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अपनी बात से मुकर नहीं सकती सरकार, जानिए हाईकोर्ट ने इस टिप्‍पणी के साथ क्‍यों लगाया 10 हजार का जुर्माना

ग्राम विकास अधिकारी पद पर ट्रिपल सी प्रमाण पत्र की अर्हता को लेकर नियुक्ति न देने पर विवाद में हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सरकार अपनी बात सेे मुकर नहीं सकती। 10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया।

Ajay Singh विधि संवाददाता, प्रयागराजSat, 27 Aug 2022 09:19 AM
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि सरकार अपनी बात से मुकर नहीं सकती। सरकार ने कोर्ट में कहा कि ग्राम विकास अधिकारी पद के लिए ट्रिपल सी प्रमाणपत्र अनिवार्य अर्हता नहीं है। फिर चयनित अभ्यर्थी को इस आधार पर नियुक्ति देने से इनकार नहीं कर सकती कि याची ट्रिपल सी योग्यता नहीं रखते।

इसी के साथ कोर्ट ने आयुक्त ग्राम विकास विभाग द्वारा याची की नियुक्ति की मांग अस्वीकार करने को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया है और दो सप्ताह में याची की नियुक्ति करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने याची के पक्ष में न्यायालय का फैसला होने के बाद भी नियुक्ति न करने पर दोबारा हाईकोर्ट आने को विवश करने के लिए 10 हजार रुपये हर्जाना भी लगाया है।यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने खुशबू कुमारी गुप्ता की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। 

याची उत्‍तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की ग्राम विकास अधिकारी भर्ती 2016 में लिखित परीक्षा व शारीरिक दक्षता टेस्ट में सफल घोषित हुई। लेकिन यह कहते हुए उसे साक्षात्कार में नहीं बुलाया गया कि वह ट्रिपल सी की अर्हता नहीं रखती। इसके विरुद्ध याचिका खारिज हो गई तो विशेष अपील दाखिल की गई। सरकार की ओर से कहा गया कि ग्राम विकास अधिकारी सेवा नियमावली के तहत पद की योग्यता इंटरमीडिएट या समकक्ष डिग्री है। ट्रिपल सी अनिवार्य अर्हता नहीं है। खंडपीठ ने याची का साक्षात्कार लेकर परिणाम से अवगत कराने का आदेश दिया।

याची को साक्षात्कार के बाद सफल घोषित कर आयोग ने आयुक्त को नियुक्ति करने की संस्तुति की। अवमानना याचिका में कहा कि खंडपीठ ने नियुक्ति का निर्देश नहीं दिया है। साथ ही खंडपीठ के आदेश की वापसी की अर्जी भी दाखिल की, जो खारिज हो गई। याची ने प्रत्यावेदन दिया कि उसे नियुक्त किया जाए, जिसे ट्रिपल सी न होने के कारण खारिज कर दिया। इस पर दोबारा याचिका की गई।

याची का तर्क था कि सरकार के यह मानने के बाद कि ट्रिपल सी अनिवार्य अर्हता नहीं है, कोर्ट ने याची की नियुक्ति का आदेश दिया है। सरकार ने आदेश वापस लेने की अर्जी दी। वह भी दिग्भ्रमित मानकर खारिज हो गई। ऐसे में याची के पक्ष में हुआ आदेश अंतिम हो गया। उसे सरकार ने चुनौती नहीं दी है। कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि सरकार अपनी बात से मुकर नहीं सकती। साथ ही नियुक्ति का आदेश दिया है।

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