Struggles of Street Vendors Economic Hardship and Municipal Challenges in Moradabad बोले मुरादाबाद : वेडिंग जोन तो बना, लेकिन इन्हें है ठौर की तलाश, Moradabad Hindi News - Hindustan
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बोले मुरादाबाद : वेडिंग जोन तो बना, लेकिन इन्हें है ठौर की तलाश

Moradabad News - मुरादाबाद में ठेले खींचने वाले लोग आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। नगर निगम और पुलिस की कार्रवाई के कारण उन्हें रोजाना परेशानी होती है। निर्धारित स्थान न होने के कारण चालान भरने के लिए मजबूर होना पड़ता...

Newswrap हिन्दुस्तान, मुरादाबादWed, 26 Feb 2025 08:46 PM
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बोले मुरादाबाद : वेडिंग जोन तो बना, लेकिन इन्हें है ठौर की तलाश

वे ठेले खींच कर दिन भर दो वक्त की रोजी रोटी का जुगाड़ करते हैं। कई बार पूरी दिहाड़ी नहीं हो पाती। कभी नगर निगम वाले दौड़ाते हैं तो कभी पुलिस वाले। कोई वीआईपी आ गया तो ठेले वालों की शामत आ जाती। इन्हें सड़क पर लगा दिया जाता है। आर्थिक तंगी से जूझने वाले ठेले खोमचे वाले कई ऐसे हैं जिनका काफी बड़ा परिवार है। उनकी पीड़ा यह है कि उन्हें या तो क्षेत्रवार ऐसे स्थान मिल जाएं जहां कोई तंग न करे। ठेले भी जर्जर हैं अगर नए ठेले मिल जाएं और व्यवस्था नगर निगम की ओर से करवा दी जाए तो परेशानी कम होगी। रेहड़ी पटरी का काम करने वाले मुरादाबाद शहर में हजारों लोग हैं। दिनभर में जाने कितनी गलियों का रास्ता नापने के बाद रेहड़ी वालों की कमाई होती है। कोई परिवार की मजबूरी तो कोई आर्थिक तंगी से तो परेशान होता ही है। ऊपर से नगर निगम और पुलिस प्रशासन भी इनपर डंडे का जोर चलाता है। ठेला लगाने के लिए निर्धारित जगह न होने की वजह से अक्सर इन्हें निगम के अभियान की मार झेलनी पड़ती है। कभी तो इनका ठेला ही उठा लिया जाता है। पुलिस का बुरा बर्ताव झेलना तो इनकी रोज की कहानी है। दिनभर में चार सौ रुपये की कमाई के लिए रेहड़ी वालों को जाने कितनी दुश्वारियों को सहना पड़ता है। उधर सरकार की ओर से जारी की गई योजनाओं से भी अधिकांश रेहड़ी वाले वंचित हैं।

भले ही ठेलों से सड़क पर लगने वाले जाम से भी आप जूझे होंगे पर जाम लगाने के पीछे उनकी कोई मंशा नहीं होती। जिले में हजारों व्यक्ति रेहड़ी पटरी का काम करते होंगे। कोई मजबूरी में कर रहा है तो किसी ने परिवार पालने को इसे व्यवसाय ही बना लिया है। रेहड़ी वालों का दिन तड़के सुबह से ही शुरू हो जाता है। पहले तो मंडी से सामान लाना होता है। उसके बाद अपने ठेले पर सामान लादकर बाजार में निकल जाते हैं, सिर्फ इसी उम्मीद में कि शाम को घर लौटने पर चार पैसे लेकर जाएं। लेकिन हर दिन उनके मायने से नहीं चलता है। ठेले लगाने के लिए शहर में कोई निर्धारित जगह नहीं होने के कारण अकसर ठेले वालों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। अब जगह निर्धारित नहीं होने के कारण ठेले वाले अपना सामान बेचने के लिए मुख्य मार्गों पर खड़े हो जाते हैं। जिसके बाद उन्हें निगम की कार्रवाई का सामना करना पड़ता है। नगर निगम द्वारा ठेले वालों का पांच सौ रुपये से लेकर दो हजार रुपये तक का चालान कर दिया जाता है। यह कोई नियमित समय के लिए नहीं होता। बल्कि रोजाना भी चालान कर दिया जाता है। अब रोजाना की कमाई भी रेहड़ी पटरी वालों की इतनी नहीं होती, जितने रुपयों का चालान ये भरने मजबूर हैं। स्थान निर्धारित करने के लिए रेहड़ी वालों ने प्रशासनिक अधिकारियों से गुहार भी लगाई है लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका। पीयूष ने बताया चालान जमा करने के लिए रोजाना रुपये नहीं होते जिसके कारण नगर निगम के कर्मचारी, ठेले ही उठाकर ले जाते हैं।

बेटी की शादी तो कोई भाई का भविष्य सुधारने के लिए लगा रहा ठेला

मुरादाबाद। रेहड़ी का काम करने वाले व्यक्ति मजबूरियां और हालात के बोझ तले दबे हुए हैं। जिन परिस्थितियों से वे गुजरे हैं, जो दर्द और हालात उन्होंने देखे हैं। अब वे चाहते हैं कि उनका परिवार इस परिस्थिति से आगे बढ़कर बेहतर जिंदगी जी सके। बहुत से रेहड़ी वालों की कहानी ये ही बयां कर रही है। फल का ठेला लगाने वाले मोहम्मद असलम ने बताया कि वह नागफनी थाना क्षेत्र के रहने वाले हैं। परिवार में चार बेटियां और पत्नी है। बेटियों का निकाह करने के लिए रुपये जोड़ रहे हैं। बेटा नहीं होने के कारण स्वयं ही ठेला लेकर गली-गली फेरी भी लगाते हैं। पुलिस और निगम की ओर से भी परेशान किया जाता है।

निगम वाले सामान ले जाते पुलिस करती है बदसलूकी

मुरादाबाद। ठेला रोड किनारे लगे होने पर चालान करने का हक नगर निगम को तो है लेकिन बदसलूकी करने का अधिकार नहीं। वह सामान ले जाते हैं कई बार उनसे बदसकूली भी होती है। सड़क किनारे खड़े ठेले वालों से नगर निगम जुर्माना वसूलती है। क्योंकि वे सड़क किनारे ठेला लगाए होते हैं। कभी-कभी निगम ठेला भी उठाकर ले जाता है। रेहड़ी वालों से बदसलूकी होती है तो वे इसको लेकर नाराजगी जाहिर करते हैं। दिनेश सैनी ने बताया ठेला लगाने के लिए जगह न होने की वजह से रोड किनारे ठेला लगाते हैं।

किराया देने को तैयार पर ठीहा तो मिल जाए

मुरादाबाद। रेहड़ी पटरी लगाने के लिए शहर में कोई जगह निर्धारित नहीं की जा रही है। जिसके कारण ठेले लगाने वाले व्यक्तियों को काम में परेशानी हो रही है। हर जगह-ठेले तो मिल ही जाएंगे लेकिन उनके लिए कोई ठीहा निर्धारित नहीं हो सका है। अरविंद का कहना है कि जिस स्थान पर ठेले वाले खड़े होते हैं, उसी स्थान के आसपास उनकी जगह निर्धारित कर दी जाए। अगर चाहें तो उचित दरों पर सशुल्क नए ठेले मिल जाएं लेकिन नगर निगम की ओर से जो दुकानें दी जा रही हैं उनका किराया अधिक है। और उसके लिए पांच लाख रुपये जमा भी करने होंगे। इतने रुपये जुटा पाना मुश्किल है।

परिवार को छोड़, त्योहारों पर भी लगाते हैं रेहड़ी

मुरादाबाद। त्योहार मनाना किसे पसंद नहीं, हर व्यक्ति चाहता है कि त्योहारों के दौरान वह अपने परिवार के साथ रहे। लेकिन रेहड़ी लगाने वालों को त्योहार नसीब नहीं। उन्हें त्योहारों पर भी ठेला लगाना पड़ता है। अमित कुमार ने बताया कि हर त्योहार पर सुबह से लेकर शाम तक ठेला लगाते हैं। क्योंकि त्योहार मनाने के लिए रुपयों की जरूरत पड़ती है। अब किसी दिन छुट्टी कर दें तो घर में तंगी हो जाती है। जिसके लिए रोजाना ठेला लगाते हैं। कभी-कभी तबीयत खराब होने पर भी ठेला लगाना ही पड़ता है। रेहड़ी लगाना अब मजबूरी बन गया है। एक दिन भी ठेला नहीं लगाने से परेशानियां खड़ी हो जाती हैं।

दिनभर फेरी लगाने पर कमाई सिर्फ 300 रुपये

मुरादाबाद। गली मोहल्लों में ठेले पर सब्जी-फल रखकर फेरी लगाने वालों की दिनचर्या सुबह से ही शुरू हो जाती है। ये दिनभर में कितनी सड़कें नापते हैं इसका कोई अंदाजा नहीं। ठेले वालों को सुबह पहले मंडी से सामान लेकर आना होता है। सुबह से ही घर से निकले हुए फेरी वाले कब खाना खाएं हैं और कहां आराम करें, इसके लिए कोई ठिकाना नहीं। फुरकान अली ने बताया सब्जी बेचने के लिए दिनभर में 20-25 किमी तक फेरी लगानी पड़ती है। कभी-कभी मोहल्लों में भी फेरी लगाने के लिए मना किया जाता है। ऐसे में हम कहां जाकर सब्जी बेचें। शाम को घर जाते हुए 300 से 500 रुपये तक की कमाई भी मुश्किल से ही होती है।

सरकारी योजनाओं का नहीं मिल रहा है लाभ

मुरादाबाद। सरकार द्वारा जारी योजनाओं का लाभ रेहड़ी पटरी वालों तक नहीं पहुंच रहा है ऐसा उनका कहना है। लक्की ने बताया नगर निगम में पंजीकरण भी है और कार्ड भी बना हुआ है। लेकिन सरकार द्वारा जारी योजनाओं के लिए जब भी बैंक में आवेदन किया है तो सफलता नहीं मिली है। पीएम स्वनिधि के तहत दस हजार रुपये का लोन मिलना था। लेकिन वो भी नहीं प्राप्त हो रहा है। साथ ही काम में विस्तार करने के लिए पांच लाख रुपये का लोन देने की योजना जारी हुई है लेकिन उसकी भी बैंक में कोई जानकारी नहीं देता। जिसके कारण योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है।

सुझाव

1.ठेला लगाने के लिए किराया वसूला जाए लेकिन पक्का स्थान मिले।

2.कच्चे माल के लगातार दाम नहीं बढ़ें तो परेशानी कम होगी।

3.नगर निगम की टीमें ठेले खोमचों वालों का उत्पीड़न रोके।

4.सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके।

5.हम पर बेवजह जुर्माना नहीं लगाया जाए।

शिकायतें

1.ठेले लगाने के लिए निर्धारित जगह नहीं है।

2.बार-बार नगर निगम की ओर से चालान भी किया जाता है।

3.अतिक्रमण हटाने पर सबसे पहले हमारे ठेले हटाए जाते हैं।

4.जबरन वसूली भी की जाती है जिसके बाद भी ठेला हटा दिया जाता है।

5.सरकारी योजनाओं का सभी ठेले रेहड़ी वालों को लाभ नहीं मिलता।

हमारी भी सुनें

हमारे लिए कहीं भी जगह निर्धारित नहीं हैं जहां पर हम अपना ठेला लगा सकें। निगम को हमारे लिए कोई जगह निर्धारित करनी चाहिए।

-मनोज

नगर निगम द्वारा जुर्माना वसूला जाता है, लेकिन उसे जमा नहीं कर पाने पर ठेला ले जाते हैं। हमे कुछ समय देना चाहिए जुर्माना जमा करने के लिए।

-विजय

निगम द्वारा हमारे कुछ ठेले लंबे समय से बंद किए हुए हैं।जिसके कारण साथियों के परिवार को आर्थिक तंगी से जूझना पड़ रहा है।

-लक्की

जब हम ठेला हटा रहे होतेहैं तो नगर निगम और पुलिस द्वारा बेवजह मारपीट की जाती है, जो कि उचित नहीं है।

-विशाल

सरकारी योजनाओं के लिए बैंक में कई बार चक्कर काटे हैं लेकिन कभी लाभ नहीं मिला।

-मोनू

हम जहां ठेला लगाते हैं उसी के आसपास हमें जगह दे देनी चाहिए। चाहें उसके लिए निगम किराया लगा दे।

-विनीत

दिनभर जाने कितने किलोमीटर ठेला खींचना पड़ता है थोड़ी देर भी जहां रुक जाओ तो हटाने के लिए डंडा मारने लगते हैं।

-मोहम्मद खलीक

बुध बाजार में ठेला लगाता हूं, क्योंकि यहां कॉलेज के बच्चे अधिक होते हैं। लेकिन निगम द्वारा हटा दिया जाता है।

-शिव कुमार

जहां भी ठेला लगाओ वहीं से हटने हटने को बोल दिया जाता है। कमाई करने के लिए कहीं तो ठेला लगाना ही पड़ेगा।

-तेज प्रकाश

काम करने में भी डर लगा रहता है, कब निगम की गाड़ी आ जाए और ठेला उठाकर ले जाए। इससे निजात मिले।

-अजय

सड़क से पीछे खड़े होने के लिए नगर-निगम द्वारा बोला जाता है। पीछे खड़े होने के बाद भी चालान कर दिया जाता है।

-प्रदीप

नौकरी छोड़कर ठेला लगाना शुरू किया था तो इसमें भी दिक्कते हैं। रोजाना चालान कर दिया जाता है। औसत भी नहीं निकल पाता।

-हरीश कुमार

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