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साथी के निधन पर शोक के लिए काम से विरत नहीं रहेंगे वकील, हड़ताल पर हाईकोर्ट सख्त, जिला जजों को दिए निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वकीलों की हड़ताल पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि किसी वकील या उनके संघ के हड़ताल पर जाने, हड़ताल का आह्वान करने या कार्य से विरत रहने के किसी भी कृत्य को आपराधिक अवमानना ​​का कृत्य माना जाएगा।

Dinesh Rathour हिन्दुस्तान, प्रयागराज, विधि संवाददाताSat, 24 Aug 2024 10:27 PM
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वकीलों की हड़ताल पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि किसी वकील या उनके संघ के हड़ताल पर जाने, हड़ताल का आह्वान करने या कार्य से विरत रहने के किसी भी कृत्य को आपराधिक अवमानना ​​का कृत्य माना जाएगा। न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र एवं न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी की खंडपीठ ने प्रदेश के सभी जिला जजों को निर्देश दिया कि वकीलों की हड़ताल की किसी भी घटना की सूचना रजिस्ट्रार जनरल को दें, ताकि कानून के अनुसार उचित कार्यवाही की जा सके।

कोर्ट ने कहा कि एसोसिएशन के वकील/अधिकारी/अदालत के कर्मचारी या उनके रिश्तेदारों की मृत्यु के कारण शोक संवेदना के कारण भी कार्य से विरत नहीं रहने दिया जाएगा। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोई भी शोक सभा अपराह्न साढ़े तीन बजे के बाद ही बुलाई जाए। यह भी स्पष्ट किया कि इस निर्देश का किसी भी तरह का उल्लंघन न्यायालय की अवमानना ​​माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि जब तक न्यायालयों के सुचारू एवं प्रभावी संचालन से न्याय प्रशासन सुनिश्चित नहीं हो जाता, तब तक कानून का शासन सुनिश्चित नहीं किया जा सकता। यदि वकीलों के बार-बार हड़ताल के आह्वान के कारण अदालतों को काम करने की अनुमति नहीं दी जाती तो वह ढांचा, जिस पर पूरी व्यवस्था टिकी हुई है, ढह सकता है।

कोर्ट ने प्रयागराज में वकीलों की लगातार हड़ताल का संज्ञान तब लिया था, जब जिला जज की एक रिपोर्ट से पता चला था कि जुलाई 2023 और अप्रैल 2024 के बीच कुल 218 कार्य दिवसों में से 127 दिन न्यायिक कार्य प्रभावित हुआ था। रजिस्ट्रार जनरल की रिपोर्ट से पता चला कि पूरे प्रदेश में वकीलों की हड़ताल के कारण जिला न्यायालयों में न्यायिक कार्य गंभीर रूप से बाधित है। कोर्ट ने कहा कि लगभग सभी अदालतों में काम के वास्तविक दिनों में काफी कटौती कर दी गई है, जिससे उत्तर प्रदेश की पहले से ही बोझ से दबी अदालतों पर और अधिक दबाव बढ़ रहा है।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्र और यूपी बार कौंसिल का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता आरके ओझा ने कोर्ट को बताया कि वे वकीलों के हड़ताल पर जाने के खिलाफ हैं और इस संबंध में शीर्ष अदालत के फैसले का पूरा सम्मान करते हैं। यूपी बार कौंसिल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करने के लिए पहले ही एक प्रस्ताव पारित किया जा चुका है। इस साल भी एक प्रस्ताव पास किया गया जिसमें वकीलों से कहा गया कि वे किसी के भी शोक की स्थिति में कार्य से विरत न रहें।

इस पर कोर्ट ने कहा कि वकीलों की हड़ताल पर प्रतिबंध के कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी कदम उठाने का समय आ गया है। कोर्ट ने बार एसोसिएशन की इस दलील पर भी गौर किया कि वकीलों को कई बार वास्तविक कठिनाइयों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है और उनकी वैध शिकायतों पर भी विचार नहीं किया जाता इसलिए उनके पास हड़ताल के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है।

हाईकोर्ट ने सुझाव दिया गया कि उच्च न्यायालय और जिला न्यायालयों के लिए एक शिकायत निवारण समिति गठित की जाए ताकि वकीलों और वादकारियों की वास्तविक शिकायतों का समाधान किया जा सके और वकीलों को हड़ताल पर जाने के लिए मजबूर न किया जा सके।

कोर्ट को बताया गया कि उच्च न्यायालय और जिला न्यायालयों में ऐसी समिति पहले से ही मौजूद है। इसके बाद यह सुझाव दिया गया कि जिला मजिस्ट्रेट या उनके द्वारा नामित व्यक्ति को समिति में शामिल किया जाना चाहिए। इस पर हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल से कहा कि वे प्रदेश के सभी जिला जजों को आवश्यक निर्देश जारी करें कि जिला स्तर पर गठित शिकायत निवारण समिति के सदस्य के रूप में जिला मजिस्ट्रेट या उनके द्वारा नामित व्यक्ति को शामिल करें जो अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के पद से नीचे न हो। इससे शिकायत निवारण समिति वकीलों की शिकायतों से निपटने में अधिक प्रभावी हो जाएगी और अदालतों के सुचारू संचालन में मदद एवं न्याय वितरण में सुविधा होगी।

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