क्या धनंजय सिंह ने घुटने टेक दिए? जौनपुर में श्रीकलां के मैदान से हटते ही कैसी-कैसी चर्चा
जौनपुर में धनंजय की तरफ से ही श्रीकला को चुनावी मैदान से हटाने के पीछे कई तरह की चर्चाएं हैं। सबसे ज्यादा चर्चा उस बात को लेकर है जिसकी आशंका खुद धनंजय ने जेल जाते समय व्यक्त की थी।
लोकसभा चुनाव के छठे चरण के लिए हो रहे नामांकन के अंतिम दिन सोमवार को जौनपुर में सुबह-सुबह कुछ ऐसा हो गया जिसे सुनकर हर कोई चौंक गया। बाहुबली धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला की जगह श्याम सिंह यादव को बसपा का टिकट दे दिया गया। इससे चौंकाने वाली खबर यह थी कि खुद धनंजय ने पत्नी के चुनाव नहीं लड़ने की बात बसपा आलाकमान तक पहुंचाई थी। इसी के बाद आनन-फानन में प्रत्याशी बदला गया। अब धनंजय के समर्थक यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर बाहुबली ने इस तरह का कदम क्यों उठाया। धनंजय की पत्नी श्रीकला जौनपुर की जिला पंचायत अध्यक्ष भी हैं। समर्थकों का मानना है कि धनंजय का जौनपुर में अपना एक खास वोट बैंक है। बसपा का वोट मिलने के बाद श्रीकला की स्थिति काफी मजबूत थी।
अब धनंजय की तरफ से ही श्रीकला को चुनावी मैदान से हटाने के पीछे कई तरह की चर्चाएं हैं। सबसे ज्यादा चर्चा उस बात को लेकर है जिसकी आशंका खुद धनंजय ने जेल जाते समय व्यक्त की थी। धनंजय ने इसे अपने खिलाफ षड्यंत्र बताया था। धनंजय भी इस बार चुनाव लड़ना चाहते थे। इसी बीच उन्हें अपहरण और रंगदारी के मामले में सात साल की सजा सुनाई और जेल भेज दिया गया था।
हाईकोर्ट से कोई राहत नहीं मिलने पर धनंजय की उम्मीदों को झटका लगा और श्रीकला बसपा से टिकट लेकर मैदान में आ गई थीं। धनंजय को भी जमानत मिल गई और वह पत्नी के लिए जुट गए थे। बरेली जेल से निकलते समय भी धनंजय ने कहा था कि अब पत्नी के चुनाव में लग जाना है।
जौनपुर पहुंचते ही धनंजय पत्नी के लिए चुनाव प्रचार में जुट भी गए थे। रविवार की शाम तक चुनाव को लेकर रणनीतियां बनती रही थीं। देर रात तक समर्थकों और मीडिया को भी कुछ नहीं पता था। सोमवार की सुबह अचानक जब खबर आई कि धनंजय ने पत्नी के चुनाव नहीं लड़ने की बात कही है तो समर्थक हैरान रह गए। राजनीतिक विश्लेषक इसे कई तरह से देख रहे हैं। सबसे ज्यादा चर्चा इस बात को लेकर है कि धनंजय ने हवा के खिलाफ लड़ने से खुद को रोक लिया है। नए घटनाक्रम को उनके घुटने टेक देने से जोड़ा जा रहा है।
कहा जा रहा है कि उनका सबसे बड़ा दुश्मन अभय सिंह भी अब सपा के बजाए भाजपा के पाले में आ चुका है। ऐसे में धनंजय सिंह किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहते हैं। अगर उन्हें बसपा से किसी तरह की परेशानी होती तो पत्नी को निर्दल भी मैदान में उतार सकते थे। लेकिन ऐसा भी नहीं किया है। उनकी पत्नी इस समय जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी एक अविश्वास प्रस्ताव आने तक बची रहती है। सरकारें बदलने पर जिला पंचायत अध्यक्षों की कुर्सियां बदलते अक्सर देखा भी गया है। ऐसे में धनंजय ने वेट एंड वाच वाली रणनीति अपनाई है।