बोले मैनपुरी: हुनरमंदों को अपनी कद्र का इंतजार खत्म हो रहा जरदोजी का कारोबार
Mainpuri News - मैनपुरी। मुगल सल्तनत की बात रही हो या फिर अंग्रेजी हुकूमत का दौर। मैनपुरी की जरदोजी का सूरज हमेशा उगता रहा।
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मुगल सल्तनत की बात रही हो या फिर अंग्रेजी हुकूमत का दौर। मैनपुरी की जरदोजी का सूरज हमेशा उगता रहा। राज बदलते रहे, ताज बदलते रहे मगर जरदोजी के सामने कभी गुमनामी की नौबत नहीं आई लेकिन महंगाई और बदलाव के दौर ने जोर पकड़ा तो इस कला की दीवानगी का सूरज मंदिम पड़ने लगा। महारानी विक्टोरिया भी इस कला की दीवानी थी, अमेरिका में भी हिन्दुस्तान में तैयार होने वाले जरदोजी उत्पादों की खूब डिमांड रहती थी। हिन्दुस्तान संवाद के दौरान इस कला के कारीगरों से बात की गई तो उन्होंने दिल खोलकर कला की दीवानगी का उत्साह तो दिखाया ही, साथ ही ये भी कहा कि सरकार की मदद मिले तो जरदोजी कला बड़े कारोबार का मजबूत हिस्सा बन सकती है।
एक जनपद एक उत्पाद में शामिल जरदोजी कला से जुड़े कारीगर दो वक्त की रोटी की तलाश में देश के विभिन्न राज्यों में भटकने पर मजबूर हैं। मैनपुरी में इस कला के कारीगरों की संख्या भी धीरे-धीरे सिमटने लगी है। सरकार ने हस्तशिल्पियों के कल्याण और स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाओं को शुरू किया लेकिन 20 से 30 प्रतिशत ही इन योजनाओं का लाभ जरदोजी कारीगरों को मिल पाता है। मैनपुरी के कोसमा की बात हो या फिर शहर से सटे सिकंदर गांव के कारीगर। ये कारीगर काम तो करते हैं लेकिन महंगाई के इस दौर में उन्हें बदले में गुजर-बसर के लायक मजदूरी नहीं मिल पाती। कच्चा माल भी दूर से लाना पड़ता है। ये कारीगर चाहते हैं कि माल भी यही मिले और जो उत्पाद तैयार किए जाएं उसके लिए बाजार यहीं मिल जाए।
जहां तक इस कला का सवाल है तो ये कला कपड़ों पर कारीगरी का अनूठा नमूना है। शादी-समारोह में सतरंगी साड़ियां हो या फिर दुल्हन का लहंगा। सभी इस कला पर ही फिदा नजर आते हैं लेकिन इस कला के उत्पादों की डिमांड देश-दुनिया में भले ही अधिक है परंतु स्थानीय बाजार में इस कला का मोल स्थानीय कलाकारों को नहीं मिल रहा है। इस कला से जुड़े खूबसूरत परिधानों की मांग दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, जालंधर, अमृतसर, लखनऊ, जयपुर आदि शहरों में ही नहीं बल्कि सऊदी अरब, ईराक, ईरान, अफगानिस्तान, कुबैत आदि देशों में भी हर समय रहती है। सरकार जरदोजी कला द्वारा निर्मित परिधानों का निर्यात सुनिश्चित करे तो जरदोजी उद्योग स्वरोजगार के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हो सकता है। मैनपुरी के सिकंदरपुर, भोगांव, कुरावली, करहल, घिरोर तथा कोसमा के करीब एक हजार परिवार जरदोजी कार्य से जुड़े थे जिनमें पांच हजार लोगों को रोजी-रोटी मिल रही थी। परंतु जिम्मेदार अधिकारियों की उदासीनता के चलते यह कला विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है और हस्तशिल्पी जिले से पलायन को मजबूर है।
बोले जरदोजी के कारीगर
जहां तक कारीगरों को सुविधाएं देने का सवाल है तो सरकार के स्तर से जितनी भी योजनाएं सुविधाओं के दृष्टिगत चल रही है, उनका 20 प्रतिशत लाभ भी कारीगरों को नहीं मिल पा रहा। यही वजह है कि जरदोजी लगातार खत्म होती जा रही है।
-फैजल खान
मैनपुरी में जरदोजी कला की दीवानगी तो छोड़िए जनाब इस कला की दीवानगी खाड़ी देश, यूरोपीय देशों के अलावा ब्रिटेन और अमेरिका में भी है। पर मुश्किल ते है कि स्थानीय स्तर पर कारीगरों को सुविधा नहीं मिली तो यह कला अब अपनी पहचान की मोहताज बनने लगी है।
-साबिर खान
मैनपुरी में जरदोजी कला से जुड़े लहंगा, साड़ी, चुन्नी तथा अन्य कपड़े दूसरे राज्यों में अधिक डिमांड से जुड़े हुए हैं। इस कला को एक बड़े कारोबार के रूप में विकसित करके स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराएजाए।
-मोहसिन खान
जरदोजी कल के लिए जो भी कच्चा माल उपलब्ध होता है वह बाहर से आता है। जबकि स्थानीय स्तर पर यह माल तैयार किया जाए ताकि लागत कम आएगी तो उत्पादन भी कम कीमत पर तैयार होगा और इसकी बिक्री के लिए बाजार भी आसानी से मिलने लगेगा।
-ईनाम अली खान
मैनपुरी के कोसमा में जरदोजी कला के कलाकारों के द्वारा बड़े स्तर पर हाथों की कारगरी के जरिए उत्पादन तैयार किए जाते हैं। लेकिन मुश्किल बात यह है कि उनके उत्पादन की बिक्री स्थानीय स्तर पर बेहद कम है।
-गुलाम वारिस
उत्पादन की डिमांड कम है और मजदूरी भी पर्याप्त नहीं मिल रही। मैनपुरी में कम से कम 10 स्थान पर जरदोजी कला प्रशिक्षण केंद्र खोले जाएं। इन प्रशिक्षण केंद्रों पर निशुल्क प्रशिक्षण देने की व्यवस्था हो। जो भी खर्च प्रशिक्षण के दौरान आए उसकी भरपाई सरकार अपने खजाने से करें।
-बतीम खान
कला के कारीगरों के सामने काम की सबसे बड़ी समस्या है। काम नहीं मिलता है तो दूसरे कामों के जरिए आजीविका के साधन तलाशने पड़ते हैं। अड्डे खराब हो रहे हैं, कपड़ा मिल नहीं पा रहा है। सरकारी मदद मिलनी चाहिए।
-अंशुल
जरदोजी कला मुगल काल से ही भारत के स्वाभिमान और सम्मान का बड़ा हिस्सा रही है। अंग्रेजी हुकूमत के दिनों में भी इस कला को खूब बढ़ावा दिया गया लेकिन अब इस कला की दीवानगी चर्चा में सिमट रही है।
-शादाब
जरदोजी कला के लिए प्रशिक्षण केंद्र जहां-तहां चल रहे हैं वहां संसाधन जुटाए जाएं और जहां नहीं चल रहे हैं वहां संसाधन के साथ केंद्र खोले जाएं। प्रशिक्षण के जरिए इस कला के कलाकार पैदा किए जाने की जरूरत है।
-अकरम खान
जरदोजी कला के जरिए तैयार किए जाने वाले उत्पादन स्थानीय स्तर पर बेचने के लिए बाजार की तत्काल आवश्यकता है। यहां जो उत्पादन तैयार होता है उसके खरीदार कम मिलते हैं। बाहर सप्लाई अधिक है।
-सहिरा बेगम
बैंकों के माध्यम से जरदोजी कला को बढ़ावा देने के लिए मदद कराई जाए। कारीगरों को आर्थिक मदद मिलेगी तो वे अपनी कला को जीवित रखने के लिए प्रयास करेंगे, जिसकी वर्तमान दौर में नितांत आवश्यकता है।
-अनीता
जरदोजी कला से जुड़ा जो भी उत्पाद तैयार होता है, वह महंगाई के इस दौर में हर वर्ग खरीद नहीं पाता। संपन्न वर्ग इस कला का मुरीद कम है। सिर्फ शादी समारोह में ही इस कला के उत्पादों की बिक्री हो पाती है।
-रूबी
सरकार जरदोजी को बढ़ावा देना चाहती है तो स्थानीय स्तर पर जरदोजी कला के प्रशिक्षण के लिए प्रत्येक ब्लॉक में प्रशिक्षण केदो को खोलने की आवश्यकता है। जब तक कलाकारों की नई खेप सामने नहीं आएगी तब तक इस कला को बढ़ावा नहीं मिलेगा।
-गुड्डी सविता
सरकार ने एक जनपद एक उत्पाद में तारकशी कल को शामिल किया। सह कला के रूप में जरदोजी को शामिल किया गया है। लेकिन सरकार ने इस कला को बढ़ावा देने से जुड़े आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने के लिए कोई प्रयास अब तक नहीं किए हैं।
-शारदा देवी
जरदोजी कल को बढ़ावा तभी मिलेगा जब इस कला के कलाकार आर्थिक रूप से संपन्न होंगे। उनके सामने भरण पोषण की समस्या नहीं रहेगी। कलाकारों के पास काम कम है और मजदूरी न के बराबर है।
-सोनी बेगम
जरदोजी कल को बढ़ावा देने के लिए सरकार को जितने भी कलाकार हैं उन्हें सूचीबद्ध करके प्रोत्साहन भत्ते के रूप में प्रत्येक माह 3000 दिए जाएं। इन कलाकारों की जो भी कला उत्पादन है उनकी बिक्री के लिए बाजार उपलब्ध कराए जाएं।
-संगीता देवी
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