Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़Just by marrying willingly one does not get the right to demand protection High Court said there should be a threat

मर्जी से शादी करने भर से नहीं मिलता सुरक्षा की मांग का अधिकार, हाईकोर्ट ने कहा- खतरा होना चाहिए

मर्जी से शादी करने के बाद सुरक्षा की गुहार लेकर हाईकोर्ट पहुंचे युगल की याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सुरक्षा की गुहार लगाने के लिए उन्हें वास्तविक खतरा होना चाहिए।

Yogesh Yadav प्रयागराज, विधि संवाददाता।Tue, 15 April 2025 11:14 PM
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मर्जी से शादी करने भर से नहीं मिलता सुरक्षा की मांग का अधिकार, हाईकोर्ट ने कहा- खतरा होना चाहिए

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि अपनी मर्जी से शादी करने भर से किसी युगल को सुरक्षा की मांग करने का कोई विधिक अधिकार नहीं है। उनके साथ दुर्व्यवहार या मारपीट की जाएगी तो कोर्ट व पुलिस उनके बचाव में आएगी। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से कहा कि न्यायालय ऐसे युवाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए नहीं है जिन्होंने अपनी मर्जी से शादी कर ली हो। सुरक्षा की गुहार लगाने के लिए उन्हें वास्तविक खतरा होना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि याचियों ने एसपी चित्रकूट को प्रत्यावेदन दिया है, पुलिस वास्तविक खतरे की स्थिति के मद्देनजर कानून के मुताबिक जरूरी कदम उठाए। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने श्रेया केसरवानी व अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता बीडी निषाद व रमापति निषाद ने बहस की।

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याचिका में याचियों के शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में विपक्षियों को हस्तक्षेप करने से रोकने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि याचिका के तथ्यों से कोई गंभीर खतरा नहीं दिखाई देता जिसके आधार पर याचियों को पुलिस संरक्षण दिलाया जाए। विपक्षियों द्वारा याचियों पर शारीरिक या मानसिक हमला करने कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। कोर्ट ने कहा कि याचियों ने विपक्षियों के किसी अवैध आचरण को लेकर एफआईआर दर्ज करने के लिए पुलिस को कोई अर्जी नहीं दी है और न ही बीएनएसएस की धारा 173 (3) के तहत केस का ही कोई तथ्य है इसलिए पुलिस सुरक्षा देने का कोई मामला नहीं बनता।

अनुकंपा नियुक्तियों का उद्देश्य मृतक के परिजनों के लिए अप्रत्याशित लाभ पाना नहीं

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा कि योग्यता माता-पिता से नहीं मानी जानी चाहिए, बल्कि खुली प्रतिस्पर्धा के माध्यम से हासिल की जानी चाहिए। अनुकंपा के आधार पर नियुक्तियों का उद्देश्य मृतक के परिजनों के लिए अप्रत्याशित लाभ अर्जित करना नहीं है। नियोक्ता को केवल वित्तीय स्थिति का आकलन करने की आवश्यकता है जो रसोई की आग को जलाए रखती है। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने दिया है। इसी के साथ कोर्ट ने दिवंगत बैंक कर्मचारी की पत्नी द्वारा अनुकंपा नियुक्ति के दावे को खारिज करने के स्टेट बैंक के आदेश को बरकरार रखा है।

कोर्ट ने पाया कि याची की पारिवारिक आय उसके अंतिम वेतन के 75 प्रतिशत से अधिक थी और कर्मचारी की मृत्यु के परिणामस्वरूप परिवार को वित्तीय अभाव का सामना नहीं करना पड़ा। इस प्रकार, ऐसे तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि परिवार की आय मृत कर्मचारी द्वारा प्राप्त अंतिम वेतन के 75 प्रतिशत से अधिक थी और उसकी मृत्यु के परिणामस्वरूप परिवार को वित्तीय अभाव का सामना नहीं करना पड़ रहा था। कोर्ट ने कहा कि मृतक कर्मचारी के परिवार की आय मृतक द्वारा प्राप्त अंतिम वेतन के 60 प्रतिशत से अधिक है। वास्तव में याची की पारिवारिक आय उसके द्वारा प्राप्त अंतिम वेतन के 75 प्रतिशत से अधिक है। इस प्रकार परिवार की आय यह स्थापित करती है कि कर्मचारी की मृत्यु के परिणामस्वरूप परिवार को वित्तीय अभाव का सामना नहीं करना पड़ा।

मामले के अनुसार याची चंचल सोनकर का पति स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का कर्मचारी था। वर्ष 2022 में उसकी मृत्यु हो गई। मृतक का अंतिम आहरित सकल वेतन एक लाख 18 हजार 800 रुपये था। बैंक ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए याची के दावे को अस्वीकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति देने का एकमात्र उद्देश्य परिवार को परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य की मृत्यु के परिणामस्वरूप होने वाले तत्काल वित्तीय संकट से उबरने में सक्षम बनाना है।

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