कब तक अंग्रेज और वामपंथी इतिहासकारों को कोसते रहेंगे : अमित शाह
गृहमंत्री अमित शाह ने गुरुवार को बीएचयू में कहा कि भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन भारतीय दृष्टिकोण से होना जरूरी है। यह जिम्मेदारी हमारी है। जो शासन अपने इतिहास को संजोकर नहीं रखता है, उसे लोग भूल जाते...
गृहमंत्री अमित शाह ने गुरुवार को बीएचयू में कहा कि भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन भारतीय दृष्टिकोण से होना जरूरी है। यह जिम्मेदारी हमारी है। जो शासन अपने इतिहास को संजोकर नहीं रखता है, उसे लोग भूल जाते हैं। कब तक हम लोग वामपंथी, अंग्रेज़ी और मुगल इतिहासकारों को कोसेंगे। आज जो इतिहास लिखा जाएगा, उसमें सत्य का अंश होगा। वह लंबे समय तक चिरंजीवी रहेगा। कभी नष्ट नहीं होगा। इतिहास के पुनर्लेखन से किसी ने रोका नहीं है।
अमित शाह बीएचयू के स्वतंत्रता भवन में गुप्तवंशक वीर स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य का एेतिहासिक पुनः स्मरण एवं भारत राष्ट्र का राजनीतिक भविष्य विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। शाह ने कहा कि सम्राट स्कंदगुप्त को इतिहास में वह स्थान नहीं मिला, जो मिलना चाहिए। इतिहास के बिखरे पन्ने को समेटने की जरुरत है।
बीएचयू के भारत अध्ययन केंद्र के तत्वावधान में हो रही दो दिवसीय संगोष्ठी में देश विदेश के कई विद्वान भाग ले रहे हैं। संबोधन से पहले गृहमंत्री ने स्कंदगुप्त पर लिखी एक पुस्तक और स्मारिका का भी विमोचन किया।
शाह ने स्कंदगुप्त के शासनकाल की चर्चा करते हुए कहा कि हकीकत में उस समय मगध और वैशाली दो स्तंभ माने जाते थे। दोनों को एक भी स्कन्दगुप्त ने किया। स्कंदगुप्त के प्रराक्रम की जितनी प्रशंसा होनी चाहिए उतनी नहीं हुई। हुणों को रोकने का साहस स्कन्दगुप्त में ही था।
हुणों के आक्रमण को चीन ने तो दीवार बनाकर रोक लिया लेकिन यूरोप के देश नहीं बच सके।
हुणों को देश से मुक्त कराने का पराक्रम स्कंदगुप्त ने दिखाया। हुणों को पहली बार विश्व में कहीं पराजय मिली तो वह भारत में स्कंदगुप्त के कारण मिली। यही कारण है कि स्कंदगुप्त को महान सम्राट माना गया। तब चीन ने भी स्कंदगुप्त के लिए प्रशस्तिपत्र पाटलीपुत्र पहुंचाया।
शाह ने कहा कि कब तक हम वामपंथी और अंग्रेज इतिहासकारों को कोसते रहेंगे? आपको इतिहास लिखने से कौन रोक रहा है। हमारे इतिहास का संशोधन करके उसका पुनर्लेखन करने का काम करें। भारतीय इतिहास का पुर्लेखन करने की बहुत जरूरत है लेकिन इसके लिए किसी को दोष देने की जरूरत नहीं है। आज बच्चों को मालूम नहीं है कि स्कन्द गुप्त इतना बड़ा सम्राट था। हमारे पास गुप्त काल, मौर्य वंश, शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप और मुगलों की लंबी गाथा का संदर्भ ग्रंथ नहीं है।
पूर्वांचल के साथ स्कंदगुप्त का नाता रहा है। आज उसी क्षेत्र में यह संगोष्ठी हो रही है। स्कंदगुप्त के इतिहास को संकलन करने का जो प्रयास आज हो रहा है। वह बहुत जरूरी है।
बीएचयू ने हिन्दू संस्कृति को अक्षुण रखने का काम किया
गृहमंत्री ने अपने संबोधन की शुरुआत पंडित मदन मोहन मालवीय जी को नमन करते हुए की। उन्होंने कहा कि बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के इस सभागार में संबोधन करना मेरे लिए गौरव की बात है। जब मालवीय जी ने इस विश्वविद्यालय के निर्माण की कल्पना की होगी, किसी को नहीं मालूम कि उनके मन में क्या विचार रहे होंगे। परंतु इतने सालों के बाद यह जरूर दिखाई देता है कि इसने हजारों साल की हिन्दूु संस्कृति को अक्षुण रखने का काम किया है। यहां से जो शिक्षा की संस्कृति, शिक्षा का प्रचार, अनेक वह विषय जो लुप्त होने के कगार पर खड़े थे, उन विषयों का न सिर्फ प्रचार बल्कि उनकी पुनः प्राण प्रतिष्ठा इस विश्वविद्यालय ने एेसे समय की जब इस देश, इस संस्कृति को इसकी जरूरत थी। सैकड़ों सालों की गुलामी के बाद अपराधबोध से युक्त अपने गौरव को दोबारा हासिल करने के लिए कोई व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता केवल एक विश्वविद्यालय ही कर सकता है। इसी बात को माप लेने की दूरदृष्टता महामना में थी और उन्होंने इसकी स्थापना की।
शाह ने आज के आयोजन के लिए भारत अध्ययन केंद्र को भी बधाई दी। कहा कि स्कंदगुप्त के बिखरे हुए पन्नों को संकलित करने का जो काम इन्होंने किया है, सम्राट के जीवन के अनेक पहलुअों पर विचार होगा, शोध पत्र पेश होंगे। यह दो दिन की संगोष्ठी उस स्कंदगुप्त के लिए होगी जिसने भारतीय संस्कृति को हमेशा बचाने का प्रयास किया।
स्कन्द गुप्त की परिकल्पना मोदी के नेतृत्व में आज साकार हो रही : योगी
गृहंमंत्री से पहले सीएम योगी ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि कोई भी समाज जब अतीत के गौरवशाली इतिहास को विस्मृत करता है तो उसके सामने त्रिशंकु जैसी हालत होती है। महाभारत युद्ध के बाद भारत ने जो वैभव खोया था। उसे गुप्त वंश के समय दोबारा हासिल की गई। हमारे दो हजार साल के इतिहास को तोड़ मरोड़ को पेश करने की कोशिश हुई है।
कश्मीर में 370 का हटना आजादी के बाद सबसे साहसिक निर्णय कहा जाएगा। जब इसे संविधान में लाया जा रहा था तब भी आंबेडकर ने इसका विरोध किया था। अब कश्मीर न सिर्फ विकास के रास्ते पर है बल्कि एक भारत श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना की जिस परिकल्पना को चंद्रगुप्त मौर्य और स्कंदगुप्त ने देखा था वह आज मोदी जी के नेतृत्व में पूरी हो रही है।