियुक्ति को शून्य करार दिया है, जो 25 जनवरी 1999 से लागू है इसलिए एकल पीठ का आदेश विधि विरुद्ध है।

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