औरंगजेब की कैद से भाग निकले थे शिवाजी, आगरा के उसी किले में स्मारक बनाने की तैयारी; जानें कहानी
- मराठा राजा शिवाजी की 395 वीं जयंती पर की गई इस घोषणा के बाद छत्रपति की इस कहानी को लेकर सियासत गर्म है। इसी बीच फिल्म 'छावा' ने भी पूरे देश में जबरदस्त हलचल मचा रखी है। आगरा किले में शिवाजी के स्मारक की घोषणा के बाद इसके समर्थकों और आलोचकों के अपने-अपने तर्क हैं।

Chhatrapati Shivaji Maharaj: महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार ने 2025 -26 के अपने बजट में आगरा में छत्रपति शिवाजी महाराज का भव्य स्मारक बनाने की घोषणा की है। इस ऐलान के बाद 1666 में आगरा में औरंगजेब की कैद से अपने पुत्र संग शिवाजी महाराज के साहसपूर्ण ढंग से भाग निकलने की कहानी एक बार फिर चर्चा में हैं। मराठा राजा शिवाजी की 395 वीं जयंती पर की गई इस घोषणा के बाद छत्रपति की इस कहानी को लेकर सियासत गर्म है। इसी बीच फिल्म 'छावा' ने भी पूरे देश में जबरदस्त हलचल मचा रखी है। छत्रपति संभाजी महाराज एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा के केंद्र में हैं। आगरा किले में स्मारक की घोषणा के बाद इसके समर्थकों और आलोचकों के अपने-अपने तर्क हैं। स्मारक के लिए प्रस्तावित स्थल, कोठी मीना बाज़ार, शिवाजी के जीवन के सबसे नाटकीय प्रसंगों में से एक से गहराई से जुड़ा हुआ है। स्मारक को लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने यहां तक कहा है कि लोग अभी ताजमहल देखने के लिए आगरा जाते हैं, लेकिन भविष्य में वे शिवाजी का स्मारक देखने आएंगे। आइए जानते हैं शिवाजी की वो साहसपूर्ण कहानी-
यह बात 1666 की है। पुरंदर की संधि के बाद मुगल बादशाह औरंगजेब के बुलावे पर छत्रपति शिवाजी अपने बेटे संभाजी के साथ आगरा पहुंचे थे। मुगल बादशाह ने धोखे से शिवाजी और उनके बेटे को कैद करा दिया। लेकिन शिवाजी ने हार नहीं मानी। छापामार युद्ध और अपनी सूझ-बूझ और वीरता से हमेशा दुश्मन के दांत खट्टे करने वाले शिवाजी ने इस बार वो कारनामा कर दिखाया जिसकी औरंगजेब ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।
औरंगजेब ने शिवाजी को कैद तो कर लिया लेकिन उनके लिए फलों की टोकरियां आती थीं। शिवाजी ने कैद से भाग निकलने की योजना बना। इसके तहत उन्होंने बीमार होने का नाटक लिया। बताते हैं कि मुगल शासन के पहरेदारों को शिवाजी की कराहने की आवाजें सुनाई देती थीं। वह हर शाम को ब्राह्मणों और साधुओं को मिठाई और फल भेजने लगे। जब यह रोज की बात हो गई तो पहरेदार तलाशी में थोड़े लापरवाह हो गए। उन्होंने इस ओर ध्यान देना बंद कर दिया।
बताते हैं कि योजना के तहत एक दिन शिवाजी के जैसे दिखने वाले उनके सौतेले भाई हीरोजी, उनके कपड़े और हार पहनकर बिस्तर पर लेट गए। उन्होंने कंबल ओढ़ लिया। बाहर सिर्फ उनका एक हाथ दिख रहा था, जिसमें शिवाजी के सोने के कड़े थे। पहरेदारों की आंखों में धूल झोंकते हुए शिवाजी और बेटे फलों की टोकरियों में बैठकर वहां से निकल गए। टोकरियों को शहर से बाहर ले जाया गया। वहां से शिवाजी और उनके बेटे टोकरियों से निकलकर एक गांव में पहुंचे जहां उनके करीब नीरजी रावजी पहले से इंतजार कर रहे थे।
वहीं शिवाजी के सौतेले भाई हीरोजी भी एक नौकर के साथ चुपके से वहां से निकल गए। जब काफी समय तक शिवाजी के कमरे से कोई आवाज नहीं आई तो पहरेदारों को शक हुआ। उन्होंने अंदर जाकर देखा तो वहां कोई नहीं था। कहते हैं जब औरंगजेब को यह सूचना मिली तो वह घबरा गया। उसने सिर पकड़ लिया। उसने शिवाजी की तलाश में सैनिक भेज लेकिन सब खाली हाथ वापस लौट आए। वहीं शिवाजी मथुरा, इलाहाबाद, वाराणसी और पुरी होते हुए गोंडवाना और गोलकुंडा से राजगढ़ पहुंच गए।
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