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मुलायम सिंह यादवः अखाड़े की पहलवानी से राजनीति के कुशल पहलवान, लंबा संघर्ष, चौंकाने वाले फैसले

मुलायम सिंह सबसे पहले अपनी पहलवानी के कारण मशहूर हुए। 1962 में जसवंतनगर की काशीपुर भदेही ग्राम पंचायत में खेत में बने अखाड़े में मुलायम सिंह की पहलवानी देख तत्कालीन विधायक उन्हें राजनीति मेें लाए।

Yogesh Yadav लाइव हिन्दुस्तान, लखनऊTue, 10 Oct 2023 07:44 AM
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मुलायम सिंह यादव की आज पहली पुण्यतिथि है। मुलायम ने सैफई के सामान्य परिवार से विधानसभा, फिर देश की संसद, अपने संघर्ष के दम पर मुख्यमंत्री और रक्षामंत्री तक का सफर तय किया। एक बार ऐसा भी मौका आया जब वह प्रधानमंत्री बनने के बिल्कुल करीब तक पहुंच गए। उनके कई ऐसे फैसले हुए जिसने विरोधियों को ही नहीं, अपनों को भी चौंकाया था। मुलायम केवल अखाड़े के ही नहीं राजनीति के भी कुशल पहलवान थे। यूपी में चार बार सत्ता में रहने वाली और आज भाजपा के बाद सबसे बड़ी पार्टी समाजवादी पार्टी को बनाने के पीछे मुलायम सिंह यादव का दशकों का संघर्ष रहा है। एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने अपने गुरु की पार्टी को ही तोड़ दिया था। 

मुलायम सिंह सबसे पहले अपनी पहलवानी के कारण मशहूर हुए। 1962 में जसवंतनगर की काशीपुर भदेही ग्राम पंचायत के गांव नगला अमर में खेत में बने अखाड़े में 23 साल के मुलायम सिंह यादव भी दांव आजमा रहे थे। एक के बाद एक कई पहलवानों को पटखनी दे रहे थे। तब तत्कालीन विधायक नत्थू सिंह भी कुश्ती देख रहे थे। मुलायम सिंह के दांव से विधायक इतना प्रभावित हुए कि उसे अपना खास शिष्य बना लिया। यहीं से मुलायम राजनीति में आ गए।

अगले वर्ष 1963 में मुलायम सिंह करहल के जैन इंटर कालेज में राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता बन गए। शिक्षा के साथ राजनीति में भी सक्रिय रहे। अपने समर्पण, मेहनत से मुलायम सिंह चंद दिनों में ही नत्थू सिंह के सबसे ज्यादा करीबी बन गए। इसके बाद नत्थू सिंह ने 1969 के चुनाव में अपनी जगह मुलायम सिंह यादव को ही जसवंत नगर से प्रत्याशी बना दिया। मुलायम सिंह यादव चुनाव जीते और पहली बार विधायक बन गए। इसके बाद उनका सियासी सफर रफ्तार पकड़ता चला गया। वह छह बार और विधायक बने। 1996 से लेकर 2019 तक पांच बार मैनपुरी के सांसद रहे। मुख्यमंत्री बने और रक्षामंत्री का भी पद संभाला।

मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1967 में राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से इटावा की जसवंतनगर सीट से विधायक बने। लोहिया के निधन के बाद सोशलिस्ट पार्टी और मुलायम दोनों कमजोर हुए। लेकिन मुलायम रुके नहीं। मौके की नजाकत भांप मुलायम ने चौधरी चरण सिंह के साथ आ गए। 1974 में चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांतिदल के टिकट पर मुलायम सिंह यादव फिर चुनावी समर में उतरे और विधानसभा पहुंचे। सैफई के इस नौजवान की रफ्तार पर दूसरी बार ब्रेक आपातकाल के दौरान लगा। चौधरी चरण सिंह जेल भेज दिए गए। उनके सहयोगियों की भी धर-पकड़ तेज हुई। मुलायम सिंह यादव में जेल भेजे गए।

मुलायम मंत्री बने, प्रदेश में अपनी जड़ें जमाईं
आपातकाल में जेल में रहने के बाद छूटे तो मुलायम सिंह यादव की किस्मत ने करवट ली। 1977 के दौरान प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी, मुलायम सिंह यादव अब मंत्री बन गए। यह वही दौर था जब चौधरी चरण सिंह दिल्ली चले गए। मुलायम ने मिले मौके का लाभ उठाया और प्रदेश में अपनी जड़ें जमाने में लग गए। लेकिन 1980 आते-आते दोहरी सदस्ता के चलते जनता पार्टी टूट गई।

मुलायम सिंह यादव को फिर चुनावी समर में उतरना पड़ा। 1980 में हुए इस चुनाव में मुलायम को हार का सामना करना पड़ा। सत्ता हाथ से जाने के बाद संगठन की कमान मिली। चुनाव हारने के बाद भी लोकदल के अध्यक्ष बने। मुलायम अपनी इमेज चौधरी चरण सिंह के उत्तराधिकारी के तौर पर बनाने लगे। 

विपक्ष का नेता बने, गुरु के बेटे को पटखनी दी
साल 1980 में चरण सिंह ने अपनी पार्टी का नाम बदलकर लोकदल कर दिया। 1985 के विधानसभा चुनाव में मुलायम फिर से विधायक बने। उनका कद और बढ़ा, उन्हें विपक्ष का नेता बना दिया गया। लेकिन दो साल बाद ही एक बार फिर मुलायम सिंह यादव की किस्मत ने करवट ली। 1987 में चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद अजीत सिंह पार्टी का नियंत्रण अपने हाथ में लेने की कोशिशों में तेजी से जुट गए। कहा जाता है कि उन्हीं के इशारे पर मुलायम सिंह यादव को विपक्ष के नेता का पद छोड़ना पड़ा। लेकिन इस बार मुलायम भिड़ने तो तैयार थे। लोकदल दो हिस्सो में बंट गया। 

लोकदल (अ) अजीत सिंह और लोकदल (ब) मुलायम सिंह यादव के साथ हो गया। विपक्ष का नेता पद छोड़ने के बाद भी मुलायम जमीन पर मेहनत करते रहे। 2 साल बाद  अजीत सिंह को राजनीतिक अखाड़े में पटखनी देने के बाद मुलायम सिंह यादव बीजेपी के 57 विधायकों के साथ पहली बार मुख्यमंत्री बने। राममंदिर आंदोलन के दौरान कांशीराम से मुलाकात हुई और मुलायम ने अपनी समाजवादी पार्टी बना ली। इसके बाद उन्होंने दो बार और मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। देश के रक्षा मंत्री भी रहे। 

सोनिया गांधी का भी रोक दिया था रास्ता
मुलायम सिंह यादव खुद तो प्रधानमंत्री नहीं बन सके लेकिन एक बार सोनिया गांधी का भी रास्ता रोक दिया था।  1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 1 वोट से गिर गई थी। तब सोनिया गांधी ने समाजवादी पार्टी समेत कई दलों के समर्थन से राष्ट्रपति केआर नारायणन से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया था। लेकिन आखिरी वक्त में सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर मुलायम सिंह यादव पीछे हट गए थे। इस तरह सोनिया गांधी पीएम बनते-बनते रह गईं। 

डकैतों का किया खात्मा, फूलन पर फैसले से सभी रह गए थे हैरान
चंबल और यमुना के बीहड़ से डकैतों के खात्मे में मुलायम सिंह की अहम भूमिका रही। मुलायम के सख्त रुख से डकैतों के हौसले पस्त पड़ गए। 90 के दशक में मुख्यमंत्री रहने के दौरान मध्य प्रदेश सरकार से बातकर योजना बनाई और इटावा, औरैया, जालौन, एमपी के भिंड, ग्वालियर, मुरैना में डकैतों के आतंक की कमर तोड़ दी।

पुलिस ने महज चार साल में करीब 12 दस्यु ढेरकर बीहड़ को डकैतों से मुक्त करा दिया। यहां से भागकर मध्य प्रदेश जाने वाले भी मारे गए। खौफ के चलते 50 से ज्यादा ने सरेंडर कर दिया था। मुलायम सिंह ने दस्यू सुंदरी के नाम से मशहूर रहीं फूलन देवी से मुकदमे वापस लेने का ऐलान कर सभी को हैरान कर दिया था। फूलन पर आरोप था कि बेहमई गांव में 22 ठाकुरों को गोलियों से भून दिया था। मुकदमे वापसी से फूलन की रिहाई हो गई।

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