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मैनपुरी में पहली बार दिखा ऐसा मुकाबला, डिंपल बनाम रघुराज; कौन किसके लिए चुनौती बन पाया?

mainpuri By Election 2022: मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव 2022 के लिए मतदान लगातार जारी है। मुलायम सिंह के निधन से खाली हुई इस सीट पर पहली बार ऐसा मुकाबला दिख रहा है। किसी को भी अपनी लड़ाई आसान नहीं लग रही।

Ajay Singh लाइव हिन्‍दुस्‍तान, मैनपुरीMon, 5 Dec 2022 04:53 PM
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Mainpuri By-Election 2022: मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव 2022 के लिए मतदान लगातार जारी है। सपा संस्‍थापक मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई इस सीट पर पहली बार ऐसा मुकाबला दिख रहा है। सपा की विरासत सम्‍भालने के लिए उतरीं डिंपल के मुकाबले में बीजेपी ने रघुराज सिंह शाक्‍य को उतारकर जो दांव चला उसका असर मतदान के दिन तक दोनों दलों के बीच मची खींचतान के रूप में दिख रहा है। यह भी संयोग है कि एक तरफ मैनपुरी में मतदान चल रहा है तो दूसरी तरफ लखनऊ में विधानसभा के शीतकालीन सत्र की शुरुआत के मौके पर नेताजी (मुलायम सिंह यादव) को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है। पक्ष-विपक्ष दोनों ने मैनपुरी से राजधानी तक इतना जोर लगा रखा है कि इस बार मैनपुरी में किसी को भी लड़ाई आसान नज़र नहीं आ रही है। अब सवाल यह है कि डिंपल बनाम रघुराज की इस जंग में कौन किसके लिए चुनौती बन पाया? जाहिर है, जवाब जानने के लिए 8 दिसम्‍बर 2022 को नतीजे आने तक इंतजार करना होगा लेकिन आइए फिलहाल यह समझते हैं कि मैनपुरी का मुकाबला इस बार इतना दिलचस्‍प क्‍यों और कैसे बन गया है। 

सोमवार को मैनपुरी लोकसभा के अलावा गुजरात विधानसभा के दूसरे चरण और पांच राज्यों की कुल छह विधानसभा सीटों पर मतदान हो रहा है लेकिन गुजरात चुनाव के बाद सबसे ज्‍यादा चर्चा मैनपुरी की हो रही है। सबकी निगाहें यहां से लड़ रही मुलायम सिंह यादव की बहू और सपा मुखिया अखिलेश सिंह यादव की पत्‍नी डिंपल यादव के चुनाव परिणाम पर टिकी है। बीजेपी ने यहां से रघुराज सिंह शाक्‍य को उम्‍मीदवार बनाया है जो अतीत में अखिलेश के चाचा शिवपाल सिंह यादव के करीबी रहे हैं और आज भी उन्‍हीं को अपना गुरु बताते हैं। क्‍या रघुराज, डिंपल के लिए एक ऐसी सीट पर जहां 33 साल से सपा का कब्‍जा रहा वाकई बड़ी चुनौती हैं? इस सवाल का जवाब इसी से समझा जा सकता है कि इस साल जून में हुए आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा चुनाव प्रचार से खुद को बिल्‍कुल अलग रखने वाले अखिलेश यादव न सिर्फ खुद यहां घर-घर प्रचार में जुटे रहे बल्कि पूरे यादव परिवार ने दिन-रात एक कर दिया। बहू डिंपल के नाम पर चाचा शिवपाल ने भी जी-जान से साथ दिया। इस दौरान उनकी सुरक्षा में कटौती हो गई, लखनऊ का आलीशान सरकारी बंगला छिनने की बातें होने लगीं और रिवर फ्रंट घोटाले की जांच शुरू हो गई लेकिन शिवपाल परिवार की विरासत बचाने के लिए मोर्चे पर डटे रहे। आखिर रघुराज, सैफई परिवार के लिए इतनी बड़ी चुनौती कैसे बन गए?  

समाजवादी पार्टी के टिकट पर इटावा से 1999 और 2004 में सांसद चुने जा चुके रघुराज सिंह शाक्‍य के बारे में बताया जाता है कि वह 2017 में शिवपाल सिंह यादव के साथ प्रगतिशील समाज पार्टी में आ गए थे। 2022 के विधानसभा चुनाव में वह प्रसपा-सपा गठबंधन से चुनाव लड़ने की तैयारी में थे। शायद उन्‍हें टिकट का भरोसा दिया गया था लेकिन आखिरी वक्त में सपा ने वहां से सर्वेश शाक्य को मैदान में उतार दिया। बताया जा रहा है कि इससे नाराज होकर रघुराज ने आठ फरवरी 2022 को प्रसपा छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए। मैनपुरी की राजनीति को समझने वाले बताते हैं कि राजनीति में सपा से शुरुआत और यादव परिवार से पुराने रिश्‍तों के चलते पार्टी के आधार वोट बैंक में सेंध लगाने की उनकी क्षमता से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि इसका आकलन 8 दिसम्‍बर 2022 को आने वाले नतीजों से ही हो सकेगा लेकिन शाक्‍य वोटों की अच्‍छी खासी संख्‍या (यादव मतदाताओं के बाद शाक्‍य वोटरों की संख्‍या सबसे ज्‍यादा बताई जाती है) और सपा के वोटों में सेंध लगाने में कामयाबी के भरोसे फिलहाल वह खुद और बीजेपी उनकी जीत को लेकर पूरी तरह आश्‍वस्‍त दिखती है। 

चुनाव की शुरुआत से कुछ समय तक ये भी माना जा रहा था कि पर्दे के पीछे से शिवपाल, रघुराज सिंह शाक्य की मदद कर सकते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बहू डिंपल के लिए शिवपाल ने पूरी ताकत झोंक दी। उधर, डिंपल यादव के पास मुलायम सिंह यादव की विरासत के साथ-साथ उनके निधन से उपजी सहानुभति का लाभ मिलने का भरोसा है। मैनपुरी में जातीय वोटों के समीकरण की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा मतदाता यादव समाज के बताए जाते हैं। इसके बाद इस सीट पर शाक्य, ठाकुर और जाटव मतदाता भी अच्छी संख्या में हैं। इनमे अलावा ठाकुर, जाटव, ब्राह्मण, वैश्‍य, कुर्मी, लोधी और मुस्लिम के भी अच्‍छे-खासे वोट हैं। 

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