22 हजार सिपाहियों के प्रमोशन, सैलरी इन्क्रीमेंट और ट्रेनिंग पर फैसला लेने का निर्देश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सपा-बसपा के सत्ता परिवर्तन में चयन के बाद बर्खास्त और फिर बहाल हुए कांस्टेबलों की वेतन वृद्धि, प्रोन्नत वेतनमान, प्रशिक्षण अवधि सहित सेवा निरंतरता के साथ वरिष्ठता निर्धारण पर...
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सपा-बसपा के सत्ता परिवर्तन में चयन के बाद बर्खास्त और फिर बहाल हुए कांस्टेबलों की वेतन वृद्धि, प्रोन्नत वेतनमान, प्रशिक्षण अवधि सहित सेवा निरंतरता के साथ वरिष्ठता निर्धारण पर निर्णय लेने का निर्देश दिया है। मामला पुलिस व पीएसी में 2005 की 22 हजार कांस्टेबलों की भर्ती का है।
यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता ने विभिन्न जिलों में तैनात संजीव कुमार व कई अन्य पुलिसकर्मियों की याचिकाओं पर वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम को सुनकर डीजीपी पीएचक्यू को दिया है। सीनियर एडवोकेट विजय गौतम ने कोर्ट को बताया कि हापुड, कानपुर नगर, मेरठ, गौतमबुद्धनगर, प्रयागराज, वाराणसी, मथुरा, गोरखपुर, गाजियाबाद आदि जिलों में तैनात याची वर्ष 2005 में पुलिस व पीएसी की 22 हजार कांस्टेबलों की भर्ती में चयनित हुए थे। वर्ष 2007 में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होने पर 22 हजार कांस्टेबलों की भर्ती को अनियमित व विधि विरुद्ध बताते हुए चयनित सिपाहियों को बर्खास्त कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 26 मई 2009 को सभी चयनितों को नियुक्ति तिथि से बहाल किया गया। बर्खास्तगी अवधि को काम नहीं, वेतन नहीं के सिद्धांत पर अवकाश माना गया लेकिन सेवा निरंतरता प्रदान की गई है। श्री गौतम का कहना था कि इसके बावजूद याचियों को वरिष्ठता, वेतन वृद्धि, प्रोन्नत वेतनमान व सातवें आयोग की सिफारिशों का लाभ नहीं दिया जा रहा है, जो दीपक कुमार के केस में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की अवहेलना है। वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम का कहना था कि सरकार स्वयं अपने शासनादेश का पालन नहीं कर रही है। जबकि याचियों को प्रशिक्षण अवधि को सेवा निरंतरता में शामिल कर वेतनमान पाने का अधिकार है।
मामले के तथ्यों के अनुसार 2005 की पुलिस व पीएसी भर्ती में चयनित 22 हजार सिपाहियों को चयन में धांधली के आधार पर वर्ष 2007 में बर्खास्त कर दिया गया था। बर्खास्तगी आदेश को हाईकोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर चुनौती दी गई। एकल पीठ ने याचिकाएं मंजूर कर लीं और सेवा निरंतरता के साथ नियुक्ति तिथि से बहाल करने का निर्देश दिया। इसके विरुद्ध सरकार की विशेष अपील खारिज हो गई तो सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की। कोर्ट के अंतरिम आदेश पर डीजीपी ने सभी 22 हजार सिपाहियों को बहाल कर दिया।बर्खास्त अवधि का वेतन नहीं दिया गया। बाद में 2012 में सरकार बदलने पर एसएलपी भी वापस ले ली गई। याचिकाओं में कहा गया कि कोर्ट के स्पष्ट निर्देश के बावजूद सरकार सिपाहियों को मिलने वाले सेवा जनित लाभों से वंचित कर रही है।