बोले मेरठ : वेंडर्स और कुली चाहें सुविधाओं का ट्रैक
Meerut News - रेलवे स्टेशनों पर वेंडर्स और कुलियों की जिंदगी की जद्दोजहद का सामना करना पड़ता है। ये लोग रोजाना किराया देते हैं, लेकिन कम यात्री और कम ट्रेनों के कारण उनकी आमदनी घट गई है। स्वास्थ्य बीमा जैसी...
रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की भीड़, गाड़ियों की आवाज़, अनाउंसमेंट की गूंज और दौड़ते-भागते लोग, यह सब मिलकर एक अलग ही दुनिया बनाते हैं। लेकिन इस भीड़ में एक ऐसी जमात भी है, जो रोजी-रोटी के लिए हर गुजरती ट्रेन पर अपनी नज़रें टिकाए रखती है। ये हैं रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर वेंडर्स और कुली। वेंडर्स दिनभर सामान बिकने का इंतजार करते हैं, तो कुली किसी के सामान उठाने का। ट्रेन रुकेगी, यात्री उतरेंगे, और शायद कोई उनसे कुछ खरीद ले, यही उम्मीद वेंडर्स को सुबह से रात तक यहां रोके रखती है। बुनियादी सुविधाओं से महरूम ये वेंडर और कुली अपने लिए बेहतर व्यवस्था चाहते हैं। हर छोटे-बड़े रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर आपको कुछ वेंडर और कुली दिख जाएंगे। कोई वेंडर चाय बेचता है, कोई समोसे, कोई चाट, कोई चिप्स तो कोई पानी की बोतल। इन वेंडर्स के लिए यह सिर्फ एक काम नहीं, बल्कि ज़िन्दगी की जद्दोजहद है। ऐसी ही जिंदगी की जद्दोजहद बचे-खुचे कुलियों के लिए भी दिखती है। जो दिनभर इंतजार करते हैं कि कोई आएगा और कहेगा भैया हमारा सामान ट्रेन तक पहुंचा दो, लेकिन ऐसा बहुत कम ही होता है। सिटी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर मौजूद खाने-पीने का सामान बेचने वालों की बात करें, तो यहां कुल मिलाकर 24 वेंडर्स हैं। चलते फिरते इन वेंडर्स में 13 चाय बेचने वाले, 6 चाट कुल्चे वाले, 2 फलों की चाट लगाने वाले और तीन फिक्स स्टॉल शामिल हैं। ये लोग स्टेशन पर 24 घंटे सामान बेचते हैं। कई बार, जब दिनभर की मेहनत के बावजूद कमाई नहीं होती, तब भी उन्हें स्टेशन पर बने रहना पड़ता है। हर गुजरती ट्रेन उनके लिए एक नई उम्मीद लेकर आती है। वे सोचते हैं कि शायद इस ट्रेन के यात्री कुछ खरीद लें और आज की रोज़ी-रोटी का जुगाड़ हो जाए। अगर दिन खराब गया, तो उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ता है। ऐसा ही कुछ हाल मौजूदा कुलियों का भी है। कुली फिल्म में अमिताभ की तरह उनकी बाजू पर भी बिल्ला होता है, लेकिन अब पहले जैसी बात नहीं रही। क्योंकि दुनिया अब इनसे बोझ नहीं उठवाना चाहती।
हिंदुस्तान बोले मेरठ की टीम ने रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म्स पर यात्रियों के लिए खाने-पीने का सामान बेचने वाले वेंडर्स और लोगों का सामान उठाने वाले कुलियों के मन की बात जानने की कोशिश की। वेंडर्स का दर्द छलका तो बहुत कुछ निकलकर सामने आया। मौजूदा वेंडर विजय गुप्ता, गुलाब सिंह, लालमन और अश्वनी कुमार का कहना है, कि वे यहां 24 घंटे सामान बेचते हैं। इसके लिए ठेकेदार को रोज किराया देते हैं, जो फिक्स है। सामान बिके या ना बिके, हम बीमार हों या किसी को कोई भी समस्या हो यह किराया तो देना ही है। पहले थोड़ा बहुत काम सही चला करता था, लेकिन कोरोना काल के बाद स्टेशन पर ट्रेनों शेड्यूल ही बदल गया, जिससे समस्याएं और बढ़ गईं।
ट्रेनों के स्टॉपेज टाइम ने बिगाड़ा खेल
सिटी रेलवे स्टेशन पर मौजूद वेंडर राहुल कुमार, प्रवीण राजू और हर्ष कुमार का कहना है कि पहले स्टेशन पर कई ट्रेनों के स्टॉपेज अच्छे हुआ करते थे। अब कोई ट्रेन दो या फिर पांच मिनट ही रुकती है। ऐसे में यात्री नीचे तक उतरकर कुछ खरीदें इससे पहले ही ट्रेन चलने लगती है। हम इंतजार में रहते हैं कि कब कोई ट्रेन आएगी और हमारा सामान बिकेगा। लेकिन हालात ये हैं कि पूरे दिन में किराए लायक भी बिक्री नहीं हो पाती। अगर ट्रेनें रद्द हो जाएं तो हालत और बिगड़ जाती है। खाना-खर्चा भी नहीं निकल पाता।
आज भी घासलेट वाले स्टोव
यहां मौजूद वेंडर का कहना है कि हम आज भी खाने पीने की चीजें घासलेट वाले स्टोव पर ही बनाते हैं। जिसमें हवा भरनी पड़ती है और फिर उसको जलाकर सामान गर्म करना पड़ता है। बार-बार खाना गर्म करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है, अगर छोटे घरेलू गैस सिलेंडर प्रयोग करने की अनुमति मिल जाए तो राहत हो जाएगी। लेकिन सिलेंडर का इस्तेमाल एकदम बंद है, घासलेट वाले स्टोव का ही इस्तेमाल किया जा सकता है।
मिले सरकारी सुविधाएं तो बने बात
वेंडर्स का कहना है कि उन्हें बस यहां काम करने की अनुमति मिलती है, उनके पास लाइसेंस होता है, कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलती। उनके पास जो कार्ड होता है, उसे ही आगे रिन्यूअल कर दिया जाता है। रेलवे की तरफ से या फिर ठेकेदार के द्वारा उनको इंश्योरेंश जैसी सुविधा मिल जाए तो बेहतर हो। दूसरे शहरों के रेलवे स्टेशनों पर स्टॉल लगाने वालें के लिए सुविधाएं होती हैं, यहां ऐसा कुछ नहीं है। अगर स्थाई ही कर दिया जाए तो एक बड़ी राहत मिल जाएगी।
पैसेंजर ट्रेनें बहुत कम हो गईं
प्लेटफार्म पर सामान बेचने वाले वेंडर्स का कहना है, कि आजकल पैसेंजर ट्रेनें भी कम हो गई हैं। इक्का-दुक्का पैसेंजर ट्रेनें ही आती हैं। वही एक्सप्रेस ट्रेनों में पहले नौचंदी और संगम ट्रेनें यहां से बनकर चलती थीं, लेकिन नौचंदी अब सहारनपुर से चलती है। उसका स्टॉपेज टाइम यहां पांच मिनट का रह गया है। यात्री कम आते हैं और सामान भी उस हिसाब से बहुत कम बिक पाता है। यहां आईआरसीटी की तरफ से रेस्टोरेंट खुला था, जो कम पैसेंजर की वजह से बंद हो गया। उसका किराया भी बहुत होता था, इसलिए वह चल नहीं पाया।
इंश्योरेंस की व्यवस्था हो
स्टेशन पर अगर किसी वेंडर्स के साथ कोई हादसा हो जाए तो उसके इलाज की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता है, चिकित्सकीय सुविधा के लिए उसका कोई इंश्योरेंस नहीं होता है। ठेकेदार की ओर से भी किसी इंश्योरेंस की व्यवस्था नहीं दी जाती है। ऐसे में उसको और उसके परिवार को आर्थिक परेशानी का सामना भी करना पड़ सकता है।
ट्रेनों के संचालन पर निर्भर है आमदनी
वेंडर्स का कहना है कि उनकी आमदनी पूरी तरह से ट्रेनों के संचालन पर निर्भर करती है। स्टेशन से जितनी ज्यादा ट्रेनों का आना-जाना होता है, उतने ही अधिक यात्रियों के आने की उम्मीद बढ़ती है। संगम एक्सप्रेस ट्रेन मेरठ स्टेशन से ही बनकर चलती है, तो ऐसे में यात्रियों को खाने-पाने का सामाना खरीदने के लिए अधिक समय मिल जाता है और वेंडर्स की अच्छी खासी बिक्री भी हो जाती है। जब यहां ट्रेनों का संचालन ही कम है तो बिक्री भी कम होती है।
प्रतिदिन देने ही पड़ते हैं 800 से 900 रुपए
मेरठ सिटी रेलवे स्टेशन पर वेंडर्स को ठेका दिया जाता है। इन सभी को यह ठेका रेलवे द्वारा दिया जाता है। प्रत्येक वेंडर्स अपने ठेकेदार को रोजाना 800 से लेकर 900 रुपये तक देता है। इसमें खास बात यह है, कि चाहे किसी वेंडर्स की बिक्री हो या ना हो उसे पैसे ठेकेदार को देने ही हैं। इसमें कोई रियायत नहीं है। वेंडर्स कहना है कि कभी-कभी दिन ऐसे ही गुजर जाता है, ज्यादा यात्री स्टेशन पर खरीदारी ही नहीं करते हैं। कभी काम चलता है, तो कभी नहीं।
धीरे-धीरे घटती जा रही कुलियों की संख्या
सिटी रेलवे स्टेशन पर मौजूद कुली वसीम, धर्मवीर और सोनू बताते हैं कि आज से 20-25 साल पहले स्टेशन पर करीब 70 कुली हुआ करते थे। 10 वर्ष पहले की बात करें तो कुलियों की संख्या करीब 28 थी, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया कुलियों की संख्या घटती गई। कुछ की इनमें मृत्यु हो गई, कुछ रिटायर हो गए। अब पिता की जगह उनके पुत्र या रिश्तेदार कुली का काम कर रहे हैं। वर्तमान समय में यहां 13 रजिस्टर्ड कुली हैं। कैंट रेलवे स्टेशन की बात करें तो वहां 25 कुली हुआ करते थे, अब एक भी नहीं है।
बैग में पहियों ने खत्म कर दी कमाई
कुलियों का कहना है कि अब लोगों के पास पहियों वाले बैग हैं, जिन्हें लाना और ले जाना आसान हो होता है। यात्री आसानी से अपने सामान को एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाते हैं। ऐसे में सामान को यहां से वहां पहुंचाने के लिए लोग कुली नहीं बुलाते। अगर कुलियों के ढोहने के लिए यात्रियों का सामान ही नहीं होगा, तो उन्हें पैसे कहां से मिलेंगे और कुलियों के परिवार का गुजर-बसर कैसे होगा। उनका खर्चा कैसे चलेगा।
लिस्ट के हिसाब से नहीं मिलते हैं पैसे
रेलवे की ओर से कुलियों के लिए लगाई गई लिस्ट के हिसाब से कोई यात्री पैसे नहीं देता। इससे कुलियों की आमदनी पर खासा असर पड़ता है। साथ ही यात्री सामान उठाने की एवज में पैसों को लेकर हमेशा मोलभाव करते हैं। रेलवे द्वारा निर्धारित किए गए किराए कभी कुलियों को मिलते ही नहीं। ऐसे में कमाई कहां से होगी। अब एक ही उम्मीद है कि किसी तरह बचे हुए कुलियों को विभाग में स्थाई जगह मिल जाए।
रेलवे द्वारा दी जा रही सुविधा
सिटी स्टेशन के कुलियों का कहना है कि रेलवे द्वारा उन्हें एक पास दिया जाता है, जिस पास पर कुली और उसके परिवार के सभी सदस्यों के नाम लिखे होते हैं। इस पास के द्वारा कुली का पूरा परिवार निशुल्क यात्रा कर सकता है। इसके अलावा स्टेशन पर कुलियों को एक कमरा दिया जाता है। जहां पर जाकर सभी कुली बैठ सकते हैं या आराम कर सकते हैं। कुलियों को किसी भी तरह से सरकारी पैसे की मदद नहीं की जाती है। खाने-पीने के लिए भी कोई पैसा नहीं मिलता है। रोजाना अपने खाने-पीने की चीजों को खरीदने के लिए खुद ही पैसे खर्च करने पड़ते हैं। वहीं, रेलवे द्वारा कुलियों को वर्दी और बिल्ला भी मिलता है, जिसे पहनकर स्टेशन पर काम करना होता है।
कोई इंजीनियर तो कोई एमए पास
स्टेशन पर काम करने वाले कुली की बात करें तो इनमें धर्मवीर अपने पिता की जगह कुली लगा है। वह इलेक्ट्रिक से इंजीनियर है, लेकिन कुली का काम करता है। एक उम्मीद है कि विभाग में एक दिन सरकारी नौकरी मिल जाएगी। वसीम और सोनू भी अपने पिता की जगह लगे हैं। सभी को ग्रुप डी में कर्मचारियों की भर्ती का इंतजार है। उनको नियुक्ति मिल जाती है तो लगी बंधी सेलरी मिलेगी, जिससे उन्हें परिवार को पालने में राहत होगी।
कहना इनका
सुबह आठ बजे से ही प्लेटफार्म पर आ जाते हैं, सभी तैयारियां करने के बाद ट्रेन के आने का इंतजार रहता है, ट्रेन से यात्री उतरेंगे और खाने-पीने की चीजों को खरीदेंगे। - गुलाब सिंह
स्टेशन पर आने वाले शहर के यात्री हों या ट्रेन से उतरने वाले यात्री हों कभी सामान खरीदते हैं, तो कभी नहीं खरीदते हैं। इसलिए प्लेटफार्म वेंडर्स का काम कभी चलता है कभी नहीं। -लालमन
कुछ ट्रेनों का स्टॉपेज टाइम कम होना आमदनी पर असर डालता है, यदि यात्री ही कुछ समय के लिए स्टेशन पर नहीं रुकेंगे तो आमदनी कैसे होगी। -अश्विनी कुमार
आजकल पैसेंजर ट्रेनें भी कम हो गई हैं। इक्का-दुक्का पैसेंजर ट्रेनें ही आती हैं। वही एक्सप्रेस ट्रेनों में पहले नौचंदी और संगम ट्रेनें यहां से बनकर चलती थीं। - राहुल
उन्हें बस यहां काम करने की अनुमति मिलती है, उनके पास लाइसेंस होता है, कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलती। उनके पास जो कार्ड होता है, उसे ही आगे रिन्यूअल कर दिया जाता है। - विजय गुप्ता
स्टेशन पर अगर किसी वेंडर्स के साथ कोई हादसा हो जाए, तो उसकी मदद के लिए कोई व्यवस्था नहीं होती है और ना ही उसका कोई इंश्योरेंस होता है। -प्रवीन, वेंडर
स्टेशन पर रोजाना स्टॉल या ठेला लगाने के लिए ठेकेदार को 800 से 900 रुपए तक देने होते हैं, चाहे दिन में सामान की बिक्री हुई हो या ना। - राजू, वेंडर
रेलवे के चिकित्सकों द्वारा प्लेटफार्म वेंडर्स का परीक्षण करने के बाद ही यहां सामान बेचने की अनुमति मिलती है। अगर कोई हादसा हो जाए तो चिकत्सकीय सुविधा नहीं मिलती है है। -हर्ष कुमार
अब कहां कुली रह गए हैँ, दिनभर इंतजार करने के बाद भी दो वक्त की रोटी का जुगाड़ नहीं हो पाता है। अगर ग्रुप डी में ही भर्ती कर दिए जाएं तो जीवन सुधर जाए। - वसीम, कुली
आमदनी ना के बराबर होती है, यात्री कभी सामान उठवाते हैं तो कभी नहीं। पैसों में भी मोलभाव करते हैं। अब बैग में पहिए लगे रहते हैं, जिससे काम खत्म हो गया है। - धर्मवीर, कुली
रेलवे द्वारा बचे हुए कुलियों के लिए कुछ कर दिया जाए तो बच्चों का जीवन बेहतर हो जाएगा। जैसे-तैसे गुजर बसर कर रहे हैं। ग्रुप डी में ही भर्ती कर दिए जाएं। - सोनू, सिटी स्टेशन
अब तो बस समय व्यतीत कर रहे हैं। कोई सुविधा नहीं मिलती है, पहले तो रेलवे द्वारा स्टेशन पर काम करने के लिए कुलियों को ड्रेस मिलती थी, लेकिन अब कुछ नहीं मिलता। - प्रेम सिंह, कैंट स्टेशन, कुली
समस्या
- काम करने के लिए आज भी घासलेट वाले स्टोव का प्रयोग
- हेल्थ इंश्योरेंस ना होने से चिकित्सकीय लाभ नहीं मिल पाता
- इन वेंडर्स को रेलवे विभाग द्वारा कोई सुविधा नहीं होती
- हादसा होने के बाद परिवार को आर्थिक लाभ नहीं मिलती
- कुलियों को नियमित सरकारी सुविधाएं नहीं मिलती है
- रेलवे द्वारा जारी किराए की सूची के अनुसार कुछ नहीं मिलता
सुझाव
- घासलेट वाले स्टोव की जगह दूसरी व्यवस्था की जाए
- प्लेटफार्म वेंडर्स के लिए हेल्थ इंश्योरेंस जैसी व्यवस्था हो
- चिकित्सा लाभ के लिए इन वेंडर्स के कार्ड बनवाएं जाएं
- ठेकेदार सभी वेंडर्स का लाइफ इंश्योरेंस कराए
- बचे हुए कुलियों को नियमित सरकारी सुविधाएं मिलें
- रेलवे उन्हें विभाग में नियमित करे, इंश्योरेंस की सुविधा मिले
जिम्मेदार बोले
ये सभी वेंडर्स ठेकेदारों के होते हैं, इनको फूड लाइसेंस और मेडिकल के बाद ही अनुमति दी जाती है। रेवले की तरफ से इनके लिए कुछ नहीं होता। रेलवे की फॉर्मेलिटी पूरी करने के बाद ही ठेकेदार को लाइसेंस मिलता है, ये उन्हीं की लेबर होती हैं। कुलियों के लिए ड्रेस की व्यवस्था होती है, साथ ही कुछ सरकारी सुविधाएं मिलती है।
- गुरजीत सिंह, कॉमर्शियल इंस्पेक्टर, रेलवे विभाग, मेरठ
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