पितृ विसर्जन पर सूर्य ग्रहण, क्या कहते हैं ज्योतिषी, श्राद्ध में आ सकती है कोई रुकावट?
पितृ विसर्जन के दिन सूर्य ग्रहण को लेकर श्राद्ध और तर्पण पर आशंकाए उठ ही हैं। कई सवाल खड़े हो रहे हैं। इसी पर ज्योतिषियों और विद्वानों ने लोगों की शंकाएं दूर की हैं। कहा कि भ्रम में न रहें।
पितृ अमावस्या यानी 14 अक्तूबर को सूर्यग्रहण लग रहा है। इसे लेकर लोग आशंकित हैं। तरह-तरह की शंकाएं लोगों के मन में आ रही हैं। श्राद्ध और तर्पण को लेकर सवाल हो रहे हैं। इसी पर ज्योतिषियों और विद्वानों ने लोगों की शंकाएं दूर की हैं। साफ किया कि यह सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा। इसी कारण इसका सूतक भी भारत में नहीं लगेगा। विद्वानों ने सलाह दी है कि पितृ अमावस्या पूर्ववत श्रद्धा और विश्वास के साथ करें। किसी भ्रम में न रहें। पितरों के निमित दीपदान और तर्पण करें। 14 अक्टूबर को भारतीय समयानुसार रात 08 बजकर 34 मिनट से साल का दूसरा सूर्यग्रहण प्रारंभ होगा जो रात 02 बजकर 25 मिनट तक रहेगा। इसका भारत में सूतक नहीं होगा। यह चित्रा नक्षत्र में होगा। यह ग्रहण पश्चिमी अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, अटलांटिका, अंटार्कटिका में दिखाई देगा।
नहीं लगेगा सूतक, समय से करें तर्पण
ब्रजघाट ( गढमुक्तेश्वर) के पंडित अनिल कौशिक के अनुसार सूर्यग्रहण का अपने भारत में कोई असर नहीं है। इसलिए ग्रहण का सूतक भी नहीं लगेगा। किसी भी प्रकार के भ्रम में न रहें। श्राद्ध कर्म करें। सनातम धर्म से जुड़े परिवार अपने घर अथवा गंगा तट पर पितरों का तर्पण करें और उनको पूजा अर्चना के बाद क्षमा याचना के साथ फिर से स्वर्गलोक भेजे। यही बात, भारतीय ज्योतिष कर्मकांड महासभा के अध्यक्ष केसी पांडेय ने भी कही है।
श्राद्ध अमावस्या पर निकलेंगे जल पत्तल
पंडित कुलदीप भारद्वाज ने बताया कि अगर किसी सदस्य की किसी भी कारण से मृत्यु हो जाती है, तो उसका पहला श्राद्ध गंगा तट परअमावस्या को किया जाता है।
अमावस्या के दिन पितरों की पूजा विधि
पितरों का पूजन (श्राद्ध, तर्पण आदि) मनुष्य के जीवन में कृपा बरसाने वाला, सुख-शान्ति, धन-समृद्धि व पुत्र-पौत्र देने वाला होता है। किसी शुद्ध स्थान पर जमीन में रोली से सतिया (स्वास्तिक) बनाएं और फिर उस पर जल व रोली के छींटे लगाकर पुष्प चढ़ा दें। तर्पण करें और भोजन कराएं।
पितृ अमावस्या को सभी पूर्वजों का स्मरण
पितृ विसर्जनी अमावस्या को ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का स्मरण किया जाता है और उनके निमित तर्पण, दान और दीपदान होता है। 16 दिन यदि किसी कारणवश श्राद्ध नहीं कर पाएं हों तो अमावस्या के दिन अवश्य करना चाहिए। इसी के साथ पूर्वज यानी पितृ विदा होते हैं।