माध्यमिक शिक्षा में मुकदमों के बढ़ते बोझ से आजिज अफसर, बिना वजह मामले न लटकाने का आदेश
- माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. महेन्द्र देव ने सभी संयुक्त शिक्षा निदेशकों और जिला विद्यालय निरीक्षकों को सख्त लहजे में निर्देशित किया है कि केवल नीति-विषयक प्रकरण में निदेशालय या शासन से कार्यवाही की जरूरत होने पर ही विधि संगत प्रस्ताव स्पष्ट संस्तुति सहित उपलब्ध कराया जाए।
माध्यमिक शिक्षा विभाग के जिला स्तरीय अफसरों की छोटे-मोटे मामले में मार्गदर्शन मांगने की आदत से आला अधिकारी परेशान हैं। इसके चलते न सिर्फ विभाग में फाइलों का बोझ बढ़ता जा रहा है बल्कि मुकदमों की संख्या भी बढ़ रही है। वर्तमान में हाईकोर्ट में 18706 मुकदमे लड़ रहे इस विभाग के आला अफसर भी इससे आजिज आ गए हैं। माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. महेन्द्र देव ने सभी संयुक्त शिक्षा निदेशकों और जिला विद्यालय निरीक्षकों को सख्त लहजे में निर्देशित किया है कि केवल नीति-विषयक प्रकरण में निदेशालय अथवा शासन से कार्यवाही की आवश्यकता होने पर ही विधि संगत प्रस्ताव स्पष्ट संस्तुति सहित उपलब्ध कराया जाए। मामलों को अनावश्यक न लटकाया जाए।
खासतौर से प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों से संबंधित मामलों में अनावश्यक मार्गदर्शन और पत्राचार न करने के निर्देश दिए गए हैं। उच्च न्यायालय के आदेशों और अन्य महत्त्वपूर्ण प्रकरणों के निस्तारण के लिए सबसे पहले विभागीय नियमों-विनियमों तथा शासनादेश के आलोक में स्वयं अपने स्तर से करें और समय से निस्तारण करें। अनावश्यक मार्गदर्शन और पत्राचार से प्रकरण लम्बित किया जाना औचित्यपूर्ण नहीं है।
एडेड कॉलेजों से संबंधित ऐसे प्रकरण, जिनमें हाईकोर्ट ने प्रत्यावेदन का निस्तारण करने के लिए मंडलीय या जनपदीय अधिकारियों को आदेशित किया है, पर अत्यधिक विलम्ब से अनावश्यक मार्गदर्शन या दिशा-निर्देश उपलब्ध कराने के लिए निदेशालय को भेज दिया जाता हैं, जिसके कारण अवमानना की स्थिति उत्पन्न हो रही है। कई मामलों में न्यायालय में उच्चाधिकारियों को प्रतिवादी बनाया जा रहा है एवं शासन और विभाग के समक्ष विषम स्थितियां उत्पन्न होने के साथ ही याचिकाकर्ताओं को व्यवस्था के विपरीत अनावश्यक लाभ प्राप्त होने की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं।
इसके अलावा कुछ ऐसे मामले भी निदेशालय को अनावश्यक रूप से भेजे जा रहे हैं जिसके निस्तारण का मंडलीय या जनपदीय अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में है तथा उनके स्तर से समय से निस्तारण न होने से भी न्यायालय में अनावश्यक वाद योजित हो रहे हैं। निदेशक ने साफ किया है कि अनावश्यक रूप से प्रकरण निदेशालय अथवा शासन को भेजने पर किसी प्रकार की विषम या अवमानना की स्थिति पैदा होने पर संबंधित अधिकारी की पूरी जिम्मेदारी होगी।