यूपी कैबिनेट: राजकीय चिन्ह का दुरुपयोग करने पर होगी दो साल तक की जेल, पांच हजार का लगेगा जुर्माना
उत्तर प्रदेश के राजकीय चिन्ह के दुरुपयोग को रोकने के लिए राज्य सरकार ने नियमावली बना दी है। इसके तहत इसका दुरुपयोग संज्ञेय अपराध होगा। केवल संवैधानिक पद पर बैठे लोग, विधानमंडल के सदस्य, विधानमंडल...
उत्तर प्रदेश के राजकीय चिन्ह के दुरुपयोग को रोकने के लिए राज्य सरकार ने नियमावली बना दी है। इसके तहत इसका दुरुपयोग संज्ञेय अपराध होगा। केवल संवैधानिक पद पर बैठे लोग, विधानमंडल के सदस्य, विधानमंडल द्वारा बनाए गए आयोग व अधिकरण के अध्यक्ष व सदस्य ही इसका उपयोग कर सकेंगे। कैबिनेट ने राज्य संप्रतीक प्रयोग का (विनियमन)) 2021 को मंजूरी दे दी। प्रतीक चिन्ह का अनाधिकृत प्रयोग दंडनीय अपराध होगा। राज्य संप्रतीक अनुचित प्रयोग का प्रतिषेध अधिनियम-2019 में लाया गया था। इसके तहत अब नियमवली बनाई गई है। इसके तहत छह माह से दो साल तक सजा या 5000 रुपये का आर्थिक दंड लगाया जा सकता है। दुबारा गलती करने पर फिर छह माह की जेल या जुर्माना लगाया जाएगा। असल में देखने में आया है कि कई लोग अनुचित तरीके से इस राजकीय चिन्ह का इस्तेमाल अपने लेटरहैड, विजिटिंग कार्ड में करते हैं। यही नहीं वाहन पर भी इसका खूब इस्तेमाल होता है। पूर्व विधायक भी इसका इस्तेमाल गाड़ियों में करते हैं।
विश्वविद्यालय के घटक होंगे नए महाविद्यालय
प्रदेश सरकार ने नवनिर्मित एवं निर्माणाधीन राजकीय महाविद्यालयों को राज्य विश्वविद्यालयों के घटक महाविद्यालय के रूप में संचालित करने का फैसला किया है। यह फैसला बुधवार को हुई प्रदेश कैबिनेट की बैठक में लिया गया। इन महाविद्यालयों को पहले प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल पर संचालित करने की योजना बनाई गई थी। इस संबंध में निजी क्षेत्र से प्रस्ताव भी मांगे गए थे लेकिन यह योजना सफल नहीं हो पाई। अब इन महाविद्यालयों को राज्य विश्वविद्यालयों को सौंपने का फैसला किया गया है। विश्वविद्यालय इन्हें अपने घटक कॉलेज के रूप में संचालित करेंगे। इनमें शिक्षकों एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की नियुक्ति विश्वविद्यालयों के स्तर से की जाएगी। इस फैसले के बाद कई राज्य विश्वविद्यालयों को घटक कॉलेज मिल जाएंगे। अभी तक विश्वविद्यालय केवल संबद्धता प्रदान करते थे। इनमें राजकीय, सहायता प्राप्त व स्ववित्तपोषित महाविद्यालय होते थे। अब वे अपना खुद का महाविद्यालय भी चलाएंगे। हालांकि शिक्षकों के संघठन इसका विरोध करते रहे हैं। उनका कहना है कि इन महाविद्यालयों का संचालन भी स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों की तरह ही किया जाएगा।