Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़up nikay chunav Why did BJP have to throw power on the Ayodhya Mayor seat Won by a small margin in 2017

अयोध्या मेयर सीट पर बीजेपी को क्यों झोंकनी पड़ गई ताकत? 2017 में मामूली अंतर से मिली थी जीत

अयोध्या में सीएम योगी ही नहीं पूरी पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। ऐसे में भाजपा ने यहां पर पूरी ताकत झोंक दी है। अयोध्या में 11 मई को दूसरे चरण का मतदान होना है। वोटों की गिनती 13 मई को होगी।

Yogesh Yadav लाइव हिन्दुस्तान, अयोध्याTue, 2 May 2023 08:42 PM
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भारतीय जनता पार्टी के लिए रामनगरी अयोध्या का महत्व किसी से छिपा नहीं है। यहां से निकलने वाला संदेश पूरे देश में प्रतीक बनता है। आज भाजपा जो कुछ भी है उसका सबसे बड़ा कारण अयोध्या ही है। यही कारण है कि अयोध्या के विकास के लिए भाजपा सरकार ने खजाना खोल रखा है। भाजपा का मानना है कि अयोध्या का एक-एक नागरिक उसके साथ है। ऐसे में शहर के प्रथम नागरिक यानी मेयर की सीट भाजपा के लिए सबसे महत्वपूर्ण हो गई है।

2017 के निकाय चुनाव में केवल साढ़े तीन हजार वोटों से भाजपा को जीत मिली थी। इस बार न केवल मेयर की सीट जीतने पर भाजपा का जोर है बल्कि मार्जिन को बढ़ाने की चुनौती भी है। सीएम योगी ही नहीं पूरी पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। ऐसे में भाजपा ने यहां पर पूरी ताकत झोंक दी है। अयोध्या में 11 मई को दूसरे चरण का मतदान होना है। वोटों की गिनती 13 मई को होगी।

अयोध्या नगर निगम में मेयर सीट के साथ ही 60 वार्ड हैं। पिछले निकाय चुनाव बीजेपी के मेयर पद के उम्मीदवार ऋषिकेश उपाध्याय ने समाजवादी पार्टी के गुलशन बिंदू को केवल 3601 वोटों के मामूली अंतर से हरा पाए थे। उपाध्याय को बिंदु 44642 और सपा प्रत्याशी को 41041 मत मिले थे। 60 में से भाजपा 30 वार्डों में ही 30 बीजेपी जीत सकी थी। 

इस बार एक तरफ बीजेपी के सामने मेयर की जीत और मार्जिन बढ़ाने की चुनौती है तो दूसरी तरफ स्थानीय कार्यकर्ताओं में नाराजगी ने उसकी लड़ाई कठिन बना दी है। यह नाराजगी बीजेपी के मेयर पद के उम्मीदवार महंत गिरीशपति त्रिपाठी की जीत की संभावनाओं पर पानी फेर सकती है। त्रिपाठी अयोध्या के एक स्थानीय मंदिर में पुजारी हैं और 2017 से पहले वे कांग्रेस में थे।

भाजपा के बागी शरद पाठक भी मेयर पद के दावेदार थे। जब पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो पाठक ने अपनी पत्नी अनीता को निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतार दिया है। हालांकि यहां पर भाजपा के गिरीशपति त्रिपाठी के मुख्य दावेदार समाजवादी पार्टी के आशीष पांडेय हैं। 

अयोध्या के 60 वार्डों में पार्षदों की सीट के लिए मैदान में उतरे बीजेपी उम्मीदवारों को भी बागियों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। ये बागी बीजेपी की 30 सीटों की संख्या को कम कर सकते हैं। नतीजतन, आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा नेतृत्व ने अयोध्या में असंतुष्ट पार्टी कार्यकर्ताओं को शांत करने के लिए राज्य के अनुभवी नेताओं को भेजा है। 

माना जा रहा है कि अगर राम मंदिर मतदाताओं के बीच मुख्या मुद्दा बना रहता है तो भाजपा मेयर की सीट बरकरार रखने में सक्षम होगी और अपने जीत के अंतर में भी सुधार कर सकती है। नहीं तो इस बार सीट बचाना बीजेपी के लिए मुश्किल साबित हो सकता है। 

हालांकि, पिछले चुनाव में भाजपा उम्मीदवारों के लिए राम मंदिर का मुद्दा काम नहीं कर सका था। इस बार भी वार्ड स्तर पर राम मंदिर का मुद्दा भाजपा उम्मीदवारों की मदद करने में सक्षम नहीं हो रहा है। बागी नेता पार्टी के उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचाएंगे।

मार्च 2017 में राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद योगी आदित्यनाथ की सरकार ने ही अयोध्या और मथुरा-वृंदावन नगर निगमों का गठन किया था। अयोध्या से बीजेपी सांसद लल्लू सिंह ने पार्टी प्रत्याशी के विरोध को अप्रासंगिक बताकर खारिज कर दिया। सिंह ने कहा कि बीजेपी न केवल मेयर की सीट बरकरार रखेगी, बल्कि काफी अंतर से जीत भी हासिल करेगी।

बीजेपी के पक्ष में क्या रुख मोड़ सकता है?

हालांकि अयोध्या के एक राजनीतिक विश्लेषक के अनुसार समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में भी अपने मेयर उम्मीदवारों के खिलाफ नाराजगी है। यह नाराजगी भाजपा उम्मीदवार के लिए मददगार साबित हो सकती है। समाजवादी पार्टी की स्थानीय इकाई में अपने उम्मीदवार आशीष पांडेय के खिलाफ नाराजगी है। कांग्रेस उम्मीदवार प्रमिला राजपूत के साथ भी ऐसा ही है।

उन्होंने कहा कि महंत गिरीशपति त्रिपाठी अगर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के असंतुष्ट कार्यकर्ताओं का दिल जीतने में सफल रहते हैं, तो भाजपा की जीत काफी अंतर से सुनिश्चित है। अपने कॉलेज के दिनों में त्रिपाठी की स्थानीय लोकप्रियता और छात्र राजनीति भी उन्हें अपने विरोधियों की चुनौती से बचने में मदद कर सकती है।

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