कानपुर, लखनऊ से लेकर पटना तक भूकंप का खतरा, आईआईटी कानपुर के अध्ययन में खुलासा
कानपुर, लखनऊ से लेकर पटना तक भूकंप का खतरा है। इसका खुलासा आईआईटी कानपुर के अध्ययन में किया गया।
आईआईटी, कानपुर के विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तराखंड और आसपास भूकंप के इतिहास पर जो अध्ययन किया गया है उससे पता चलता है कि कानपुर,लखनऊ से लेकर पटना समेत पूरा क्षेत्र संवेदनशील है। यहां सैकड़ों साल पहले अधिक तीव्रता के भूकंप आए हैं। इस कारण इनके फिर आने की संभावनाएं प्रबल हैं। बस यह तय नहीं किया जा सकता कि सैकड़ों साल बाद आएगा या कुछ वर्षों में।
नेपाल और फिर उत्तराखंड में आए भूकंप का असर दिल्ली, लखनऊ और कानपुर तक पहुंचा है। आईआईटी ने 1505 और 1803 में आए भूकंपों का अध्ययन किया है। 1505 के भूकंप की तीव्रता 08 या 08.5 के बीच की रही होगी। 1803 का भूकंप 7.5 से 8.0 के बीच का माना जा रहा है। यह दो भूकंप इस पूरे क्षेत्र में भविष्य के लिए भी संकेत हैं।
क्यों ऊपरी मंजिल पर हुआ अहसास
आईआईटी के वरिष्ठ वैज्ञानिक का कहना है कि भूकंप की हाई फ्रीक्वेंसी एपीसेंटर के नजदीक खत्म हो जाती है,लेकिन लो फ्रीक्वेंसी लंबी दूरी तक जाती है। कानपुर या लखनऊ में लो फ्रीक्वेंसी थी,जिससे ऊपरी मंजिलों पर भूकंप का अहसास होता है। नीचे की मंजिलों में इसका अहसास बेहद कम होता है।
भूकंप की दृष्टि से देश को पांच जोन में बांटा गया
भूकंप की दृष्टि से देश को पांच जोन में बांटा गया है। हिमालय का क्षेत्र सर्वाधिक संवेदनशील होने के कारण जोन पांच में है। जोन चार में तराई का क्षेत्र आता है। जोन तीन में कानपुर और आसपास के इलाके आते हैं। जोन दो और एक कुछ हद तक सुरक्षित माने जाते हैं। आईआईटी के वैज्ञानिक ने बताया कि एक छात्र उपकरण तैयार कर रहा है। उसका नाम विकास है। दो दिन पहले उसने क्षेत्र में भूकंप आने की जानकारी फोन कर दी थी। यह संयोग भी हो सकता है। वैज्ञानिक तौर पर इसे परखना शेष है। इस पर कार्य चल रहा है।
आईआईटी कानपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर जावेद मलिक ने बताया कि अब तक का जो अध्ययन है वह यह बताता है कि इस पूरी बेल्ट में ऐसे भूकंप का इतिहास रहा है,जिससे तबाही आई है। यदि किसी क्षेत्र में भूकंप का इतिहास होता है तो वहां वैसे भूकंप की संभावनाएं बनी रहती हैं। बस यह तय नहीं कर सकते कि इसमें कितने वर्ष लगेंगे। इसलिए भविष्य में भूकंप रोधी भवन बनाने चाहिए।
वरिष्ठ जियोलॉजिस्ट डॉ. विजय खन्ना ने बताया कि दिल्ली, कानपुर से पटना और आसपास का क्षेत्र अधिक संवेदनशील होता जा रहा है। इसके कई तकनीकी कारण हैं। अमेरिका में सन 1600 तक के भूकंपों का अध्ययन किया गया है। ग्रहण का भूकंप से कोई सीधा संबंध साबित नहीं हुआ है। फिर भी और अध्ययन की जरूरत है।
वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य केए दुबे पद्मेश ने बताया कि हमने पहले भी कहा था कि जब ग्रहण पड़ता है तो प्राकृतिक प्रकोप की संभावना अधिक रहती है। इसका असर जलवायु पर भी पड़ता है। ग्रहण के बाद आया भूकंप इसी का संकेत है। ज्योतिष के आधार पर कहा जा सकता है कि इससे मानव में हिंसक प्रवृत्ति बढ़ेगी। आने वाले समय में भी प्राकृतिक आपदाएं भी आ सकती हैं।
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