मुलायम की सीट पर कोई रिस्क नहीं? मैनपुरी जीतने के लिए क्या-क्या कर रहे अखिलेश यादव
सपा मुखिया अखिलेश यादव आजमगढ़ लोकसभा सीट गंवाने के बाद पिता मुलायम के निधन से खाली हुई मैनपुरी को किसी भी हाल में अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं। इस सीट को जीतने के लिए तैयारियों में जुट गए हैं।
सपा मुखिया अखिलेश यादव आजमगढ़ लोकसभा सीट गंवाने के बाद पिता मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई मैनपुरी को किसी भी हाल में अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं। वह इस सीट को हर हाल में परिवार के पास रखना चाहते हैं। इसमें कोई कसर न रह जाए इसके लिए वह तैयारियों में जुट गए हैं।
मंगलवार सुबह अखिलेश यादव ने पार्टी के खास लोगों से मुलाकात की और मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव को लेकर रणनीति तैयार की। मैनपुरी व इटावा से पहुंचे नेताओं से भी अखिलेश ने बातचीत की। इसके साथ ही उन्होंने पार्टी के प्रमुख महासचिव प्रो.रामगोपाल यादव के आवास पर जाकर उनके साथ चर्चा भी की। वह सोमवार की देरशाम धौलपुर से यहां अपने आवास पर लौटे थे।
मैनपुरी लोकसभा के लिए पांच दिसंबर को उपचुनाव होना है। 1996 से अब तक यह सीट समाजवादी पार्टी के पास ही रही है। इस सीट पर कब्जा बरकरार रखने के लिए अखिलेश यादव सीधे तौर पर जुड़ गए हैं। सोमवार देरशाम वह धौलपुर से वापस सैफई आवास पर लौट थे। मंगलवार सुबह उन्होंने मैनपुरी व इटावा से बड़ी संख्या में पहुंचे पार्टी के खास लोगों से मुलाकात की।
दो घंटे तक आवास पर ही चुनाव तैयरियों पर चर्चा चलती रही। अखिलेश ने मैनपुरी की करहल, किशनी, भोगांव व सदर विधानसभा क्षेत्र के बारे में विस्तृत जानकारी ली। लोकसभा क्षेत्र की पांचवीं विधानसभा इटावा जिले की जसवंतनगर है। यहां से सपा अध्यक्ष के चाचा शिवपाल सिंह छह बार से विधायक हैं। ऐसे में इस क्षेत्र में सपा को खास मेहनत की जरूरत नहीं होती। इस विधानसभा को सपा का गढ़ भी माना जाता है। अखिलेश के साथ पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव, पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव भी मौजूद रहे।
शिवपाल दिखाने लगे आक्रामक रुख
प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव अब एक बार फिर सपा के प्रति आक्रामक तेवर दिखाने के संकेत दे रहे हैं। उन्होंने मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में अपनी भूमिका को लेकर अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं, पर इतना जरूर है कि उनका रुख सपा के लिए मुश्किल पैदा करेगा।
गोरखपुर में मंगलवार को उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव चापलूसों से घिरे हैं। साफ है कि मुलायम के न रहने के बाद अखिलेश व शिवपाल में नजदीकी की संभावनाएं भी अब इस तरह की बयानबाजी से धूमिल होती दिख रही हैं।
सूत्र बताते हैं कि सपा परिवार में रविवार को हुई बैठक में तेज प्रताप यादव को प्रत्याशी बनाने पर सहमति लगभग बन गई थी लेकिन शिवपाल को साथ लाने पर बात नहीं बनी। इसी के बाद प्रसपा अध्यक्ष की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई है।
शिवपाल के सामने भी कम नहीं हैं मुश्किलें
मुलायम सिंह यादव के चले जाने के बाद अब शिवपाल यादव के लिए यादव बेल्ट में खुद के लिए बड़ी भूमिका तलाशना चुनौती है। अभी मुलायम के प्रति सहानुभूति का लाभ अखिलेश यादव को ही मिलने के आसार ज्यादा हैं। ऐसे में शिवपाल खुद मैनपुरी में नेताजी की विरासत पर दावा ठोकते हुए उतरते हैं तो उनके लिए राह मुश्किल होगी। अगर भारतीय जनता पार्टी उन्हें परोक्ष समर्थन देने का वादा करे और वह इस भरोसे मैदान में उतरें तो उनके लिए संभावना बन सकती है।
पर भाजपा ऐसा करेगी, यह मुश्किल दिखता है। अभी वहां से कोई संकेत न मिलने के कारण ही वह भाजपा से समर्थन मिलने को काल्पनिक बात बता रहे हैं। भाजपा अपने बूते और पार्टी के प्रत्याशी को उतार यह जंग जीतना चाहती है। शिवपाल को तभी समर्थन मिल सकता है जब वह भाजपा में शामिल हो जाएं जिसका आफर उन्हें पहले भी मिला था। पर वह निर्णय नहीं ले सके।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में जब प्रसपा प्रत्याशी के तौर पर शिवपाल ने अपने लिए फिरोजबाद सीट चुनी थी, तब वह भाजपा से समर्थन पाने की उम्मीद में थे। उस वक्त उनके सामने उनके भतीजे अक्षय यादव सपा से मैदान में थे। शिवपाल के लड़ने से यादव वोट बंटे। वह तीसरे स्थान पर आए। भाजपा वहां जीत गई।