एक आदेश से चार मौलिक अधिकारों का हनन; सुप्रीम कोर्ट में कांवड़ यात्रा नेमप्लेट विवाद पर गहरे सवाल
कांवड़ यात्रा के रास्ते में खान-पान की दुकानों पर मालिकों का नाम लिखने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक तो लगा दी है। सुनवाई के दौरान इस एक आदेश से चार मौलिक अधिकारों के हनन का गहरा सवाल उठा।
कांवड़ यात्रा के रूट पर खान-पान की दुकानों में दुकानदार के नाम लिखवाने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है। सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान एक आदेश से नागरिकों के चार मौलिक अधिकारों के हनन का गंभीर सवाल याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने उठाया। सर्वोच्च न्यायायल के जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवी भट्टी की बेंच ने अंतरिम आदेश सुनाते समय नागरिकों को मिले उन चार मौलिक अधिकारों के हनन के सवाल का नोटिस लिया है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए शुक्रवार 26 जुलाई तक जवाब मांगा है। 26 जुलाई को ही मामले में आगे सुनवाई होगी। देश भर में सावन महीने की शुरुआत के साथ कांवड़ यात्रा शुरू हो चुकी है।
सुप्रीम कोर्ट में एनजीओ एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर), टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और सामाजिक कार्यकर्ता अपूर्वानंद व आकार पटेल ने अलग-अलग याचिका दायर कर इस आदेश का विरोध किया था। एपीसीआर की तरफ से सीयू सिंह, महुआ की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी और अपूर्वानंद व आकार पटेल की तरफ से हुफेज अहमदी ने दलीलें दी। दलीलों में दुकान के बाहर मालिक और स्टाफ का नाम लिखने की वजह से जमीन पर हो रहे असर की चर्चा करते हुए कहा गया कि ये संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 17 और 19 के अलग-अलग हिस्सों का उल्लंघन करता है। ये सारे आर्टिकल संविधान के तहत नागरिकों को मिले मौलिक अधिकार की बात करते हैं। तो जानते हैं कि ये आर्टिकल क्या कहते हैं।
संविधान का आर्टिकल 14 कहता है कि सरकार किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या भारत के क्षेत्र के भीतर कानूनों के समान संरक्षण से इनकार नहीं करेगा। मतलब ये हुआ कि कानून सबके लिए बराबर है। आर्टिकल 15 कहता है कि सरकार किसी व्यक्ति से धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगी। अनुच्छेद 15 (2) के मुताबिक किसी को धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर दुकान, रेस्तरां, होटल या मनोरंजन की जगहों पर प्रवेश से नहीं रोका जाएगा।
संविधान का आर्टिकल 17 छूआछूत को गैर-कानूनी बनाता है। यह अनुच्छेद कहता है कि अस्पृश्यता खत्म कर दी गई है और किसी रूप में ऐसा करना निषेध है। वकीलों ने कांवड़ यात्रा नेम प्लेट आदेश को संविधान के आर्टिकल 19 (1) (G) का भी उल्लंघन बताया है। इस अनुच्छेद के तहत लोगों को कोई भी नौकरी, पेशा, व्यापार, कारोबार आदि करने की छूट है।