आईआईटी कानपुर ने दिया था कम्प्यूटर पर हिन्दी टाइपिंग का तोहफा
गूगल से पहले कम्प्यूटर पर हिन्दी लिखने का तोहफा पूरी दुनिया को आईआईटी कानपुर ने दिया था। संस्थान के प्रो. आरएमके सिन्हा ने लंबी रिसर्च के बाद करीब 32 साल पहले ही कम्प्यूटर पर हिन्दी लिखने की तरकीब...
गूगल से पहले कम्प्यूटर पर हिन्दी लिखने का तोहफा पूरी दुनिया को आईआईटी कानपुर ने दिया था। संस्थान के प्रो. आरएमके सिन्हा ने लंबी रिसर्च के बाद करीब 32 साल पहले ही कम्प्यूटर पर हिन्दी लिखने की तरकीब खोज निकाली थी। हालांकि इसे गूगल ने और डेवलप कर आसान कर दिया है। प्रो. आरएमके सिन्हा का अब निधन हो चुका है। उनके साथ रहे प्रो. अजय कुमार जैन अब भी संस्थान में कम्प्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग में शिक्षक हैं।
आईआईटी कानपुर में कम्प्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग में प्रो. सिन्हा के सहयोगी रहे प्रो. अजय कुमार जैन ने बताया कि करीब 32 साल पहले कम्प्यूटर पर सिर्फ अंग्रेजी लिखी जा सकती थी। तब प्रो. सिन्हा ने कम्प्यूटर पर हिन्दी या अन्य भारतीय भाषा के प्रयोग को लेकर रिसर्च शुरू की थी। लंबे प्रयास के बाद प्रो. सिन्हा ने कम्प्यूटर पर हिन्दी लिखने की प्रक्रिया खोज निकाली।
'जिष्ठ प्रणाली' दिया था नाम
प्रो सिन्हा ने कम्प्यूटर पर हिन्दी लिखने की अपनी ईजाद को 'जिष्ठ प्रणाली' नाम दिया था। इस प्रणाली के तहत अंग्रेजी अक्षरों की सहायता से ही कम्प्यूटर पर हिन्दी लिखी जा सकती थी। इसके लिए उन्होंने कम्प्यूटर पर एक विशेष प्रकार का सॉफ्टवेयर भी डेवलप किया था। हालांकि देश में कम्प्यूटर का अधिक चलन न होने के कारण हिन्दी लिखने की 'जिष्ठ प्रणाली' अधिक प्रचलन में नहीं आ सकी। इससे इसका प्रयोग सिर्फ एजुकेशनल संस्थानों में ही होता रहा। इसी प्रणाली के तहत कुछ साल बाद आईआईटी कानपुर ने अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद की प्रक्रिया खोज निकाली।
अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद भी दिया है आईआईटी ने
अंग्रेजी नहीं आती है तो कोई बात नहीं। गूगल बाबा हैं न। यह विचार सभी के मन में आता है। गूगल पर अंग्रेजी से हिन्दी ट्रांसलेशन डालते ही कठिन से कठिन शब्दों का अर्थ भी आसान हो जाता है। यह खोज है गूगल की। शायद आप भी यही सोच रहे होंगे। मगर अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद का तोहफा गूगल से पहले ही आईआईटी कानपुर ने दे दिया था।
25 साल पहले खोजी थी तरकीब
करीब 25 साल पहले आईआईटी कानपुर के प्रो. आरएमके सिन्हा और प्रो. अजय कुमार जैन की अगुवाई में पीएचडी छात्रों की एक संयुक्त टीम ने लंबी रिसर्च के बाद इसमें सफलता पाई थी। टीडीआईएल (टेक्निकल डेवलपमेंट ऑफ इंडियन लैंग्वेज) प्रोजेक्ट के तहत इसकी शुरुआत हुई थी। आईआईटी कानपुर के दो विशेषज्ञों ने अंग्रेजी से हिन्दी और हिन्दी से अंग्रेजी अनुवाद की शुरुआत की। इसमें सफलता के बाद उन्होंने यह प्रोजेक्ट सरकार को सौंपने के साथ अन्य आईआईटी को ट्रांसफर कर दिया। इसके बाद इसका और विकास कर आईआईटी ने बहुत जल्द एक दर्जन से अधिक भाषाओं का दूसरी भाषा में अनुवाद संभव कर दिखाया।