डीजीपी की स्थाई नियुक्ति पर कई सवाल, अभी राह आसान नहीं
पंजाब, पश्चिम बंगाल और तेलांगना ने लागू की थी ऐसी नियमावली सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब
-पंजाब, पश्चिम बंगाल और तेलांगना ने लागू की थी ऐसी नियमावली -सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और पश्चिम बंगाल की नियमावली को गलत ठहरा दिया था
लखनऊ, प्रमुख संवाददाता
डीजीपी की स्थाई नियुक्ति के लिए नियमावली तो बन गई पर इसको लेकर जहां एक ओर सियासत गर्मा गई है। वहीं नियमावली को कैबिनेट द्वारा मंजूरी दिए जाने पर कई तरह के सवाल भी उठ खड़े हुए हैं। समाजवादी पार्टी के मुखिया ने इसे एक खास अधिकारी को बचाने के लिए अपनाया गया पैंतरा करार दिया है तो वहीं प्रशासनिक अमले में भी इस कदम को विधि रूप से पुख्ता करार नहीं दिया जा रहा।
कहीं ये दिल्ली के हाथ से लगाम लेने की कोशिश तो नहीं : अखिलेश
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने डीजीपी चयन नियमावली पर सवाल उठाते हुए भाजपा सरकार को घेरा है। अखिलेश यादव ने मंगलवार को एक्स पर लिखा, सुना है किसी बड़े अधिकारी को स्थायी पद देने और उसका कार्यकाल दो साल बढ़ाने की व्यवस्था बनायी जा रही है…। सवाल ये है कि व्यवस्था बनाने वाले ख़ुद 2 साल रहेंगे या नहीं। कहीं ये दिल्ली के हाथ से लगाम अपने हाथ में लेने की कोशिश तो नहीं है। अखिलेश ने आखिरी में जोड़ा, दिल्ली बनाम यूपी 2.0..।
न्यूनतम दो साल का सेवाकाल होने पर फंसेगा सेवाविस्तार!
इसी के साथ प्रशासनिक अमले में भी कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। कुछ पूर्व अधिकारियों ने बताया कि पंजाब, पश्चिम बंगाल और तेलांगाना में ऐसी ही नियमावली बनी थी पर सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और पश्चिम बंगाल की नियमावली को गलत ठहरा दिया था। इस नियमावली में ही एक प्रावधान किया गया है कि अगर डीजी स्तर के किसी अधिकारी की सेवा अवधि छह माह बची है तो उसे डीजीपी बनाया जा सकता है और उसका कार्यकाल दो साल का किया जा सकता है। पर, डेढ़ साल का सेवा विस्तार देने के लिए केन्द्र की सहमति लेनी कानूनन जरूरी है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या केंद्र सरकार जूनियर अधिकारी को सेवा विस्तार ऐसी स्थिति में मंजूर करेगी जबकि उसके बैच या अन्य सीनियर बैच में डीजीपी के लिए अधिकारी हों।
इस नियमावली-2024 से यूपी सरकार को डीजीपी की सीधे नियुक्ति का अधिकार तो मिल गया है पर एक सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि बीजेपी शासित राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और उत्तराखंड में डीजीपी की नियुक्ति के लिए तीन नामों का पैनल भेजा जाता है तो उत्तर प्रदेश में प्रदेश सरकार अपने स्तर से ही कार्यवाहक डीजीपी की तैनाती पांच सालों से क्यों कर रही है? ये आरोप विपक्ष लगातार लगाता रह है। सीनियर अधिकारियों की उपेक्षा कर उनके जूनियर अफसर यहां डीजीपी बनाए गए।
14 नवम्बर को शपथ पत्र देना है सरकार को
डीजीपी की स्थाई नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका लंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाहक डीजीपी की तैनाती को असैंवाधिनक बता रखा है। इस पर 14 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार को शपथ पत्र दाखिल करना है। शासन सूत्रों का कहना है कि शपथ पत्र दाखिल करने से पहले ही कैबिनेट में इस नई नियमावली को मंजूरी दे दी गई ताकि उनकी पैरवी आसान हो जाए।
चौथे कार्यवाहक डीजीपी तैनात हुए यूपी में
यूपी में कार्यवाहक डीजीपी बनाने की शुरुआत वर्ष 2019 में हुई। स्थायी डीजीपी मुकुल गोयल के बाद वर्ष 2019 में भाजपा सरकार ने डीएस चौहान को कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किया। इसके बाद विजय कुमार, आरके विश्वकर्मा कार्यवाहक डीजीपी बने। इसके बाद प्रशांत कुमार को कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया। प्रशांत कुमार की सेवानिवृत्ति 31 मई, 2025 को होनी है।
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सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का इंतजार करना होगा
याचिका दायर करने वाले यूपी के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने कहा कि यूपी सरकार द्वारा बनाई गई नियमावली ठीक लग रही है। पर, अभी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का इंतजार करना होगा। कई प्रदेशों में बनी ऐसी ही नियमावली में सुप्रीम कोर्ट संशोधन करा चुका है। 14 नवम्बर को इस मामले में सुनवाई होनी है। प्रकाश सिंह ने अपनी याचिका में जो संस्तुतियां की थी, उसमें की अधिकतर संस्तुतियां इस नियमावली में शामिल की गई हैं।
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सोशल मीडिया पर कई तरह की टिप्पणी
लखनऊ। डीजीपी की नियुक्ति के लिए बनी नियमावली पर सोशल मीडिया पर कई तरह की टिप्पणी हो रही है। केके भारद्वाज नाम के व्यक्ति ने एक्स पर लिखा है कि बंगाल ने 2019 में ऐसा ही एक्ट बनाया था पर तब सुप्रीम कोर्ट ने उसे फटकार लगाई थी। पंजाब का एक्ट अभी तक लटका हुआ है। सुप्रीम कोर्ट डीजीपी की नियुक्ति के संदर्भ में चार बार फैसला सुना चुका है। अब देखना है कि आगे क्या होता है...। इसी तरह कुछ लोगों ने अखिलेश यादव की एक सभा का वीडियो पोस्ट कर लिखा है कि देखिए यूपी में इस तरह मुख्य सचिव की तैनाती की जाती थी...।
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