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अचानक हुई थी अतीक-अशरफ की हत्या, पुलिस का हत्याकांड से कोई संबंध नहीं, आयोग ने दी क्लीन चिट

माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ की प्रयागराज में दिनदहाड़े पुलिस अभिरक्षा में हुई हत्या और अतीक के बेटे असद समेत तीन अभियुक्तों की पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत के मामले में गठित...

Dinesh Rathour विशेष संवाददाता, लखनऊThu, 1 Aug 2024 09:05 PM
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माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ की प्रयागराज में दिनदहाड़े पुलिस अभिरक्षा में हुई हत्या और अतीक के बेटे असद समेत तीन अभियुक्तों की पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत के मामले में गठित आयोगों ने पुलिस को दोनों ही प्रकरण में क्लीन चिट दे दी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दिलीप बाबासाहब भोंसले की अध्यक्षता में गठित पांच सदस्यीय न्यायिक आयोग ने अतीक-अशरफ की हत्या में माना है कि इसमें पुलिस तंत्र या राज्य तंत्र का कोई संबंध नहीं है। साक्ष्यों से आयोग को यह प्रतीत हुआ कि यह घटना अचानक हुई थी। वहीं उमेश पाल हत्या कांड के अभियुक्तों असद, विजय चौधरी और गुलाम की पुलिस मुठभेड़ स्वाभाविक थी। पुलिस पार्टी ने आत्मरक्षा के अधिकार के तहत ही अभियुक्तों पर गोली चलाई। 

अतीक-अशरफ हत्याकांड

प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय (कॉल्विन हॉस्पिटल) में 15 अप्रैल 2023 को हुई अतीक व अशरफ की हत्या की घटना की जांच के लिए गठित आयोग में अध्यक्ष न्यायमूर्ति दिलीप बाबासाहब भोंसले के अलावा झारखंड हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीरेन्दर सिंह उपाध्यक्ष तथा इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरविंद कुमार त्रिपाठी द्वितीय, सेवानिवृत्त डीजी सुबेश कुमार सिंह व सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश बृजेश कुमार सोनी सदस्य रहे। आयोग ने 87 गवाहों के साक्ष्य दर्ज किए और सैकड़ों दस्तावेजों को रिकार्ड पर लिया। आयोग को निष्कर्ष में यह प्रतीत हुआ कि हत्या की घटना अचानक हुई थी और घटना के समय उपस्थित पुलिसकर्मियों की प्रतिक्रिया सामान्य थी।

उनके पास किसी भी पृथक तरीके से प्रतिक्रिया करने का समय नहीं था, जिससे दोनों व्यक्तियों को बचाया जा सके या उनके आत्मसमर्पण करने से पहले उन हमलावरों को या तो पकड़ा जा सके या मार डाला जा सके। पूरी घटना कुछ ही सेकेंडों में घट गई थी। साक्ष्यों और रिकार्ड पर रखी गई संपूर्ण सामग्री का विश्लेषण करने के बाद आयोग यह निष्कर्ष निकालने में असमर्थ है कि यह एक पूर्व नियोजित साजिश थी और अतीक व अशरफ की हत्या में राज्य या पुलिस तंत्र की ओर से कोई मिलीभगत थी और घटना को टालना भी संभव नहीं था। 

हत्याकांड से पुलिस को बहुत कुछ खोना पड़ा

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अतीक व अशरफ की हत्या से पुलिस को बहुत कुछ खोना पड़ा। दोनों की मौत होने से 15 अप्रैल 2023 की शाम को जांच के दौरान बरामद हथियारों व गोला बारूद से जुड़े कई सवाल अनुत्तरित रह गए। इन हथियारों के प्रकार, उनके पाकिस्तान में निर्मित होने और आपूर्तिकर्ताओं के पंजाब व कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठनों से संबंधों को लेकर सवाल उठे होंगे। इन सवालों पर संभवत: एनआईए या किसी अन्य जांच एजेंसी द्वारा भी गहन पूछताछ की गई होगी। हत्याकांड ने जांच एजेंसियों को किसी तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने की किसी उम्मीद से भी वंचित कर दिया। 

उमेश पाल हत्याकांड 

प्रयागराज में उमेश पाल और उनके दो सरकारी अंगरक्षकों की हत्या एवं उसके अभियुक्तों विजय कुमार चौधरी उर्फ उस्मान, मो. असद व मो. गुलाम के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने की संपूर्ण घटना की जांच करने वाले न्यायिक आयोग ने पुलिस को क्लीन चिट दे दी है। मो. असद माफिया डॉन अतीक अहमद का बेटा था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से गुरुवार को विधानसभा व विधान परिषद में आयोग की रिपोर्ट पेश की गई। 

इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति राजीव लोचन मेहरोत्रा की अध्यक्षता में गठित इस दो सदस्यीय आयोग में सेवानिवृत्त डीजीपी विजय कुमार गुप्ता सदस्य रहे। यह जांच रिपोर्ट 11 जनवरी 2024 को राज्य सरकार को प्राप्त हुई थी, जिसे 18 जनवरी 2024 को कैबिनेट की बैठक में स्वीकार किया गया। आयोग ने जांच रिपोर्ट में कहा है कि उमेश पाल हत्याकांड के तीनों अभियुक्तों संबंधित मुठभेड़ें वास्तविक हैं और संदेह से परे हैं। मुठभेड़ में शामिल किसी भी पुलिस पार्टी ने आत्मरक्षा के अधिकार का अतिक्रमण नहीं किया है। जांच के दौरान पुलिस कर्मियों की कोई दुर्भावना, व्यक्तिगत स्वार्थ, षड्यंत्र अथवा दोष होना नहीं पाया गया। 

गड्ढे में घुस कर पुलिस पर कर रहे थे फायरिंग 

विधायक राजू पाल हत्याकांड के गवाह और अधिवक्ता उमेश पाल और उनके दोनों पुलिस अंगरक्षकों की हत्या 24 फरवरी 2023 को प्रयागराज के धूमनगंज थाना क्षेत्र में हुई थी। इस हत्याकांड में वांछित अभियुक्त विजय कुमार चौधरी उर्फ उस्मान छह मार्च 2023 को प्रयागराज के कौंधियारा थाना क्षेत्र में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था। इसी तरह दो अन्य अभियुक्त मो. असद व मो. गुलाम को 13 अप्रैल 2023 को झांसी के बड़ागांव थाना क्षेत्र में एसटीएफ के साथ मुठभेड़ में मारे गए थे। आयोग ने जांच में पाया कि असद व गुलाम गड्ढे में पोजीशन लेकर पुलिस पर तेजी से फायर कर रहे थे। ऐसे में पुलिस के पास आत्मरक्षार्थ फायर करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। गवाहों के अनुसार पुलिस पार्टी का पूरा प्रयास अभियुक्तों को जीवित पकड़ने का था। दोनों अभियुक्तों की कमर का भाग गड्ढे के अंदर था, अत: पुलिस की गोलियों की चोट उनको शरीर के ऊपरी भाग पर ही आना संभावित था। फायर बंद होने के बाद पुलिस जब नजदीक पहुंची तो उन्होंने गड्ढे में दो घायल व्यक्तियों को पड़े देखा, जिनमें जीवन के लक्षण दिखाई पड़ रहे थे। अत: तत्काल एंबुलेंस बुलाकर दोनों को अलग-अलग एंबुलेंस से झांसी मेडिकल कॉलेज भेजा गया, जहां उनकी मृत्यु हो गई।

मोटर साइकिल में थी वैकल्पिक व्यवस्था

आयोग ने इस तथ्य की भी जांच की कि मुठभेड़ की घटना में बरामद मोटरसाइकिल में चाभी नहीं थी। अपने झांसी दौरे में आयोग ने घटनास्थल के साथ-साथ थाने पर खड़ी मोटरसाइकिल का भी बारीकी से निरीक्षण किया। थाने पर मौजूद पुलिस कर्मियों से यह पूछा गया कि यह मोटरसाइकिल बिना चाभी के स्टार्ट कैसे हुई? इस पर पता चला कि इसमें स्टार्ट करने की वैकल्पिक व्यवस्था बनाई हुई है। पुलिस कर्मियों ने हैंडिल के पास दो तारों को जोड़कर तत्काल उसे स्टार्ट करके दिखाया। इस पर आयोग संतुष्ट हुआ। मृतकों का कोई भी परिवारीजन आयोग के समक्ष साक्ष्य के लिए उपस्थित नहीं हुआ। चिकित्सकों ने अपने साक्ष्य में इस बात की पुष्टि की कि सभी मृतकों को आई चोटें सामने से आई थीं और जिन पुलिसकर्मियों को चोटें आई हैं, वे भी आग्नेयास्त्र की ही हैं।  

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