कुशीनगर में बुलडोजर ऐक्शन पर सु्प्रीम कोर्ट सख्त, अवमानना नोटिस जारी; ध्वस्तीकरण पर रोक
- कुशीनगर के अधिकारियों को एक मस्जिद के हिस्से को गिराने के आरोप में सुप्रीम कोर्ट अवमानना नोटिस जारी किया है। यह भी निर्देश दिया कि अगले आदेश तक संबंधित ढांचे को ध्वस्त नहीं किया जाएगा। कहा है कि यह कार्रवाई शीर्ष अदालत के नवंबर 2024 के फैसले का उल्लंघन है।
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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के अधिकारियों को एक मस्जिद के हिस्से को गिराने के आरोप में अवमानना नोटिस जारी किया है। कहा है कि अधिकारियों द्वारा की गई यह कार्रवाई शीर्ष अदालत के नवंबर 2024 के फैसले का उल्लंघन है। अदालत ने बिना पूर्व सूचना और सुनवाई का अवसर दिए देशभर में विध्वंस की कार्रवाई पर रोक लगा दी गई थी।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि अगले आदेश तक संबंधित ढांचे को ध्वस्त नहीं किया जाएगा। पीठ ने शीर्ष अदालत के पिछले साल 13 नवंबर के निर्देशों का पालन करने में विफल रहने को लेकर कुशीनगर के संबंधित अधिकारियों के खिलाफ दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने दलील दी कि तोड़फोड़ सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले साल नवंबर में दिए गए फैसले की घोर अवमानना है। पीठ ने कहा कि नोटिस जारी करें कि प्रतिवादियों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए। अदालत ने मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद के लिए सूचीबद्ध कर दी।
निजी भूमि पर बनी थी मस्जिद
अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी की इस दलील पर गौर किया कि विवादित संरचना याचिकाकर्ताओं के स्वामित्व वाली निजी भूमि पर बनाई गई थी। अधिवक्ता अब्दुल कादिर अब्बासी के माध्यम से दायर नई याचिका में कहा गया कि प्राधिकारियों ने 9 फरवरी को कुशीनगर में मदनी मस्जिद के बाहरी और सामने के हिस्से को ध्वस्त कर दिया था।
उचित मुआवजा भी मांगा
याचिका में अधिकारियों को मस्जिद में यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश देने की मांग की गई। इसमें विध्वंस के कारण उत्पन्न स्थिति को सुधारने के लिए बहाली या उचित मुआवजे के निर्देश भी मांगे गए।
कार्रवाई में कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं
पिछले साल शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए अपने फैसले में दिए गए निर्देशों का हवाला देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि कृपया देखें कि उन्होंने किस तरह से इस (संरचना) को ध्वस्त किया है। याचिका में आरोप लगाया गया कि विध्वंस की कार्रवाई उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना और शीर्ष अदालत द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के स्पष्ट उल्लंघन में की गई।
सुनवाई का मौका न दिया
अर्जी में दावा किया गया, अधिकारियों ने विध्वंस की कार्रवाई शुरू करने से पहले याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का अनिवार्य अवसर नहीं प्रदान किया। याचिका में कहा गया कि सुनवाई का अवसर दिए बिना कार्यवाही करना प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है, जिसका स्पष्ट रूप से अधिकारियों द्वारा पालन किए जाने की अपेक्षा की गई थी, जैसा कि इस कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों में उल्लिखित है।
नियमों का पालन हुआ
साथ ही याचिका में यह भी कहा गया है कि जिस जमीन पर मस्जिद बनाई गई है, उसे याचिकाकर्ताओं ने 29 जून 1988, 28 मार्च 1989, 30 जून 1989 और 23 फरवरी 2013 को पंजीकृत बिक्री विलेखों के माध्यम से खरीदा था। इसमें कहा गया है कि मस्जिद के निर्माण के लिए नक्शा सितंबर 1999 में नगर पंचायत, हाटा द्वारा स्वीकृत किया गया था। फिर भी अफसरों ने कोई मौका नहीं दिया।
एसडीएम ने दी थी क्लीन चिट
याचिका में यह भी जिक्र है कि एक शिकायत पर हाटा के एसडीएम ने निरीक्षण किया था और एक विस्तृत रिपोर्ट दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ताओं द्वारा कोई अतिक्रमण नहीं किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जल्दबाजी में इस तरह की कार्रवाई करके प्रशासन ने स्थानीय मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं के प्रति पूरी तरह से उपेक्षा दिखाई, जो अपनी धार्मिक प्रथाओं के लिए इस संरचना पर निर्भर हैं।