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बाढ़ का पानी उतरते ही घाट सफाई में सामाजिक संस्थाएं भी उतरी, घाटों पर निकल रहा मलबा

गंगा का जलस्तर घटने से बाढ़ का पानी उतरते ही पक्के घाट मिट्टियों व मलबों से पट गये हैं। जिसकी सफाई नगर निगम के लिए चुनौती बनी है। हालांकि नगर निगम प्रशासन से नहीं लेकिन सामाजिक संस्थाएं आई हैं।

Srishti Kunj हिन्दुस्तान, वाराणसीSat, 3 Sep 2022 08:02 AM
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वाराणसी। गंगा का जलस्तर घटने से बाढ़ का पानी उतरते ही पक्के घाट मिट्टियों व मलबों से पट गये हैं। जिसकी सफाई नगर निगम के लिए चुनौती बनी है। हालांकि नगर निगम प्रशासन सफाई के लिए नहीं आया, लेकिन सामाजिक संस्थाएं घाट पर उतर आई हैं। शनिवार को नमामि गंगे टीम ने अस्सी घाट पर स्वच्छता अभियान चलाया। घाट पर जमी मिट्टी से पॉलीथिन और करीब 200 किग्रा कपड़ों को निकाला। साथ ही लोगों से भी सफाई के लिए आगे आने और नदी में गंदगी न करने की अपील की गई। 

काशी क्षेत्र के संयोजक राजेश शुक्ला ने कहा कि गंगा में बाढ़ के कारण जमी मिट्टी में कपड़े, पॉलिथीन व अन्य प्रदूषित करने वाली सामग्रियां भी हैं। प्रदूषित सामग्रियां गंगा में न जाएं यह हम सभी की जिम्मेदारी है। सफाई में महानगर सह संयोजिका बीना गुप्ता, महानगर प्रभारी पुष्पलता वर्मा, एसके वर्मा, अनूप जोशी, शांतम सक्सेना आदि रहे।

गंगा और वरुणा के बाढ़ में कमी आने के बाद प्रभावित क्षेत्रों के लोगों की दिनचर्या पटरी की ओर आती दिख रही है लेकिन अभी जगह-जगह जलजमाव, कीचड़-गंदगी से निकलती दुर्गंध गंभीर चुनौती बनी हुई है। प्रभावित क्षेत्रों के लोग सुबह से शाम तक कष्ट बुहार रहे हैं। मच्छरों व मक्खियों से परेशानी बढ़ गई है। संक्रामक और मच्छरजनित बीमारियों (डेंगू, मलेरिया आदि) के पांव पसारने की आशंका भी है। कुछ मोहल्लों और राहत शिविरों में सफाई, कूड़ा उठान, एंटी लार्वा व ब्लीचिंग के छिड़काव और फागिंग से काफी हद तक राहत है, ज्यादातर क्षेत्र अभी दुश्वारियों से जूझ रहे हैं। शुक्रवार रात छह बजे गंगा के जलस्तर में 8 सेंमी प्रति घंटा की गति से कमी आ रही थी।

प्रभावित गांवों में लगाए गए 88 सफाईकर्मी
गंगा और वरुणा की बाढ़ उतरने के बाद अब ग्रामीण इलाकों में मलवा और गंदगी साफ करने के लिए पंचायतीराज विभाग ने 61 प्रभावित गांवों में अतिरिक्त सफाईकर्मियों को लगाया है। चिरईगांव ब्लॉक में सबसे ज्यादा 36 गांव प्रभावित हैं। चोलापुर के 14 और काशी विद्यापीठ 11 गांवों में भी खासा असर रहा। यहां हजारों एकड़ धान, मोटे अनाज, दलहनी और तिलहनी फसलों का नुकसान हुआ। पेयजल की सबसे ज्यादा दिक्कत है।

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