प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मायावती ने कही ये बात
बसपा अध्यक्ष मायावती ने नियुक्तियों और प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सोमवार को असहमति जतायी है। गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि पदोन्न्ति में आरक्षण मौलिक...
बसपा अध्यक्ष मायावती ने नियुक्तियों और प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सोमवार को असहमति जतायी है।
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि पदोन्न्ति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है।
मायावती ने ट्वीट कर कहा, ''कल माननीय उच्चतम न्यायालय ने प्रमोशन में आरक्षण को लेकर जो कुछ कहा है, उससे बसपा सहमत नहीं है। उन्होंने केन्द्र सरकार से इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाने की मांग करते हुये कहा, ''केन्द्र सरकार से मांग है कि वह इस मामले में तत्काल सकारात्मक कदम उठाये। अर्थात पूर्व की कांग्रेसी सरकार की तरह इसे लटकाया ना।
कल मा. कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण को लेकर जो कुछ कहा है। उससे बी.एस.पी. कतई भी सहमत नहीं है। अतः केन्द्र सरकार से मांग है कि वह इस मामले में तत्काल सकारात्मक कदम उठाये। अर्थात् पूर्व की कांग्रेसी सरकार की तरह इसे लटकाये ना।
— Mayawati (@Mayawati) February 10, 2020
दरअसल 9 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रमोशन में आरक्षण न तो मौलिक अधिकार है, न ही राज्य सरकारें इसे लागू करने के लिए बाध्य है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने अपने एक निर्णय में इस बात का जिक्र किया है।
खंडपीठ ने कहा है कि प्रमोशन में आरक्षण नागरिकों का मौलिक अधिकार नहीं है और इसके लिए राज्य सरकारों को बाध्य नहीं किया जा सकता। इतना ही नहीं, कोर्ट भी सरकार को इसके लिए बाध्य नहीं कर सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 16(4) तथा (4ए) में जो प्रावधान हैं, उसके तहत राज्य सरकार अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के अभ्यर्थियों को प्रमोशन में आरक्षण दे सकते हैं, लेकिन यह फैसला राज्य सरकारों का ही होगा। अगर कोई राज्य सरकार ऐसा करना चाहती है तो उसे सार्वजनिक सेवाओं में उस वर्ग के प्रतिनिधित्व की कमी के संबंध में डाटा इकट्ठा करना होगा, क्योंकि आरक्षण के खिलाफ मामला उठने पर ऐसे आंकड़े अदालत में रखने होंगे, ताकि इसकी सही मंशा का पता चल सके, लेकिन सरकारों को इसके लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।