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Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़Fire does not burn here it gives relief from pain unique treatment is being done in Ayurveda department of BHU

यहां आग जलाती नहीं, दर्द से देती है राहत, बीएचयू के आयुर्वेद विभाग में हो रहा अनोखा इलाज

बीएचयू के आयुर्वेद संकाय में अग्निकर्म से इलाज के लिए मरीजों की भीड़ रहती है। गर्दन, कमर, घुटने जोड़ों के दर्द, स्लिप डिस्क के उपचार का दावा किया जाता है। हर महीने सौ से अधिक मरीज आ रहे हैं।

Yogesh Yadav मोदस्सिर खान, वाराणसीFri, 21 July 2023 06:09 PM
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गर्दन, कमर, घुटने जोड़ों के दर्द , स्लिप डिस्क का इलाज अब आग से भी संभव है। बीएचयू के आयुर्वेद संकाय में अग्निकर्म पर लोगों को भरोसा बढ़ा है। पहले जहां हर हर महीने आठ से दस लोग आते हैं अभी इनकी संख्या सौ से अधिक हो गई है। लोगों को एक महीने में दर्द से राहत मिल रही है। इस कारण यहां पर मरीजों की भीड़ बढ़ रही है। बीएचयू में अग्निकर्म के लिए सिर्फ बनारस ही नहीं बल्कि बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से लोग इलाज के लिए आ रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इस विधि के प्रयोग से किसी तरह का कोई नुकसान शरीर में नहीं पहुंचता। जोड़ों के दर्द में अग्निकर्म बहुत उपयोगी है।

अग्निकर्म चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. पंकज भारती ने बताया कि अग्निकर्म से गर्दन, कमर, घुटने जोड़ों के दर्द, स्लिप डिस्क, सिर दर्द आदि का उपचार किया जाता है। विभिन्न प्रकार के दर्द में यह अग्निकर्म चिकित्सा अत्यंत प्रभावी सिद्ध होती है और तत्काल ही लाभ मिलता है।

उन्होंने कहा कि जब लोग दर्द से परेशान होकर सभी जगह इलाज के बाद थक जाते हैं तो अग्निकर्म के लिए आते हैं।  इस विधि में उपयोग में लिए जाने वाली पंच लोह शलाका (सोना चांदी तांबा और लोहा द्वारा निर्मित) से दर्द वाली जगह पर सिकाई की जाती है। अगर अधिक दर्द हो तो प्रतिदिन अथवा कम दर्द होने पर सप्ताह में एक या दो दिन इस विधि को अपनाया जाता है।

उन्होंने कहा कि बीएचयू में अब पांच हजार से अधिक मरीजों का इस विधि से उपचार किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि सिर्फ बनारस ही नहीं बल्कि दूर दूर से लोग इस पद्धति से इलाज के लिए आते हैं।

जलन का नहीं होता है एहसास
डॉ. पंकज भारती ने कहा कि  मिश्रित धातु से बनी शलाका द्वारा शरीर के दर्द वाले हिस्से पर विशेष ऊर्जा देकर राहत दिलाने की सदियों पुरानी तकनीक है, जिसे अग्निकर्म कहा जाता है। यह शरीर की विभिन्न मांसपेशियों और उनके विकारों को दूर करने के लिए उपयोगी है। इसके उपचार करने पर मरीज को किसी भी तरह का कोई कष्ट महसूस नहीं होता।

लोह, ताम्र, रजत, वंग, कांस्य या मिश्रित धातु से बनी अग्नि शलाका होती है। इसे गर्म करके शरीर के दर्द वाले हिस्से पर विशेष ऊर्जा (गर्मी) देकर राहत पहुंचाई जाती है। विशेषज्ञों की मानें तो मरीज आंखें बंद करके बैठा हो, तो उसे पता ही नहीं चलता कि अग्निकर्म से उसका उपचार भी हो चुका है।

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